बड़े-बड़े लोग बड़ी-बड़ी बातें और बड़े-बड़े जागरूकता फैलाते ब्लॉग, बड़े-बड़े ब्लॉगर परखनली पकड़े हुए साल भर विज्ञान की बातें करते हुए मगर किसी ने भी इस साल होली के हुड़दंग के चलते गौरैया को याद करने की ज़हमत नहीं की, वे गौरैया को तो भूल ही गए.
तो आईये होली के हुड़दंग में से चन्द मिनट्स निकाल कर लुप्त होती गौरैया के बारे में कुछ सोचें .
जब 'गौरैया' ने हमारे घर में घोंसला बनाया था, ऐसा लगा मानो घर में कोई मेहमान आया था.
बड़े-बड़े लोग बड़ी-बड़ी बातें और बड़े-बड़े जागरूकता फैलाते ब्लॉग, बड़े-बड़े ब्लॉगर परखनली पकड़े हुए साल भर विज्ञान की बातें करते हुए मगर किसी ने भी इस साल होली के हुड़दंग के चलते गौरैया को याद करने की ज़हमत नहीं की, वे गौरैया को तो भूल ही गए.
तो आईये होली के हुड़दंग में से चन्द मिनट्स निकाल कर लुप्त होती गौरैया के बारे में कुछ सोचें .
जब 'गौरैया' ने हमारे घर में घोंसला बनाया था, ऐसा लगा मानो घर में कोई मेहमान आया था.
FIRST POSTED ON Thursday, March 20, 2010 | By सलीम ख़ान
सर्वप्रथम मैं जनाब केके मिश्रा और जनाब डीपी मिश्रा को धन्यवाद कहना चाहता हूँ जो dudhwalive.com व अपने ब्लॉग के माध्यम से निरन्तर प्रकृति के प्रति जागरूकता फैला रहें हैं. जनाब डीपी मिश्रा जी से मेरा परिचय लगभग दो वर्ष पुराना है और वे मेरे भाई समीउद्दीन नीलू (लखीमपुर खीरी में कार्यरत अमर उजाला संवाददाता) के मित्रों में से हैं. मैं ज़िला पीलीभीत का रहने वाला हूँ जो लखीमपुर का पड़ोसी ज़िला है. दुधवा नेशनल पार्क मेरे घर के 60-70 किमी. की दूरी पर है.
मुझे याद है बचपन में झाले (HUT) के केंद्र में लगे लकड़ी के बीम के ऊपर गौरैया अपना घोंसला बनाती थी और उसमें अंडे देती थी जिसमें से कुछ दिन बाद बच्चे निकलते थे. मुझे याद है, मैं बहुत देर-देर तक घोंसले और गौरैया के बच्चों को निहारता रहता था. वैसे मैं आपको बता दूं कि बचपन में मैं प्रकृति के प्रति बहुत ज़्यादा संवेदनशील था. मेरे घर में उस वक़्त 12 अमरुद के पेड़ 7 आम के पेड़ और अन्य पेड़ भी लगे थे जिनमें नीम्बू, बाँसवाड़ी आदि थे. यही नहीं मेरे घर के आगे बागीचा था जिसमें तरह के फूल लगे थे. बगीचा में भी तरह की चिड़ियों ने अपना घोंसला बनाया हुआ था जिनमें गौरैया और बुलबुल मुख्य रूप से थीं जिनका स्मरण मुझे अभी तक है. मगर अफ़सोस कि अब शहर में ही ज़्यादातर रहने के कारण वहां पर किसी भी प्रकार की कोई देखभाल भी नहीं हो पा रही है.
मुझे एक बात का स्मरण और भी है आज से क़रीब 7-8 वर्ष पूर्व एक रिश्तेदार ने मुझसे पूछा कि 'सलीम, क्या तुम्हे मालूम है कि आने वाले वक्तों में गौरैया गुम हो जायेंगी और उनका नामों-निशाँ तक नहीं बचेगा?' मैंने पूछा- 'वो कैसे?' उन्होंने कहा कि 'ये जो मोबाइल है इनके विनाश का मुख्य कारण बनेगा!!!' तभी से मुझे यह ज्ञात हुआ कि ये संचार क्रांति ही गौरैया के विनाश का मुख्य कारण बन रही है. बिजली के तार, माइक्रोवेव, मोबाइल टावर की वजह से गौरैया खत्म होती जा रही हैं. यह तो एक कारण है ही और मैं इससे भी बड़ा कारण मानता हूँ कि भौतिकवाद ने हमें पत्थर दिल बना दिया है !
आप अपने आप से पूछिये क्या आप इन चिड़ियों गोरैया आदि को देख कर बचपन में खुश न होते थे? क्या आपको ऐसा कुछ करने का मन नहीं होता था, आप उनके लिए भी कुछ न कुछ करें जिससे वे हमेशा या ज़्यादातर आपकी आँखों के सामने रहें? सुबह को क्या आपको चिड़ियों की चहचहाट सुहानी नहीं लगती थी? क्या सांझ ढले इनके घोंसलों की वापसी की बेला में इनका सुहाना शोर एक संगीतात्मकता सा अनुभव न कराता था? आखिर हम इतने कठोर कैसे हो गए? हम प्रकृति के प्रति इतने उदासीन क्यूँ हो रहें है? इन सब सवालों में ही इन पक्षिओं के बेहतरी का जवाब छुपा है!!
गौरैया कैसी होती है?
गौरैया एक छोटी चिड़िया है. यह हल्की भूरे रंग या सफ़ेद रंग में होती है. इसके शरीर पर छोटे छोटे पंख और खुबसूरत सी पीली चोंच होती है और पैरों का रंग हल्का पीला होता है. नर गोरैया की पहचान उसके गले के पास काले धब्बे से होता है. 14 से 16 सेमी. लम्बी यह चिड़िया मनुष्य के बनाए हुए घरों के आस पास रहना पसंद करती हैं. यह लगभग हर तरह की जलवायु में रहना पसंद करती हैं. शहरों और क़स्बों में बहुतायत से पाई जाती है. नर गौरैया के सिर का उपरी भाग, नीचे का भाग और गालों के पर भूरे रंग का होता है. गला चोंच और आँखों पर कला रंग होता है और पैर भूरे होते है. मादा के सिर और गले में भूरा रंग नहीं होता है. सामान्यतया नर गौरैया को चिड्डा और मादा गौरैया को चिड्डी अथवा चिड़िया कहते हैं.
गोरैया संरक्षण कैसे हो?
गौरैया को बचाने की मुहीम सिर्फ ज़ुबानी ही न हो बल्कि ज़मीनी भी हो. हम सिर्फ चर्चा ही न करें बल्कि उस पर अमल भी करें! हम उनके लिए अपने घर में उनके घोंसलों के लिए कुछ सेंटीमीटर जगह दें, अपने निवाले में से दो चार दाने उनके लिए छोड़ दें!
आधुनिक होते हमारे रिहाइशी आशियानों में कुछ जगह इनके लिए भी दें, इनमें कुछ खुली जगहों पर गड्ढेनुमा आकृतियाँ बनाईये, लकड़ी आदि का बॉक्स बनाईये. अपने घर के खाने के बचे हुए अन्न को नाली में फेंकने के बजाये उन्हें खुली जगह में रखें जिससे ये पक्षी अपनी भूख मिटा सकें.
प्लीज़... प्लीज़... प्लीज़ !!!
17 टिप्पणियाँ:
त्योहार को नशा कहते हैं आप। आपको शरम नहीं आती सलीम भाई। इतने फ़र्स्ट क्लास व्यक्ति होकर आपको अचानक ऐसा नहीं कहना चाहिये। इट्स वैरी वैरी सैड।
Nice bird , nice post.
होली मुबारक हो, अच्छी पोस्ट, जरा सोचिये महत्वपूर्ण कौन होली या गौरैया दिवस.
आपने सही वक्त पर याद दिलाया है कि आज गौरैया दिवस भी है. प्राणी-जगत प्रकृति की देन है और प्राणी जगत में मानव से पहले पशु-पक्षी आए थे.मानव तो बहुत बाद में आया. लेकिन आज वही मानव इन पशु-पक्षियों का नाम-ओ-निशान मिटाने पर तुला हुआ है .विलुप्त होती गौरैया की कम होती आबादी को देख कर तो ऐसा ही लगता है . ये मासूम पक्षी हमारे जीवन में हर दिन कुदरत के संगीत के साथ एक ताजगी भरा एहसास देते है. ये न रहें तो कुदरत बेरौनक हो जाएगी . हमारी जिंदगी फीकी हो जाएगी.काफी कुछ होने भी लगी है. इसलिए होली की मस्ती में भी हम इन्हें न भूलें और इनकी रक्षा करने का संकल्प लें तो आज के त्यौहार की सार्थकता होगी . आपको बहुत-बहुत धन्यवाद .
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मित्र सलीम,
उम्दा पोस्ट,
गौरैया की चिन्ता करने व सभी को उसकी याद दिलाने के लिये आभार... एक समय था जब मेरे पुश्तैनी घर में हमेशा गौरैया के तीन-चार घोंसले रहते थे... पर सच कहूँ अब तो कई साल से देखी ही नहीं गौरैया... न जाने कहाँ चली गई इंसान की यह संगिनी ?
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shaandar taviren aur jankari
भाईजान नशे में ही तो पढ़ रहा हूँ ....होली पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ...
मै नहीं भूली हू ..... उनके लिए मैंने एक चित्र बनाया है ....
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मेरी चीव चीव चिरैया ......My Friend Sparrow
http://rimjhim2010.blogspot.com/2011/03/my-friend-sparrow.html
@किलर झपाटा ! मैंने त्यौहार को नशा नहीं कह, बल्कि त्यौहार के नशें में डूब चुके लोगों के लिए एक सन्देश दिया है.
@अनवर भाई धन्यवाद !
@हरीश भाई, सवाल अच्छा है !
@सवारिया जी आपने अच्छी संवेदना व्यक्त की , काश ऐसा ही सब लोग समझ सकते !
@प्रवीण शाह, आप कैसे तथ्यवादी और सत्यवादी ब्लॉगर की ज़रुरत है ब्लॉग जगत को, वरना सलीम का नाम सुनते ही लोग पता नहीं क्यूँ आग बबूला हो जातें हैं भले ही मैं सही बात करूँ फिर भी !
@dILBAG JEE DHANYWAAD !
@महेंद्र जी, पता था आप ज़रूर पियेंगे खैर ... जब नशा उतरे तो घर की खिड़की या दरवाज़े पर ४-५ अनाज के दाने उनके लिए रख दीजियेगा !
@Chinmayee, very nice. I do the comment in your post ....
बेहतरीन , जानकारीपरक आलेख है । सदियों से गौरैय्या दिखी नहीं , इन चित्रों को देखकर अच्छा लगा
सलीम भाई मै आपका आभारी हूँ; जो आपने इस काबिल समझा.
गौरैया बचाने के मुहीम में शामिल होकर आपने हम लोगो
का उत्साहवर्धन किया इसके लिए आप पुन: साधुवाद
सलीम भाई आदाब आपके ब्लाग पर हमेशा नया मिलता है
गौरैया
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Thanks for your valuable comment.