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जूतों का भार

Written By Bisari Raahein on रविवार, 16 जनवरी 2022 | 4:41 pm

 *लघुकथा* 


*( जूतों का भार )*


"मैडम जी फैमली आइडी चाहिए जी...." सातवीं कक्षा की नेहा के साथ आए उसके पिता ने  मैडम सुनीता के पास आकर गुहार लगाई । 

'क्यों ? क्या करना है उसका...' सुनीता मैडम ने प्रश्न दागा । 

"जी ... वो राशन डिपो वाले ने राशन देने से मना कर दिया । कहता है कि पहले स्कूल से अपनी फैमिली आइडी लेकर आओ" नेहा के पिता ने व्यथित स्वर में कहा ।

"अच्छा अब खुद को काम पड़ा तो स्कूल की याद आ गई ... और हम जो रोज फोन कर - कर के पागल हो गए कि अपनी बच्ची को आनलाईन भेजा गया गृह कार्य करवा कर मोबाइल पर भेजो । उसकी तो सुनवाई की नहीं आपने....?"  सुनीता मैडम बिफर पड़ीं ।

"जी.. वो हमारे फोन का नेट पैक खत्म हो गया था इसलिए..........." नेहा के पिता ने मजबूरी बतानी चाही लेकिन सुनीता मैडम उनकी बात बीच में ही काटकर गुस्से से चिल्ला उठी ।

"जाओ , पहले जाकर फोन रिचार्ज करवा कर लाओ और आनलाईन फीडबैक फार्म भरो फिर मिलेगी आईडी....।''

थोड़ी देर बाद बाप बेटी फिर से स्कूल में आ गए और सुनीता मैडम को फोन पकड़ा कर बोले ... "जी , फोन रिचार्ज करवा लिया है आप बता दो अब कि आनलाईन क्या करना है इसमें ?"

सुनीता मैडम का उनसे फोन पकड़ते हुए ध्यान गया कि इतनी ठंड में भी नेहा नंगे पांव स्कूल आई थी जबकि आज तो जुराब-जूतों में भी ठंड महसूस हो रही है । इसलिए फिर से गुस्से में नेहा से पूछा "इतनी ठंड में भी बिना जूते - चप्पल के घूम रही हो ... अक्ल नाम की चीज है या नहीं .....?"

"जी .... जूते हैं नहीं और कई दिन हुए चप्पलें टूट गई हैं ..." नेहा ने डरते हुए जवाब दिया ।

नेहा के पिता ने सफाई देने के लहजे में बोला , " जी... अभी थोड़ी तंगी चल रही है इसलिए...... बस दो-चार दिहाड़ी लगातार लग जाएं तो दिलवा देंगे चप्पल इसे ..... अभी तो ये फोन भी दुकानदार से मिन्नतें करके उधार में रिचार्ज करवाया है।" 

तभी मैडम सुनीता को लगा कि उसके हाथ में मोबाइल नहीं जूतों समेत नेहा का भार है और वह नि:शब्द हो गई ।


*कृष्ण कायत - 9896105643*

*संयोजक :- हरियाणा लघुकथा मंच डबवाली।*


Founder

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Saleem Khan