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तुम्हारी आराधना....डा श्याम गुप्त. की कविता .........

Written By shyam gupta on रविवार, 5 जून 2011 | 7:28 pm

  प्रिये!            
उस दिन जब तुम्हें,
पहली बार देखा;
टूट गयी पलभर में,
मन की लक्ष्मण-रेखा ।

हम तो थे प्यार में,
बड़े ही सौदाई;
एक ही भ्रूभंग में,
हो गए धराशायी |

कितने पल-छिन,
कितने मुद्दों की साधना,
एक ही क्षण में, होगई-
तुम्हारी आराधना |

कि तेरी पलकों की छाँव में,
तभी  से जीते हैं, मरते हैं ;
और सुहाने दुस्वप्न की तरह,
उस पल को-
आज तक याद करते हैं ||

                          ----------- काव्य-दूत से...               
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5 टिप्पणियाँ:

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

टूट गयी पलभर में,
मन की लक्ष्मण-रेखा ।
bahut khoob

prerna argal ने कहा…

कि तेरी पलकों की छाँव में,
तभी से जीते हैं, मरते हैं ;
और सुहाने दुस्वप्न की तरह,
उस पल को-
आज तक याद करते हैं ||bahut khoob.badiyaa hai ji .badhaai sweekaren.


please visit my blog.thanks

Asha Lata Saxena ने कहा…

बहुत भावपूर्ण कविता |बधाई
आशा

Unknown ने कहा…

bhut acchi kavita
bhut badahi

yaha bhi aaye
vikasgarg23.blogspot.com

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद ..आशाजी, विकास जी, प्रेरणा जी व दिलबाग जी ....दिल बाग-बाग होगया जी...

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