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उस कुर्सी क्या आग लगी है ???

Written By Surendra shukla" Bhramar"5 on बुधवार, 27 अप्रैल 2011 | 12:24 am



नेता- डी. एम .- मंत्री- सारे
‘अपने घर के’-अपने बच्चे’ !!
इन्हें सिखाकर  हमने भेजा
गाँव -बड़ों का सब संदेसा !!
‘सड़क’ हमारी  जैसे नाली
नदीनाव’  -
कितने प्यारे डूब मरे  
वो किसान लेकर्ज’ मरा था
चलामुकदमा’ दो पुस्तों से
‘बूढ़े’ को कुछ कुत्ते नोचे
"छुटकी" को कुछ मिल केबेंचे’
उसके 'मरद' ने उसको छोड़ा
कुछ ने 'होली' फूंकी
कटे -पेड़ साबाप’ पड़ा है
रोजकचहरी’ चला -खड़ा है
उस घर में 'इन्सान' रहते
जिनका 'पाँव-पूज' हम चलते
'लात' मार वो हमें विदा कर
मूंछों अपनी 'तावजो  धरते
सब माना  था उसने जाकर
'बड़ा' बनूँ -कुछ -कुर्सी पाकर
'ताकतवर' जब शासन पाऊँ
दूरसमस्या’ सब कर पाऊँ
उसकुर्सी’ क्या आग लगी है ????
सभीआत्मा’ –‘संस्कृति’ अपनी
सभीसमस्या’ है –‘जल’ मरती ??
'अपने घर' के 'अपने बच्चे'
जब भी ‘घर’ में आयें 
आओ उन्हें ‘जगा दें’ भाई
पुनः पुनः उनकीआत्मा’ को
"अमृत" से नहलाएं 
‘होश’ दिलाएं 
इसदुनिया’ की
इसमाटी’ की -
‘परिपाटी’ की
उनमे डालेंजान
अगर यही 'जागृत' कर पायें
भारत बने महान  !!!

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर५
http://surenrashuklabhramar.blogspot.com
..2011
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1 टिप्पणियाँ:

Shalini kaushik ने कहा…

अगर यही 'जागृत' कर पायें
“भारत बने महान” !!
agar ka aana hi batata hai ki karya mushkil nahi to kathin avashay hai.aapki mehnat safal ho yahi kamna hai.

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