प्रिये!
उस दिन जब तुम्हें,
पहली बार देखा;
टूट गयी पलभर में,
मन की लक्ष्मण-रेखा ।
पहली बार देखा;
टूट गयी पलभर में,
मन की लक्ष्मण-रेखा ।
हम तो थे प्यार में,
बड़े ही सौदाई;
एक ही भ्रूभंग में,
हो गए धराशायी |
कितने पल-छिन,
कितने मुद्दों की साधना,
एक ही क्षण में, होगई-
तुम्हारी आराधना |
कि तेरी पलकों की छाँव में,
तभी से जीते हैं, मरते हैं ;
और सुहाने दुस्वप्न की तरह,
उस पल को-
आज तक याद करते हैं ||
----------- काव्य-दूत से...
5 टिप्पणियाँ:
टूट गयी पलभर में,
मन की लक्ष्मण-रेखा ।
bahut khoob
कि तेरी पलकों की छाँव में,
तभी से जीते हैं, मरते हैं ;
और सुहाने दुस्वप्न की तरह,
उस पल को-
आज तक याद करते हैं ||bahut khoob.badiyaa hai ji .badhaai sweekaren.
please visit my blog.thanks
बहुत भावपूर्ण कविता |बधाई
आशा
bhut acchi kavita
bhut badahi
yaha bhi aaye
vikasgarg23.blogspot.com
धन्यवाद ..आशाजी, विकास जी, प्रेरणा जी व दिलबाग जी ....दिल बाग-बाग होगया जी...
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Thanks for your valuable comment.