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Life is Just a Life: अश्रु और अकेलापन, Asru aur Akelapan

Written By नीरज द्विवेदी on रविवार, 30 जून 2013 | 5:22 pm

Life is Just a Life: अश्रु और अकेलापन, Asru aur Akelapan: अकेले में, सुकून से, आँखों के खाली होने का, दिल के हलके होने का, रोने का भी अपना अलग मजा है … ये दो चार अनजान सी बूँदें ...

Life is Just a Life: जीवन क्या है? Jeevan Kya Hai?

Life is Just a Life: जीवन क्या है? Jeevan Kya Hai?: जीवन क्या है, आसमान   के एक टुकडे   का, मीठा पानी, गिरा जमीं पर, चला खड़ा हो, कहने को एक नयी कहानी, थोडा हंसकर  ज्यादा रोया, जो भी प...

Life is Just a Life: खामोश पलकें Khamosh Palakein

Written By नीरज द्विवेदी on शनिवार, 29 जून 2013 | 8:53 am

Life is Just a Life: खामोश पलकें Khamosh Palakein: तेरा इन खामोश पलकों, संग गुप चुप मुस्कुराना, आँख से कुछ कर इशारे, तेरा मुड कर रूठ जाना। शबनम सा चुपके से बरसना, और फूलों की पन...

पत्नी का फोटो

Written By kavisudhirchakra.blogspot.com on गुरुवार, 20 जून 2013 | 10:03 am

एक दिन दफ्तर में
मेरी एक मात्र पत्नी का
बिना सूचना के आगमन हुआ
उसके चेहरे पर गुस्सा देख
मुझे
तूफान के पहले की
आंधी का आभास हुआ
अचानक
उसका हाव-भाव बदल गया
गुस्से से लाल चेहरा
फूल सा खिल गया
उसका
पाकिस्तान की तरह
इतनी जल्दी बदलाव
मेरी समझ में नहीं आया
जब मैंने इसका कारण पूछा
तो
मुस्कुराकर बोली
हे मेरे प्राणनाथ
मैं आपको कितना गलत समझती थी
आपकी टेबिल पर
सुन्दर फ्रेम में जड़ी हुई अपनी फोटो देखकर
मुझे आज पता चला
आप यूँ ही आहें नहीं भरते हैं
मुझसे कितना प्यार करते हैं 
पति बोला
यह तुम्हारा भ्रम है
टेबिल पर तुम्हारी
फोटो लगाने का तो दूसरा ही कारण है
तुम तो जानती हो कि
मैं जनसम्पर्क अधिकारी हूँ
प्रतिदिन
अच्छे और बुरे लोगों से
मेरा पाला पड़ता है
किसी-किसी दिन तो
लड़ना भी पड़ता है
तब किसी काम में नहीं लगता है मन
इसलिए हो जाती है टेंशन
तुम्हारी
फोटो पास रहेगी तो
यह आभास होगा
क्या
तुमसे भी बड़ा कोई टेंशन होगा
इस तरह
टेंशन की समस्या सुलझ जायेगी
और
मेरी नौकरी आराम से कट जायेगी।

नुकसानों का पलड़ा नीतीश का भारी है

Written By Barun Sakhajee Shrivastav on शुक्रवार, 14 जून 2013 | 9:44 pm

Neeteesh-Modi whispering among Sushma-Rajnath.
नीतीश कुमार काबिल मुख्यमंत्रियों में से एक हैं, लेकिन मोदी की खिलाफत करके  वे बुरे फंस गए हैं। शुरुआत तो कॉमन प्रेशर पीयरिंग से हुई थी, मगर वह सिलसिला इतना आगे बढ़ चला कि वे अब समझ नहीं पा रहे कि करें तो क्या? छोड़ देते हैं एनडीए तो बिहार से बाहर हो जाएंगे, नहीं छोड़ते तो मीडिया की चिल्लाई बनाई इज्जत चली जाएगी। यूं सियासी जोड़तोड़ में इज्जत, फिज्जत तभी तक रहती हैं, जब तक आप स्पष्ट बहुमत से सरकार चला रहे हों। वरना मुलायम जिन्होंने सोनिया को पीएम बनाने के लिए 1998 में एक वोट से अटल सरकार को गिरवाया था और फिर बाद में सोनिया सेना के ही फोन नहीं उठाने वाले फिर उनके साथ नहीं होते। गैर भरोसेमंद लोग ही बाद में भरोसेमंद होते हैं। चलिए जरा जानते हैं क्या हो सकता है।
एनडीए से बाहर
हंड्रैड परसेंट बाहर होने के कई खतरे हैं। नीतीश की सरकार अभी 2015 तक चलेगी। इसे कोई रोक भी नहीं सकता। भले ही वे एनडीए से बाहर आ जाएं। निर्दलीय हैं न। लेकिन बाहर आने के बाद यह भी सौ फीसदी सही है कि उन्हें हर हाल में सत्ता से बाहर होना पड़ेगा। सत्ता से बाहर होकर भी चल जाता, लेकिन संकट यह है कि वे मुख्य विपक्ष से भी बाहर हो जाएंगे। चूंकि सीट कैल्कुलेशन कहता है कि भाजपा 91 विधानसभा सीटों पर काबिज है। अलग होकर नीतीश को नुकसान करेगी। खुद को फायदा होगा। इसी बीच नीतीश भी भाजपा को नुकसान करेंगे, लेकिन मोदी वेव बिहारियों और उत्तर भारतीयों पर ज्यादा सवार है, तो यहां भी संभावित खतरे हैं। यानी ऐसे वैसे जैसे भी भाजपा अपनी 80 सीटें तो बचा ही लेगी, लेकिन जो सीटें जदयू के साथ मिलकर लड़ती हैं, उनमें से कम से कम 25 सीटों पर भाजपा जेडीयू को सीधे टक्कर दे सकने की स्थिति में है। इस बीच लालू जो 22 सीटों पर बैठकर अबतक सिर पीट रहे थे। बच्चों, भतीजों को लॉन्च करने में मशरूफ थे, वे एक बार फिर 50 क्रॉस कर सकते हैं। कांग्रेस को भी फायदा ही होना है, चूंकि मैक्सिमम नुकसान पर वह बैठी ही है। अब शरद बाबू नीतीश से सीधे भी नहीं कह पा रहे कि भाई बखेड़ा हो जाएगा और छुपा भी नहीं पा रहे। तब नुकसानों का पलड़ा नीतीश का भारी है।
एनडीए में रहते हैं
रहते हैं तो मुस्लिम वोट खिसक सकता है। लेकिन वह खिसक कर भी किसी एक पार्टी के पास नहीं जाएगा। बंटेगा, कांग्रेस, राजद और कुछ और अन्य में। यानी यहां पर भी कैल्कुलेटिवली जेडीयू को नुकसान है, किंतु उतना बड़ा फिर भी नहीं, जितना कि एनडीए छोडऩे से होगा। इधर शरद बाबू की भावनाएं हिचकोले खा रही हैं, कि हो सकता है एनडीए में ऐसी स्थिति बने कि उन्हें डेप्टी पीएम बना दिया जाए।
तब क्या करे जेडीयू
इस पूरे घमासान में जो करना है वह जेडीयू को ही करना है। लेकिन इज्जत का क्या? भाड़ में जाए इज्जत फिज्जत, अपन तो यह कहते हैं कि मोदी को पीएम बनाया तो अपन भाग जाएंगे। और शरद कहते हैं, सचमें चले जाएंगे। इज्जत भी बच निकलेगी और फिर भाजपा का भी सीधा पता चलेगा कि उसे अपनी जरूरत भी है या नहीं।
- सखाजी

मैं तो कहीं रहा ही नहीं

Written By Barun Sakhajee Shrivastav on बुधवार, 12 जून 2013 | 9:48 pm

LK Adwani, BJP Sr. Leader
आडवाणी खांटी सियासतदां हैं, उनका इस्तीफा पब्लिसिटी या प्रेशर टेक्टिस नहीं हो सकता। देश को भरोसा है कि कोई उनकी गहरी सियासत रही होगी। सियासत यानी चाल नहीं, अच्छी सियासत। समझ में तो नहीं आ रही, कि क्या सोच थी। बहरहाल लग यूं ही रहा है कि, यह महज दिखाने की थी। इससे दो बातें सामने आईं, पहली तो यह कि क्या आडवाणी जी का कद इतना गिर रहा है पार्टी के भीतर कि उन्हें सार्वजनिक इस प्रपंच का सहारा लेना पड़ा। प्रपंच इसलिए कि वे मान गए और एनडीए के चेयरमैन का पद नहीं छोड़ा था। इससे तो यही लगता है कि आडवाणी साहब अभी जो कुछ हैं उससे भी कहीं और ज्यादा अप्रासंगिक होते, इसलिए ही उन्होंने यह किया। दूसरी बात यह लग रही है, कि वे सबको संदेश देना चाहते थे कि भाजपा मेरी है। यह मैंने ही बनाई और चलाई है। पहले अटल ले भागे और अब मोदी। मैं तो कहीं रहा ही नहीं।
खैर जो भी हो, किंतु जो कुछ दिख रहा है, उससे तो आडवाणी साहब को बड़ा खामियाजा हुआ है। एक तो वे एंटी युवा साबित हुए, दूसरे वे नई पौध को नेतृत्व न देने वाले विलैन बने, तीसरे वे लोकप्रियता के पैमाने को नकारने वाले व्यक्तित्व बने, चौथे वे असल हृदय के सम्मान से थोड़े नीचे उतरे, पांचवे वे मोदी जो कि डैड श्योर पॉवर में आना ही है से भी बुरे हुए। मोदी से बुरे होने का दावा इसलिए भी सही है, क्योंकि वे यानी उनके समर्थक बाद में संबंध सुधारने के लिए संघ के दो लोगों से नाराजगी बताते नजर आए।
- सखाजी

यू आर ग्रेट राजनाथ जी

Written By Barun Sakhajee Shrivastav on रविवार, 9 जून 2013 | 10:23 pm

The two polls of BJP, have a unipolar in middle also.
आडवाणी और नरेंद्र मोदी के बीच के संभावित रिफ्ट का फायदा उठाकर राजनाथ सिंह की यह सियासी जीत है। ऊपर से जो नरेंद्र मोदी की जीत लग रही है, उनका उभरना लग रहा है, वह वास्तव में राजनाथ सिंह की सफलता है। नरेंद्र मोदी का बीजेपी में अहम स्थान तो होना ही था, उन्हें एक किसी औपचारिक पद पर लाकर कार्यकर्ताओं को खुश करना ही पड़ता। राजनाथ सिंह इन दो तथ्यों को लेकर ही आगे बढ़े। आडवाणी कहते रहे कि इस बार और नरेंद्र को वेटिंग में रखा जाए, फिर अगला चुनाव उन्हें दे देंगे। किंतु कांग्रेस की नाकामयाबियों के चलते देश के फेवर टू अदर्स माहौल का फायदा भी तो उठाना है। इसे फेवर टू बीजेपी बनाना है, तो स्ट्रोंग फैसले करना होंगे। राजनाथ सिंह ने इस बात का पूरा ख्याल रखा। अब जब मोदी मैदान में हैं, प्रचार कमेटी के जरिए कार्यकर्ताओं के सीधे संपर्क में रहेंगे, तो राजनाथ सिंह को दो बड़े फायदे मिलेंगे, पहला तो उनके सांगठनिक नेतृत्व में पार्टी जीतेगी, तो दूसरा मोदी सौ फीसदी मेजोरिटी नहीं ला पाएंगे, तब कुछ सहयोगियों की जरूरत पड़ेगी। ऐसे में मोदी के नाम से देश के आधे से ज्यादा तथाकथित सेकुलर साथ नहीं आएंगे और अगर आएंगे तो अनअफोर्डेबल कंडीशन के साथ फिर क्या, ऑप्शन है? आडवाणी? तो राजनाथ सिंह यहां पर अपने दोनों ही मकसदों में कामयाब हुए हैं, एक तो मोदी को आगे बढ़ाने में और आडवाणी को मुकम्मल तौर पर किनारा करने में। चूंकि जब ढफली बजेगी कौन है सेकुलर या कौन है भाजपा में सर्वग्राह्य आदमी, तो खोज की सुई आडवाणी पर नहीं राजनाथ सिंह पर रुकेगी। अगर अभी आडवाणी भी मोदी-मोदी कर रहे होते, तो वे पीएम की रेस में सबसे आगे होते। इसलिए एक अध्यक्ष के रूप में राजनाथ सिंह इस रिफ्ट को बढ़ाना ही चाहते थे।
मोदी तो परीक्षाएं ही देते रह जाएंगे, पहली तो गुजरात में लगातर साबित करते रहने की, दूसरी नवीनतम 6 लोस एवं विस चुनावों में सफलता, तीसरी पार्टी में कोई औपचारिक रूप से अखिल भारतीय स्तर की 2014 के लोस चुनावों से जुड़ी जिम्मेदारी पाने की, चौथी परीक्षा बेहद कठिन पार्टी की जो सीटें एंटी इंकंबेंसी फैक्टर और कांग्रेस की खराब छवि के चलते आनी हैं उनसे वे कितना ज्यादा ला सकते हैं, पांचवी कम पड़ गईं सीटों का गणित वे कैसे बिठाएंगे, छठवीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खासकर अमेरिकी नकारात्मक रुख को वे कैसे चेंज करेंगे, सातवीं परीक्षा मोदी की वह होगी जिसमें वे लोगों की महा अपेक्षाओं पर खरे उतरेंगे, चूंकि अब लोगों को शांतिपूर्ण कैंडल मार्च, लालकिले पर प्रर्दशन की लपक लग चुकी है, फिर चाहे सरकार का मुखिया मनमोहन हों या मोदी। यूं भी नेवर वोट कॉस्टिंग पार्टिसिपेंट्स वोकेल ऑन इंटरनेट स्पेस प्रोटेस्टर्स के ऊपर यह ज्यादा दबाव है कि वे प्रो बीजेपी हैं, तो वे कुछ अनावश्क मुद्दों पर भी नई सरकार को घेरेंगे। देखिए परीक्षाओं की इतनी सीढिय़ां अगर कोई चढ़ सकता है तो वह बेशक नेता है और फिर सर्वस्वीकार्य है ही है।
-सखाजी

Life is Just a Life: ये क्या बेहूदगी है? Ye kya behudagi hai?

Written By नीरज द्विवेदी on गुरुवार, 6 जून 2013 | 8:39 pm

Life is Just a Life: ये क्या बेहूदगी है? Ye kya behudagi hai?: ये क्या बेहूदगी है? तेज हवाएं धूल भरी आंधी टूटे फूटे अरमान चीथड़ों से पता नहीं किसके जाने कहाँ से लेकर आना जहाँ मन चाहे फें...

Life is Just a Life: एहसास Ehsas

Written By नीरज द्विवेदी on बुधवार, 5 जून 2013 | 8:02 am

Life is Just a Life: एहसास Ehsas: चाहे जितनी कोशिश कर लूँ पूरा होने की पर मुझे पता है तुम्हारे बिना अधूरा ही रहूँगा अतृप्त ही रहूँगा सूनी आँखों से क्षितिज को न...

Life is Just a Life: बोझ आँखों का Bojh Ankhon Ka

Written By नीरज द्विवेदी on सोमवार, 3 जून 2013 | 2:07 am

Life is Just a Life: बोझ आँखों का Bojh Ankhon Ka: क्या देखते हो आईने में   लाल आंखें   गालों पर सूखा पानी   अपना हाल ....? अब क्यों ये हाल बना रखा है ? बहा तो दिया   अभी अभी   थ...

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