[ अमर उजाला दैनिक 11 मई 2012 पेज 11 ]
काला धन न सफ़ेद हुआ बाबा के बाल सफ़ेद !राजनीति की कोठरी में छिपे हुए हैं भेद ,
ऐसी छलनी में क्या छने जिसके हो छोटे छेद ,
काले धन को लेकर बाबा को है बड़ा खेद ;
इस चक्कर में हो गए उनके बाल सफ़ेद .
शिखा कौशिक
3 टिप्पणियाँ:
जी |
आज हमें भी दिखी यह सफेदी ||
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
Lajawaab.
एक टिप्पणी भेजें
Thanks for your valuable comment.