कांटे फूल सदा ही संगी
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मेरा मन भी भ्रमित बहुत है
गिरगिट जैसा रंग बदलता
स्वागत को जब फूल बहुत हैं
कैक्टस फूल उगाऊं कहता
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घर आंगन फुलवारी प्यारी
खुशियों से आह्लादित सारी
और लालसा की चाहत में
बढ़ता जाऊं कंटक पथ में
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सीधी सादी भोली भाली
' तुलसी आंगन की दिवाली
कौन लगा घुन मन में मेरे
ना भाए कुछ ' दर्द ' सिवा रे !
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बहुत लोग हैं मेरे जैसे
खुशियों का जो दंश हैं झेले,
भांति भांति के कांटे चुनते
' कैक्टस की दीवार बनाते
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सीमित साधन या हो मरूथल,
वीराने भी सजता कैक्टस,
धैर्य और साहस का परिचय,
कांटों फूल सजाता कैक्टस
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मेहनत कांटों की शैय्या चल,
प्यारे फूल हैं लगते मनहर,
जीवन की पगडंडी ऐसी,
कांटे - फूल सदा ही संगी
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बुरा नहीं कांटा भी यारों
कांटे से कांटे को निकालो
घर अंगना जो न मन भाए
सीमा पर आ बाड़ लगाएं
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर5
प्रतापगढ़,
उत्तर प्रदेश, भारत