SCIENCE AND TECHNOLOGY: नैनो प्रौद्योगिकी: नैनो प्रौद्योगिकी ज्ञान का भंडार है और ऐसी प्रौद्योगिकी है, जो विभिन्न प्रकार के उत्पादों और प्रक्रियाओं को प्रभावित करेगी। इसके राष्ट्री...
6:08 pm
SCIENCE AND TECHNOLOGY: नैनो प्रौद्योगिकी
Written By mark rai on सोमवार, 30 अप्रैल 2012 | 6:08 pm
3:38 pm
Written By Taarkeshwar Giri on रविवार, 29 अप्रैल 2012 | 3:38 pm
खो जाने का डर........
मन मे हमेशा उथल -पुथल रहती है..
बेचैन मन घबराता है...
सताता है उसको हमेशा एक डर..
साथ छोड़ जाने का..
12:16 am
----देवेंद्र गौतम
ग़ज़लगंगा.dg: मेरी बर्बादियों का गम न करना:
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ग़ज़लगंगा.dg: मेरी बर्बादियों का गम न करना
मेरी बर्बादियों का गम न करना.
तुम अपनी आंख हरगिज़ नम न करना.
हमेशा एक हो फितरत तुम्हारी
कभी शोला कभी शबनम न करना.
कई तूफ़ान रस्ते में मिलेंगे
तुम अपने हौसले मद्धम न करना.
जो आया है उसे जाना ही होगा
किसी की मौत का मातम न करना.
ये मेला है फकत दो चार दिन का
यहां रिश्ता कोई कायम न करना.
हरेक जर्रे में एक सूरज है गौतम
किसी का कद कभी भी कम न करना.
ग़ज़लगंगा.dg: मेरी बर्बादियों का गम न करना:
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9:46 pm
रहस्य-रोमांच: जिन्नात की शादी:
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रहस्य-रोमांच: जिन्नात की शादी
Written By devendra gautam on शनिवार, 28 अप्रैल 2012 | 9:46 pm
आरा शहर की घटना है. लगभग 70 वर्ष पुरानी. लेकिन लोगों के बीच अभी भी कही-सुनी जानेवाली.
आरा शहर का एक मोहल्ला है शिवगंज. वहां हाल के वर्षों तक रूपम सिनेमा हॉल हुआ करता था. उसके बगल की गली में एक बड़े ही विद्वान पुरोहित रहा करते थे जो अपनी ज्योतिष विद्या की जानकारी के लिए दूर-दूर तक जाने जाते थे.
एक बार की बात है. रात के करीब 2 बजे वे दूसरे शहर के किसी जजमान के यहां से पूजा संपन्न कराकर लौट रहे थे. अपनी गली के मोड़ पर रिक्शा से उतर कर वे घर की और बढे ही थे कि अचानक एक गोरा चिटठा, लम्बा-चौड़ा आदमी उनके सामने आकर खड़ा हो गया. पंडित जी डर गए. उन्होंने पूछा-'कौन हो भाई! क्या बात है?'
'आप डरें नहीं. मैं एक जिन्न हूं. आपसे बहुत ज़रूरी काम है.' उसने जवाब दिया.
'अरे भाई! एक जिन्नात को मुझसे क्या काम....'
'आपको एक सप्ताह बाद मेरी शादी करनी है. कर्मन टोला की एक युवती का देहांत उसी दिन होना है. उसी के साथ मेरी शादी आपको करनी है. मुहमांगी दक्षिणा दूंगा.'
'जिन्नात की शादी..? मैंने ऐसी शादी कभी कराई नहीं. इसका विधान भी मुझे नहीं मालूम.'
'पंडित जी! शादी तो आप ही को करनी है. कैसे आप जानें. आज से ठीक आठवें दिन आप रात के एक बजे अबर पुल पर आपका इंतज़ार करूँगा. आपको वहां समय पर पहुँच जाना होगा. यह बात किसी को बताना नहीं है.' इतना कहकर जिन्नात गायब हो गया.
पंडित जी घर पहुंचे. रात भर सो नहीं सके. दूसरे दिन तमाम शास्त्रों को पलट डाला लेकिन जिन्नात की शादी की विधि नहीं मिली. अंततः उन्होंने कई किताबों का अध्ययन कर एक अपना तरीका निकाला.
आठवें दिन पंडित जी! डरते-सहमते रात के एक बजे से पहले ही अबर पुल पर पहुँच गए. एक बजे...डेढ़ बजे..दो बज गए लेकिन जिन्न नहीं पहुंचा. वे समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करें. तभी अचानक झन्न की आवाज़ के साथ जिन्नात प्रकट हुआ. उसके चेहरे पर परेशानी झलक रही थी.
' माफ़ कीजिये पंडित जी! यह शादी नहीं हो सकेगी.'
'क्यों क्या हो गया.'
'वह लडकी मरी तो ज़रूर लेकिन मरने के वक़्त जब उसे ज़मीन पर लिटाया गया तो रुद्राक्ष का एक दाना उसके शरीर को छू रहा था. इसके कारण मरने के बाद वह सीधे शिवलोक चली गयी. अब वह वहां से वापस नहीं लौटेगी. इसलिए अब उसके साथ मेरी शादी नहीं हो पायेगी.'
उसने पंडित जी की ओर चांदी के सिक्कों की एक थैली बढ़ाते हुए कहा-'आप मेरे आग्रह पर यहां तक आये. इसे दक्षिणा समझ कर रख लीजिये. आपकी बड़ी मेहरबानी होगी.'
पंडित जी ने कहा कि जब शादी करवाई नहीं तो दक्षिणा कैसा. लेकिन जिन्नात उनके हाथ में थैली थमाकर गायब हो गया.
पंडित जी घर वापस लौट आये. कई वर्षों तक उन्होंने इस घटना का किसी से जिक्र नहीं किया. बाद में अपने कुछ करीबी लोगों को यह घटना सुनाई. धीरे-धीरे लोगों तक यह किस्सा पहुंचा.
----छोटे
रहस्य-रोमांच: जिन्नात की शादी:
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10:17 am
चार रुपइया और बढ़ा दो
Written By Surendra shukla" Bhramar"5 on बुधवार, 25 अप्रैल 2012 | 10:17 am
बहन बेटियाँ बिन -व्याही हैं
कर्ज में डूबे कुछ किसान हैं
दर्द देख के -सभी – यहाँ चिल्लाते
सौ अठहत्तर अरब का सोना
कैसे फिर हम खाते ??
कर्ज में डूबे कुछ किसान हैं
दर्द देख के -सभी – यहाँ चिल्लाते
सौ अठहत्तर अरब का सोना
कैसे फिर हम खाते ??
मंहगाई ना कुछ कर पाती
अठाइस है बहुत बड़ा
चार रुपइया और बढ़ा दो
३२-३३ – संसद देखो भिड़ा पड़ा
कहीं झोपडी खुला आसमां
सौ-सौ मंजिल कहीं दिखी
कहीं खोद जड़ – कन्द हैं खाते
कहीं खोद भरते हैं सोना
अठाइस है बहुत बड़ा
चार रुपइया और बढ़ा दो
३२-३३ – संसद देखो भिड़ा पड़ा
कहीं झोपडी खुला आसमां
सौ-सौ मंजिल कहीं दिखी
कहीं खोद जड़ – कन्द हैं खाते
कहीं खोद भरते हैं सोना
कोई जमीं फुटपाथ पे सोया
नोटों की गड्डी “वो” सोया
किसी के पाँव बिवाई – छाले
उड़-उड़ कोई मेवे खा ले
( सभी फोटो साभार गूगल/ नेट से लिया गया )
नोटों की गड्डी “वो” सोया
किसी के पाँव बिवाई – छाले
उड़-उड़ कोई मेवे खा ले
( सभी फोटो साभार गूगल/ नेट से लिया गया )
विस्वा – मेंड़ जमीं की खातिर
भाई -भाई लड़ मरते
सौ – सौ बीघे धर्म – आश्रम
बाबा-ठग बन जोत रहे
कितने अश्त्र -शस्त्र हैं भरते
जुटा खजाना गाड़ रहे
भोली – भाली प्यारी जनता
गुरु-ईश में ठग क्यों ना पहचाने ??
कुछ अपने स्वारथ की खातिर
सब को वहीं फंसा दें
निर्मल-कोई- नहीं है बाबा !
अंतर मन की-सुन लो-पूजो
खून पसीने श्रम से उपजा
खुद भी भाई खा लो जी लो !!
——————————-
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर’ ५
८-८.२० पूर्वाह्न
कुल यच पी
२५.०४.२०१२
भाई -भाई लड़ मरते
सौ – सौ बीघे धर्म – आश्रम
बाबा-ठग बन जोत रहे
कितने अश्त्र -शस्त्र हैं भरते
जुटा खजाना गाड़ रहे
भोली – भाली प्यारी जनता
गुरु-ईश में ठग क्यों ना पहचाने ??
कुछ अपने स्वारथ की खातिर
सब को वहीं फंसा दें
निर्मल-कोई- नहीं है बाबा !
अंतर मन की-सुन लो-पूजो
खून पसीने श्रम से उपजा
खुद भी भाई खा लो जी लो !!
——————————-
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल “भ्रमर’ ५
८-८.२० पूर्वाह्न
कुल यच पी
२५.०४.२०१२
2:58 pm
ब्लॉग पहेली-२३
इस बार पहचाने उन पांच ब्लॉग का नाम जिस पर प्रस्तुत पोस्ट के अंश हैं ये -
१-धूप मेरे हाथ से जब से फिसल गई जिंदगी से रौशनी उस दिन निकल गई नाव साहिल तक वही लौटी है .
२-जरूर राधा ने मोहिनी डारी है तभी छवि तुम्हारी इतनी मतवाली है जो भी देखे मधुर छवि अपना आप
भुलाता है ये राधे की महिमा न्यारी है ...
३-जबकि अपने देश में लोग इलाज की कमी से मर रहे हों. देश में 7 लाख डाक्टरों की कमी है. लोग मर रहे
हैंमगर डाक्टर विदेश में चले जाते हैं. एक एमबीबीएस डाक्टर की पढ़ाई में एम्स में 1.50 करोड़ रूपये का ख़र्च आता.
४-..कल उंगली से रेत पर तेरी तस्वीर बनाई मैंने... .....एक लहर आई अपने साथ ले गई.. ....
फिर क्या था हर तरफ, हर जगह बस तुम ही तुम..
५-*मित्रों!*** * सात जुलाई, 2009 को यह रचना लिखी थी! इस पर नामधारी ब्लॉगरों के तो मात्र 14 कमेंट आये थे मगर बेनामी लोगों के 137 कमेंट आये।*** * एक बार पुनः इसी रचना ज्यों की त्यों को प्रकाशित कर रहा ..
केवल ब्लॉग का नाम बताएं और विजेता बन जाएँ .
शुभकामनाओं के साथ
शिखा कौशिक
[ब्लॉग पहेली चलो हल करते हैं ]
[ब्लॉग पहेली चलो हल करते हैं ]-ब्लॉग पहेली-२३
Written By Shikha Kaushik on मंगलवार, 24 अप्रैल 2012 | 2:58 pm
ब्लॉग पहेली-२३
इस बार पहचाने उन पांच ब्लॉग का नाम जिस पर प्रस्तुत पोस्ट के अंश हैं ये -
१-धूप मेरे हाथ से जब से फिसल गई जिंदगी से रौशनी उस दिन निकल गई नाव साहिल तक वही लौटी है .
२-जरूर राधा ने मोहिनी डारी है तभी छवि तुम्हारी इतनी मतवाली है जो भी देखे मधुर छवि अपना आप
भुलाता है ये राधे की महिमा न्यारी है ...
३-जबकि अपने देश में लोग इलाज की कमी से मर रहे हों. देश में 7 लाख डाक्टरों की कमी है. लोग मर रहे
हैंमगर डाक्टर विदेश में चले जाते हैं. एक एमबीबीएस डाक्टर की पढ़ाई में एम्स में 1.50 करोड़ रूपये का ख़र्च आता.
४-..कल उंगली से रेत पर तेरी तस्वीर बनाई मैंने... .....एक लहर आई अपने साथ ले गई.. ....
फिर क्या था हर तरफ, हर जगह बस तुम ही तुम..
५-*मित्रों!*** * सात जुलाई, 2009 को यह रचना लिखी थी! इस पर नामधारी ब्लॉगरों के तो मात्र 14 कमेंट आये थे मगर बेनामी लोगों के 137 कमेंट आये।*** * एक बार पुनः इसी रचना ज्यों की त्यों को प्रकाशित कर रहा ..
केवल ब्लॉग का नाम बताएं और विजेता बन जाएँ .
शुभकामनाओं के साथ
शिखा कौशिक
[ब्लॉग पहेली चलो हल करते हैं ]
5:08 pm
अपनी- अपनी गरीबी रेखा
Written By प्रदीप नील वसिष्ठ on रविवार, 15 अप्रैल 2012 | 5:08 pm
आदरणीय अन्ना अंकल,
मेरा एक मित्र है राम औतार . करोड़पति है, कोठी -कार और सब सुविधाएं उसके पास हैं लेकिन चाय पीने का मन होने के बावज़ूद जेब से पांच रूपए नहीं निकालना चाहता और तलाश में रहता है कि कब उसे कोई चाय-बीडी़ पिलाने वाला मिले . ऐसे में मैं उसकी औकत मात्र पांच रूपए ही समझता हूं और चाहता हूं कि मेरा वह मित्र अपने आप को गरीबी रेखा से नीचे मान ले लेकिन मित्र है कि उसे अपने आप के करोड़पति होने का घमण्ड रहता है . मैं सरकार होता तो उसे यकीनन ही गरीबी रेखा से नीचे रखता और वह इस बात पर मुझे कोसता. यानि सरकार की फज़ीहत तो तय है .
मेरा दूसरा मित्र राम खिलावन झोंपडे़ में रहता है .दाने-दाने का मोहताज़ है लेकिन घर में दो मोबाइल फोन हैं और हर शाम देसी शराब का अद्धा पता नहीं कैसे उसके पास आ जाता है . उसे दुख है कि उसके पास साईकिल ही क्यों है , बाईक क्यों नहीं ? वह चाहता है कि उसे गरीबी रेखा से नीचे मान लिया जाए और सरकार उसके आठों बच्चों को पाले . मैं सरकार होता तो उसे गरीबी रेखा से ऊपर मानता . जिसके घर में केबल टी वी हो, दो मोबाइल हों ,हर शाम शराब का जुगाड़ हो और जो आदमी बेचारी सरकार तक को अपने बच्चों की आया बनाने के सपने देखता हो उसे गरीबी रेखा से नीचे रखना तो रेखा की बेइज़्ज़ती होती .ऐसे में मैं सरकार होता तो यकीनन ही राम खिलावन मुझे गालियां देता . यानि, सरकार की फज़ीहत तो तय है .
सच तो यह है कि इस गरीबी रेखा की शक्ल जिसने बिगाड. रखी है वह औरत हमारे महल्ले में रहती है . कुछ साल पहले जनगणना हुई थी तो पता चला था कि वह हर सेकिण्ड एक बच्चे को ज़न्म दे डालती है . अब मुझे पूरा यकीन है कि वही औरत आज़कल हर सेकिण्ड तीन नहीं तो कम से कम दो या डेढ बच्चे तो ज़रूर ही पैदा करने लगी है .
और उस औरत के सामने बेचारी सरकार मुझे तो सातवीं क्लास को पढाने वाली ड्राइंग भैंजी लगती है . भैंजी बेचारी ब्लैक-बोर्ड की तरफ मुंह करके गरीब बच्चों के चारों तरफ गरीबी रेखा खींच रही होती है कि पीछे से वह औरत दो बच्चे उसे रेखा के पास गिरा कर ताली बजा कर हंसती है और मज़ाक उड़ाने लगती है कि ऐसी औरत को किसने भैंजी लगा दिया जिसे सही रेखा ही नहीं खींचनी आती .भैंजी हैरान-परेशान होकर वह रेखा मिटाकर दूसरी बना ही रही होती है कि वह औरत पांच बच्चे फैंक कर भैंजी को मूर्ख साबित कर देती है . यानि, सरकार की फज़ीहत तो तय है .
लोग सरकार की बनाई गरीबी रेखा से खुश नहीं होते और हरेक को शिकायत बनी रहती है .
जिस तरह जितने मुंह उतनी बातें, उसी तरह जितने लोग उतनी ही गरीबी रेखाएं . ऊपर से दिक्कत यह कि आज़कल लोग मुंह भी दो-तीन रखने लेगे हैं .ऐसे में क्या हो सकता है ? यानि, सरकार की फज़ीहत तो तय है .
आपका अपना बच्चा,
मन का सच्चा,
अकल का कच्चा
- प्रदीप नील
मेरा एक मित्र है राम औतार . करोड़पति है, कोठी -कार और सब सुविधाएं उसके पास हैं लेकिन चाय पीने का मन होने के बावज़ूद जेब से पांच रूपए नहीं निकालना चाहता और तलाश में रहता है कि कब उसे कोई चाय-बीडी़ पिलाने वाला मिले . ऐसे में मैं उसकी औकत मात्र पांच रूपए ही समझता हूं और चाहता हूं कि मेरा वह मित्र अपने आप को गरीबी रेखा से नीचे मान ले लेकिन मित्र है कि उसे अपने आप के करोड़पति होने का घमण्ड रहता है . मैं सरकार होता तो उसे यकीनन ही गरीबी रेखा से नीचे रखता और वह इस बात पर मुझे कोसता. यानि सरकार की फज़ीहत तो तय है .
मेरा दूसरा मित्र राम खिलावन झोंपडे़ में रहता है .दाने-दाने का मोहताज़ है लेकिन घर में दो मोबाइल फोन हैं और हर शाम देसी शराब का अद्धा पता नहीं कैसे उसके पास आ जाता है . उसे दुख है कि उसके पास साईकिल ही क्यों है , बाईक क्यों नहीं ? वह चाहता है कि उसे गरीबी रेखा से नीचे मान लिया जाए और सरकार उसके आठों बच्चों को पाले . मैं सरकार होता तो उसे गरीबी रेखा से ऊपर मानता . जिसके घर में केबल टी वी हो, दो मोबाइल हों ,हर शाम शराब का जुगाड़ हो और जो आदमी बेचारी सरकार तक को अपने बच्चों की आया बनाने के सपने देखता हो उसे गरीबी रेखा से नीचे रखना तो रेखा की बेइज़्ज़ती होती .ऐसे में मैं सरकार होता तो यकीनन ही राम खिलावन मुझे गालियां देता . यानि, सरकार की फज़ीहत तो तय है .
सच तो यह है कि इस गरीबी रेखा की शक्ल जिसने बिगाड. रखी है वह औरत हमारे महल्ले में रहती है . कुछ साल पहले जनगणना हुई थी तो पता चला था कि वह हर सेकिण्ड एक बच्चे को ज़न्म दे डालती है . अब मुझे पूरा यकीन है कि वही औरत आज़कल हर सेकिण्ड तीन नहीं तो कम से कम दो या डेढ बच्चे तो ज़रूर ही पैदा करने लगी है .
और उस औरत के सामने बेचारी सरकार मुझे तो सातवीं क्लास को पढाने वाली ड्राइंग भैंजी लगती है . भैंजी बेचारी ब्लैक-बोर्ड की तरफ मुंह करके गरीब बच्चों के चारों तरफ गरीबी रेखा खींच रही होती है कि पीछे से वह औरत दो बच्चे उसे रेखा के पास गिरा कर ताली बजा कर हंसती है और मज़ाक उड़ाने लगती है कि ऐसी औरत को किसने भैंजी लगा दिया जिसे सही रेखा ही नहीं खींचनी आती .भैंजी हैरान-परेशान होकर वह रेखा मिटाकर दूसरी बना ही रही होती है कि वह औरत पांच बच्चे फैंक कर भैंजी को मूर्ख साबित कर देती है . यानि, सरकार की फज़ीहत तो तय है .
लोग सरकार की बनाई गरीबी रेखा से खुश नहीं होते और हरेक को शिकायत बनी रहती है .
जिस तरह जितने मुंह उतनी बातें, उसी तरह जितने लोग उतनी ही गरीबी रेखाएं . ऊपर से दिक्कत यह कि आज़कल लोग मुंह भी दो-तीन रखने लेगे हैं .ऐसे में क्या हो सकता है ? यानि, सरकार की फज़ीहत तो तय है .
आपका अपना बच्चा,
मन का सच्चा,
अकल का कच्चा
- प्रदीप नील
5:18 pm
----देवेंद्र गौतम
ग़ज़लगंगा.dg: बंद दरवाज़े को दस्तक दे रहा था:
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ग़ज़लगंगा.dg: बंद दरवाज़े को दस्तक दे रहा था
Written By devendra gautam on शनिवार, 14 अप्रैल 2012 | 5:18 pm
जाने किस उम्मीद के दर पे खड़ा था.
बंद दरवाज़े को दस्तक दे रहा था.
कोई मंजिल थी, न कोई रास्ता था
उम्र भर यूं ही भटकता फिर रहा था.
वो सितारों का चलन बतला रहे थे
मैं हथेली की लकीरों से खफा था.
मेरे अंदर एक सुनामी उठ रही थी
फिर ज़मीं की तह में कोई ज़लज़ला था.
इसलिए मैं लौटकर वापस न आया
अब न आना इस तरफ, उसने कहा था.
और किसकी ओर मैं उंगली उठाता
मेरा साया ही मेरे पीछे पड़ा था.
हमने देखा था उसे सूली पे चढ़ते
झूठ की नगरी में जो सच बोलता था.
उम्रभर जिसके लिए तड़पा हूं गौतम
दो घडी पहलू में आ जाता तो क्या था.
ग़ज़लगंगा.dg: बंद दरवाज़े को दस्तक दे रहा था:
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8:03 pm
मंज़िल पास आएगी.
Written By Shalini kaushik on शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012 | 8:03 pm
मिशन लन्दन ओलम्पिक हॉकी गोल्ड
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हौसले कर बुलंद अपने ,मंज़िल पास आएगी,
जोश भर ले दिल में अपने मंज़िल पास आएगी.
तक रहा है बैठकर क्यों भागती परछाइयाँ ,
उठ ज़रा बढ़ ले तू आगे मंज़िल पास आएगी.
दूसरों का देखकर मुंह न पायेगा फ़तेह कभी ,
रख ज़रा विश्वास खुद पर मंज़िल पास आएगी.
भूल से भी मत समझना खुद को तू सबसे बड़ा,
सर झुका मेहनत के आगे मंज़िल पास आएगी.
गर नशा करना है तुझको चूर हो जा काम में ,
लक्ष्य का पीछा करे तो मंज़िल पास आएगी.
''शालिनी'' कहती है तुझको मान जीवन को चुनौती ,
बिन डरे अपना ले इसको मंज़िल पास आएगी.
शालिनी कौशिक
6:39 pm
निर्मल बाबा को मीडिया ने ही चढ़ाया, वही उतार रहा है
समागम के नाम पर दरबार लगा कर अपने भक्तों की समस्याओं का चुटकी में कथित समाधान करने की वजह से लोकप्रिय हो रहे निर्मल बाबा स्वाभाविक रूप से संस्पैंस बढऩे के कारण यकायक इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के निशाने पर आ गए हैं। स्टार न्यूज ने अपने क्राइम के सीरियल सनसनी पर एक विशेष रिपोर्ट प्रसारित कर उनका पूरा पोस्टमार्टम ही कर दिया है। अब तक उनके बारे में कोई विशेष जानकारी किसी समाचार माध्यम पर उपलब्ध नहीं थी, उसे भी कोई एक माह की मशक्कत के बाद उजागर किया है कि आखिर उनकी विकास यात्रा की दास्तान क्या है। इतना ही नहीं उन पर एक साथ दस सवाल दाग दिए हैं। दिलचस्प मगर अफसोसनाक बात ये है कि ये वही स्टार न्यूज चैनल है, जो प्रतिदिन उनका विज्ञापन भी जारी करता रहा है और अब न्यूज चैनलों पर विज्ञापनों के जरिए चमत्कारों को बढ़ावा देने से की प्रवृत्ति से बचने की दुहाई देते हुए बड़ी चतुराई से बाबा के करोड़ों रुपए कमाने पर सवाल खड़े कर रहा है। इतना ही नहीं अपने आप को ईमानदार जताने के लिए विज्ञापन अनुबंध की तय समय सीमा समाप्त होने के बाद वह इसका प्रसारण बंद करने की भी घोषणा कर रहा है।
सवाल उठता है कि यदि वाकई स्टार न्यूज को चमत्कारी बाबाओं का महिमा मंडन किए जाने पर ऐतराज रहा है, तो यह उसे अब कैसे सूझा कि ऐसे विज्ञापन नहीं दिखाए जाने चाहिए। ऐसा प्रतीत होता है कि या तो विज्ञापन की रेट को लेकर विवाद हुआ होगा या फिर ये लगा होगा कि जितनी कमाई बाबा के विज्ञापन से हो रही है, उससे कहीं अधिक का फायदा तो टीआरपी बढऩे से ही हो जाएगा। वजह स्पष्ट है कि जब सारे चैनल किसी के गुणगान में जुटे हों तो जो भी चैनल उसका नकारात्मक पहलु दिखाएगा, दुनिया उसी की ओर आकर्षित होगी। इसी मसले से जुड़ी एक तथ्यात्मक बात ये भी है कि स्टार न्यूज ने बाबा के बारे में जो जानकारी बटोरने का दावा किया है, वह सब कुछ तो सोशल मीडिया पर पहले से ही आने लग गई थी। उसे लगा होगा कि जब बाबा की खिलाफत शुरू हुई है तो कोई और चैनल भी दिखा सकता है, सो मुद्दे को तुरंत लपक लिया। मुद्दा उठाने को तर्कसंगत बनाने के लिए प्रस्तावना तक दी, जिसकी भाषा यह साबित करती प्रतीत होती है, मानो चैनलों की भीड़ में अकेला वही ईमानदार है।
असल में निर्मल बाबा चमत्कारी पुरुष हैं या नहीं या उनका इस प्रकार धन बटोरना जायज है या नाजायज, इस विवाद को एक तरफ भी रख दिया जाए, तो सच ये है कि उन्हें चमत्कारी पुरुष के रूप में स्थापित करने और नोट छापने योग्य बनाने का श्रेय इलैक्ट्रॉनिक मीडिया को जाता है। बताते हैं कि इस वक्त कोई चालीस चैनलों पर निर्मल बाबा के दरबार का विज्ञापन निरंतर आ रहा है। जब बाबा भक्तों से कमा रहे हैं तो भला इलैक्ट्रॉनिक मीडिया उनसे क्यों न कमाए? माना कि चैनल चलाने के लिए धन की जरूरत होती है, मगर इसके लिए आचार संहिता, सामाजिक सरोकार, नैतिकता व दायित्वों को तिलांजलि देना बेहद अफसोसनाक है। ऐसे में क्या यह सवाल सहज ही नहीं उठता कि निर्मल बाबा के विज्ञापन देने वाले चैनल थोड़ा सा तो ख्याल करते कि आखिर वे समाज को किस ओर ले जा रहे हैं? क्या जनता की पसंद, जनभावना और आस्था के नाम पर अंधविश्वास को स्थापित कर के वे अपने दायित्व से च्युत तो नहीं हो रहे? कैसी विडंबना है कि एक ओर जहां इस बात पर जोर दिया जाता है कि समाचार माध्यमों को कैसे अधिक तथ्यपरक व विश्वनीय बनाया जाए और उसी के चलते चमत्कार से जुड़े प्रसंगों पर हमले किए जाते हैं, वहीं हमारे मीडिया ने कमाने के लिए चमत्कारिक व्यक्तित्व निर्मल बाबा की कमाई से कुछ हिस्सा बांटना शुरू कर दिया। सच तो ये है कि इलैक्ट्रॉनिक मीडिया की ही बदौलत पिछले कुछ वर्षों में एकाधिक बाबा अवतरित हुए हैं। वे इसके जरिए लोकप्रियता हासिल करते हैं और धन बटोरने लग जाते हैं। दोनों का मकसद पूरा हो रहा है। सामाजिक सरोकार जाए भाड़ में। बाबा लोग पैसा खर्च करके लोकप्रियता और पैसा बटोर रहे हैं और चैनल पैसे की खातिर बिकने को तैयार बैठे हैं।
थोड़ा सा विषयांतर करके देखें तो बाबा रामदेव की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। उनसे भी बेहतर योगी हमारे देश में मौजूद हैं और अपने छोटे आश्रमों में गुमनामी के अंधेरे में काम कर रहे हैं, मगर बाबा रामदेव ने योग सिखाने के नाम पर पैसा लेना शुरू किया और उस संचित धन को मीडिया प्रबंधन पर खर्च किया तो उन्हें भी इसी मीडिया ने रातों रात चमका दिया। यद्यपि उनके दावों पर भी वैज्ञानिक दृष्टि से सवाल उठाए जाते हैं, मगर यदि ये मान लिया जाए कि कम से कम चमत्कार के नाम तो नहीं कमा रहे, मीडिया की बदौलत ऐसे चमके हैं कि उसी लोकप्रियता को हथियार बना कर सीधे राजनीति में ही दखल देने लग गए हैं।
अन्ना हजारे का मामला कुछ अलग है, मगर यह सौ फीसदी सच है कि वे भी केवल और केवल मीडिया की ही पैदाइश हैं। उसी ने उन्हें मसीहा बनाया है। माना कि वे एक अच्छे मकसद से काम कर रहे हैं, इस कारण मीडिया का उनको चढ़ाना जायज है, मगर चमकने के बाद उनकी भी हालत ये है कि वे सीधे पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था को ही चुनौती दे रहे हैं। आज अगर उनकी टीम अनियंत्रित हो कर दंभ से भर कर बोल रही है तो उसके लिए सीधे तौर यही मीडिया जिम्मेदार है। अन्ना और मीडिया के गठजोड़ का ही परिणाम था कि अन्ना के आंदोलन के दौरान एकबारगी मिश्र जैसी क्रांति की आशंका उत्पन्न हो गई थी।
लब्बोलुआब इलैक्ट्रॉनिक मीडिया जितना धारदार, व्यापक व प्रभावशाली है, उतना ही गैर जिम्मेदाराना व्यवहार कर रहा है। सरकार व सेना के बीच कथित विवाद को उभारने का प्रसंग इसका ज्वलंत उदाहरण है। इसे वक्त रहते समझना होगा। कल सरकार यदि अंकुश की बात करे, जो कि प्रेस की आजादी पर प्रहार ही होगा, तो इससे बेहतर यही है कि वह बाजार की गला काट प्रतिस्पद्र्धा में कुछ संयम बरते और अपने लिए एक आचार संहिता बनाए।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
सवाल उठता है कि यदि वाकई स्टार न्यूज को चमत्कारी बाबाओं का महिमा मंडन किए जाने पर ऐतराज रहा है, तो यह उसे अब कैसे सूझा कि ऐसे विज्ञापन नहीं दिखाए जाने चाहिए। ऐसा प्रतीत होता है कि या तो विज्ञापन की रेट को लेकर विवाद हुआ होगा या फिर ये लगा होगा कि जितनी कमाई बाबा के विज्ञापन से हो रही है, उससे कहीं अधिक का फायदा तो टीआरपी बढऩे से ही हो जाएगा। वजह स्पष्ट है कि जब सारे चैनल किसी के गुणगान में जुटे हों तो जो भी चैनल उसका नकारात्मक पहलु दिखाएगा, दुनिया उसी की ओर आकर्षित होगी। इसी मसले से जुड़ी एक तथ्यात्मक बात ये भी है कि स्टार न्यूज ने बाबा के बारे में जो जानकारी बटोरने का दावा किया है, वह सब कुछ तो सोशल मीडिया पर पहले से ही आने लग गई थी। उसे लगा होगा कि जब बाबा की खिलाफत शुरू हुई है तो कोई और चैनल भी दिखा सकता है, सो मुद्दे को तुरंत लपक लिया। मुद्दा उठाने को तर्कसंगत बनाने के लिए प्रस्तावना तक दी, जिसकी भाषा यह साबित करती प्रतीत होती है, मानो चैनलों की भीड़ में अकेला वही ईमानदार है।
असल में निर्मल बाबा चमत्कारी पुरुष हैं या नहीं या उनका इस प्रकार धन बटोरना जायज है या नाजायज, इस विवाद को एक तरफ भी रख दिया जाए, तो सच ये है कि उन्हें चमत्कारी पुरुष के रूप में स्थापित करने और नोट छापने योग्य बनाने का श्रेय इलैक्ट्रॉनिक मीडिया को जाता है। बताते हैं कि इस वक्त कोई चालीस चैनलों पर निर्मल बाबा के दरबार का विज्ञापन निरंतर आ रहा है। जब बाबा भक्तों से कमा रहे हैं तो भला इलैक्ट्रॉनिक मीडिया उनसे क्यों न कमाए? माना कि चैनल चलाने के लिए धन की जरूरत होती है, मगर इसके लिए आचार संहिता, सामाजिक सरोकार, नैतिकता व दायित्वों को तिलांजलि देना बेहद अफसोसनाक है। ऐसे में क्या यह सवाल सहज ही नहीं उठता कि निर्मल बाबा के विज्ञापन देने वाले चैनल थोड़ा सा तो ख्याल करते कि आखिर वे समाज को किस ओर ले जा रहे हैं? क्या जनता की पसंद, जनभावना और आस्था के नाम पर अंधविश्वास को स्थापित कर के वे अपने दायित्व से च्युत तो नहीं हो रहे? कैसी विडंबना है कि एक ओर जहां इस बात पर जोर दिया जाता है कि समाचार माध्यमों को कैसे अधिक तथ्यपरक व विश्वनीय बनाया जाए और उसी के चलते चमत्कार से जुड़े प्रसंगों पर हमले किए जाते हैं, वहीं हमारे मीडिया ने कमाने के लिए चमत्कारिक व्यक्तित्व निर्मल बाबा की कमाई से कुछ हिस्सा बांटना शुरू कर दिया। सच तो ये है कि इलैक्ट्रॉनिक मीडिया की ही बदौलत पिछले कुछ वर्षों में एकाधिक बाबा अवतरित हुए हैं। वे इसके जरिए लोकप्रियता हासिल करते हैं और धन बटोरने लग जाते हैं। दोनों का मकसद पूरा हो रहा है। सामाजिक सरोकार जाए भाड़ में। बाबा लोग पैसा खर्च करके लोकप्रियता और पैसा बटोर रहे हैं और चैनल पैसे की खातिर बिकने को तैयार बैठे हैं।
थोड़ा सा विषयांतर करके देखें तो बाबा रामदेव की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। उनसे भी बेहतर योगी हमारे देश में मौजूद हैं और अपने छोटे आश्रमों में गुमनामी के अंधेरे में काम कर रहे हैं, मगर बाबा रामदेव ने योग सिखाने के नाम पर पैसा लेना शुरू किया और उस संचित धन को मीडिया प्रबंधन पर खर्च किया तो उन्हें भी इसी मीडिया ने रातों रात चमका दिया। यद्यपि उनके दावों पर भी वैज्ञानिक दृष्टि से सवाल उठाए जाते हैं, मगर यदि ये मान लिया जाए कि कम से कम चमत्कार के नाम तो नहीं कमा रहे, मीडिया की बदौलत ऐसे चमके हैं कि उसी लोकप्रियता को हथियार बना कर सीधे राजनीति में ही दखल देने लग गए हैं।
अन्ना हजारे का मामला कुछ अलग है, मगर यह सौ फीसदी सच है कि वे भी केवल और केवल मीडिया की ही पैदाइश हैं। उसी ने उन्हें मसीहा बनाया है। माना कि वे एक अच्छे मकसद से काम कर रहे हैं, इस कारण मीडिया का उनको चढ़ाना जायज है, मगर चमकने के बाद उनकी भी हालत ये है कि वे सीधे पूरी लोकतांत्रिक व्यवस्था को ही चुनौती दे रहे हैं। आज अगर उनकी टीम अनियंत्रित हो कर दंभ से भर कर बोल रही है तो उसके लिए सीधे तौर यही मीडिया जिम्मेदार है। अन्ना और मीडिया के गठजोड़ का ही परिणाम था कि अन्ना के आंदोलन के दौरान एकबारगी मिश्र जैसी क्रांति की आशंका उत्पन्न हो गई थी।
लब्बोलुआब इलैक्ट्रॉनिक मीडिया जितना धारदार, व्यापक व प्रभावशाली है, उतना ही गैर जिम्मेदाराना व्यवहार कर रहा है। सरकार व सेना के बीच कथित विवाद को उभारने का प्रसंग इसका ज्वलंत उदाहरण है। इसे वक्त रहते समझना होगा। कल सरकार यदि अंकुश की बात करे, जो कि प्रेस की आजादी पर प्रहार ही होगा, तो इससे बेहतर यही है कि वह बाजार की गला काट प्रतिस्पद्र्धा में कुछ संयम बरते और अपने लिए एक आचार संहिता बनाए।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
12:39 am
----देवेंद्र गौतम
fact n figure: निर्मल बाबा के विरोध का सच:
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fact n figure: निर्मल बाबा के विरोध का सच
निर्मल बाबा की पृष्ठभूमि खंगाली जा रही है. प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रोनिक मीडिया और इन्टरनेट मीडिया तक ने उनके विरुद्ध हल्ला बोल दिया है. हालांकि लखनऊ के दो बच्चों को छोड़ दें तो अभी तक किसी आम नागरिक ने उनके विरुद्ध कहीं कोई शिकायत दर्ज करने का प्रयास नहीं किया है. फिर भी मीडिया के लोगों ने आम लोगों की आंखें खोलने के अपने कर्तव्य का पालन किया है. मीडिया के लोग आम तौर पर विज्ञापनदाताओं की जायज़-नाजायज़ सभी हरकतों को संरक्षण दिया करते हैं. कितने ही काले कारनामों पर उन्होंने सफलतापूर्वक पर्दा डाल रखा है. आज की तारीख में देश के दर्जनों बड़े पत्रकार कई घोटालों में संलग्न होने के आरोपी हैं. जांच एजेंसियों के पास इसके प्रमाण भी हैं लेकिन उनपर हाथ नहीं डाला जा रहा है. उनका लिहाज़ किया जा रहा है. निर्मल बाबा भी बड़े विज्ञापनदाता हैं. 35 चैनलों पर उनके विज्ञापन प्रसारित हो रहे हैं. यदि वे आमजन की अंधभक्ति का दोहन कर रहे हैं और ईशकृपा की मार्केटिंग कर रहे हैं तो मीडिया को उसका हिस्सा भी दे रहे हैं. उनकी गल्ती यही है कि 35 चैनलों के अलावा जो मीडिया घराने हैं उनकी तरफ ध्यान नहीं दे रहे हैं. ध्यान देते तो यह हमले या तो नहीं होते या फिर उनकी धार कुछ कमजोर होती.
फिलहाल उनके प्रारंभिक जीवन के जो खुलासे हुए हैं उनमें कुछ भी आपत्तिजनक नज़र नहीं आता. झारखंड के चतरा के निर्दलीय सांसद इन्दर सिंह नामधारी का साला होना या पूर्व में कपडे का थोक व्यापार करना, ठेकेदारी करना कोई गुनाह नहीं है. वे कोई मंगल ग्रह से नहीं आये हैं कि धरती पर उनका कोई रिश्तेदार न हो. सोने का चम्मच लेकर नहीं पैदा हुए कि उन्हें जीवन में संघर्ष न करना पड़ा हो. ज्ञान चक्षु तो उम्र के किसी भी पड़ाव पर खुल सकते हैं. भगवान बुद्ध भी तो ज्ञान प्राप्त होने के पूर्व पत्नी और बच्चे को नींद में सोता छोड़ यानी अपनी जिम्मेवारियों को छोड़ कर भागे हुए एक कापुरुष ही कहे जा सकते हैं. लेकिन सुजाता के हांथों से खीर खाने के बाद उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ तो वे महान और युग प्रवर्तक बन गए. बाद में उन्हें विष्णु का नवां अवतार तक मान लिया गया.
निर्मल बाबा जिस तीसरी आंख का दावा करते हैं उसकी वास्तविकता क्या है यह एक बहस का विषय हो सकता है. अभी तक हमारी जानकारी में भगवान शिव तीन नेत्रों वाले माने गए हैं. उनके तीसरे नेत्र के खुलने पर कामदेव भस्म हो गए थे. उनका यह नेत्र कभी-कभार ही खुलता था. निर्मल बाबा की मानें तो उनका यह नेत्र हमेशा खुला ही रहता है लेकिन किसी को भस्म करने के लिए नहीं भक्तों तक ईश कृपा के निर्वाध वितरण के लिए. वे अपने भक्तों को त्याग और संयम की शिक्षा नहीं देते. महंगी से महंगी चीजें खरीदने और ऐश के साथ जीने की सलाह देते हैं. वे अध्यात्म की नहीं भौतिक जीवन को बेहतर बनाने की बात करते हैं. भारत में भक्तियोग का बोलबाला है. लोग अपनी समस्याओं से निजात पाने के लिए किसी दैवी शक्ति के चमत्कार के इंतज़ार में रहते हैं. उनकी इसी कमजोरी का लाभ निर्मल बाबा जैसे लोग उठाते रहे हैं और जबतक भक्तियोग की जगह कर्मयोग या ज्ञानयोग का प्रचालन नहीं बढेगा उठाते रहेंगे. एक निर्मल बाबा जायेंगे दस पैदा होंगे. जनता के साथ इस तरह की ठगी का यदि कोई ह्रदय से विरोध करता है और सिर्फ टीआरपी या प्रसार संख्या बढ़ने के लिए इसका इस्तेमाल नहीं करते उन्हें जन चेतना को भक्तियोग से उबारने का प्रयास करना चाहिए.
fact n figure: निर्मल बाबा के विरोध का सच:
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8:36 am
खबरगंगा: JOURNALISTERA The People's E-Paper:
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खबरगंगा: JOURNALISTERA The People's E-Paper
Written By devendra gautam on गुरुवार, 12 अप्रैल 2012 | 8:36 am
डीवीसी में महाघोटाले का सच। | ||
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6:43 pm
डा. अनवर जमाल ख़ान की ख़ास पेशकश Buniyad Blog
Written By DR. ANWER JAMAL on मंगलवार, 10 अप्रैल 2012 | 6:43 pm
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7:48 pm
रिश्ते
Written By Shalini kaushik on गुरुवार, 5 अप्रैल 2012 | 7:48 pm
कभी हैं इनसे दिल जलते,
कभी हमें ख़ुशी दे जाते हैं,
कभी हैं इनसे गम मिलते,
कभी निभाना मुश्किल इनको,
कभी हैं इनसे दिन चलते,
कभी तोड़ देते ये दिल को,
कभी होंठ इनसे हिलते,
कभी ये लेते कीमत खुद की,
कभी ये खुद ही हैं लुटते,
कभी जोड़ लेते ये जग को,
कभी रोशनी से कटते,
कभी चमक दे जाते मुख पर,
कभी हैं इनसे हम छिपते,
कभी हमारे दुःख हैं बांटते,
कभी यही हैं दुःख देते,
इतने पर भी हर जीवन के प्राणों में ये हैं बसते,
और नहीं कोई नाम है इनका हम सबके प्यारे''रिश्ते''
शालिनी कौशिक
3:22 pm
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हॉकी -हमारा राष्ट्रीय खेल -आप भी जुड़े
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मिशन लन्दन ओलंपिक हॉकी गोल्ड
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SHIKHA KAUSHIK
8:19 am
बोल्डनेस छोड़िए हो जाइए कूल...खुशदीप के सन्दर्भ में
ख़ुशदीप सहगल किसी ब्लॉग पर अपनी मां का काल्पनिक नंगा फ़ोटो देखें तो उन्हें दुख होगा इसमें ज़रा भी शक नहीं है लेकिन उनकी मां का नंगा फ़ोटो ब्लॉग पर लगा हुआ है और उन्हें दुख का कोई अहसास ही नहीं है।
...और यह फ़ोटो उनके ही ब्लॉग पर है और ख़ुद उन्होंने ही लगाया है।
उन्होंने चुटकुलों भरी एक पोस्ट तैयार की। जिसका शीर्षक है ‘बोल्डनेस छोड़िए और हो जाइये कूल‘
इस पोस्ट का पहला चुटकुला ही हज़रत आदम अलैहिस्सलाम और अम्मा हव्वा अलैहिस्सलाम पर है। इस लिहाज़ से उन्होंने एक फ़ोटो भी उनका ही लगा दिया है। फ़ोटो में उन्हें नंगा दिखाया गया है।
दुनिया की तीन बड़ी क़ौमें यहूदी, ईसाई और मुसलमान आदम और हव्वा को मानव जाति का आदि पिता और आदि माता मानते हैं और उन्हें सम्मान देते हैं। ये तीनों मिलकर आधी दुनिया की आबादी के बराबर हैं। अरबों लोग जिनका सम्मान करते हैं, उनके नंगे फ़ोटो लगाकर ब्लॉग पर हा हा ही ही की जा रही है।
यह कैसी बेहिसी है भाई साहब ?
आदम हव्वा का फ़ोटो इसलिए लगा दिया कि ये हमारे कुछ थोड़े ही लगते हैं, ये अब्राहमिक रिलीजन वालों के मां बाप लगते हैं।
अरे भाई ! आप किस की संतान हो ?
कहेंगे कि हम तो मनु की संतान हैं।
और पूछा जाए कि मनु कौन हैं, तो ...?
कुछ पता नहीं है कि मनु कौन हैं !
अथर्ववेद 11,8 बताता है कि मनु कौन हैं ?
इस सूक्त के रचनाकार ऋषि कोरूपथिः हैं -
यन्मन्युर्जायामावहत संकल्पस्य गृहादधिन।
क आसं जन्याः क वराः क उ ज्येष्ठवरोऽभवत्। 1 ।
तप चैवास्तां कर्भ चतर्महत्यर्णवे।
त आसं जन्यास्ते वरा ब्रह्म ज्येष्ठवरोऽभवत् । 2 ।
अर्थात मन्यु ने जाया को संकल्प के घर से विवाहा। उससे पहले सृष्टि न होने से वर पक्ष कौन हुआ और कन्या पक्ष कौन हुआ ? कन्या के चरण कराने वाले बराती कौन थे और उद्वाहक कौन था ? ।1। तप और कर्म ही वर पक्ष और कन्या पक्ष वाले थे, यही बराती थे और उद्वाहक स्वयं ब्रह्म था।2।
यहां स्वयंभू मनु के विवाह को सृष्टि का सबसे पहला विवाह बताया गया है और उनकी पत्नी को जाया और आद्या कहा गया है। ‘आद्या‘ का अर्थ ही पहली होता है और ‘आद्य‘ का अर्थ होता है पहला। ‘आद्य‘ धातु से ही ‘आदिम्‘ शब्द बना जो कि अरबी और हिब्रू भाषा में जाकर ‘आदम‘ हो गया।
स्वयंभू मनु का ही एक नाम आदम है। अब यह बिल्कुल स्पष्ट है। अब इसमें किसी को कोई शक न होना चाहिए कि मनु और जाया को ही आदम और हव्वा कहा जाता है और सारी मानव जाति के माता पिता यही हैं।
ख़ुशदीप सहगल के माता पिता भी यही हैं।
अपने मां बाप के नंगे फ़ोटो ब्लॉग पर लगाकर सहगल साहब ख़ुश हो रहे हैं कि देखो मैंने कितनी अच्छी पोस्ट लिखी है।
अपनी मां की नंगी फ़ोटो लगा नहीं सकते और जो उनकी मां की भी मां है और सबकी मां है उसका नंगा फ़ोटो लगाकर बैठ गए हैं और किसी ने उन्हें टोका तक नहीं ?
ये है हिंदी ब्लॉग जगत !
कहते हैं कि हम पढ़े लिखे और सभ्य हैं।
हम इंसान के जज़्बात को आदर देते हैं।
अपने मां बाप आदम और हव्वा अलैहिस्सलाम पर मनघड़न्त चुटकुले बनाना और उनका काल्पनिक व नंगा फ़ोटो लगाना क्या उन सबकी इंसानियत पर ही सवालिया निशान नहीं लगा रहा है जो कि यह सब देख रहे हैं और फिर भी मुस्कुरा रहे हैं ?
रात हमने पोस्ट पब्लिश करने के साथ ही उनकी पोस्ट पर टिप्पणी भी की और इस पोस्ट की सूचना देने के लिए अपना लिंक भी छोड़ा लेकिन उन्होंने गलती को मिटने के बजाय हमारी टिप्पणी ही मिटा डाली.
उनकी गलती दिलबाग जी ने भी दोहरा डाली. उनकी पोस्ट से फोटो लेकर उन्होंने भी चर्चा मंच की पोस्ट (चर्चा - 840 ) में लगा दिया है.
एक टिप्पणी हमने चर्चा मंच की पोस्ट पर भी कर दी है.
यह मुद्दा तो सबके माता पिता की इज्ज़त से जुडा है. सभी को इसपर अपना ऐतराज़ दर्ज कराना चाहिए.
http://blogkikhabren.blogspot.in/2012/04/manu-means-adam.html
बोल्डनेस छोड़िए हो जाइए कूल...खुशदीप के सन्दर्भ में , सभी को इसपर अपना ऐतराज़ दर्ज कराना चाहिए.
बोल्डनेस छोड़िए हो जाइए कूल...खुशदीप के सन्दर्भ में
ख़ुशदीप सहगल किसी ब्लॉग पर अपनी मां का काल्पनिक नंगा फ़ोटो देखें तो उन्हें दुख होगा इसमें ज़रा भी शक नहीं है लेकिन उनकी मां का नंगा फ़ोटो ब्लॉग पर लगा हुआ है और उन्हें दुख का कोई अहसास ही नहीं है।...और यह फ़ोटो उनके ही ब्लॉग पर है और ख़ुद उन्होंने ही लगाया है।
उन्होंने चुटकुलों भरी एक पोस्ट तैयार की। जिसका शीर्षक है ‘बोल्डनेस छोड़िए और हो जाइये कूल‘
इस पोस्ट का पहला चुटकुला ही हज़रत आदम अलैहिस्सलाम और अम्मा हव्वा अलैहिस्सलाम पर है। इस लिहाज़ से उन्होंने एक फ़ोटो भी उनका ही लगा दिया है। फ़ोटो में उन्हें नंगा दिखाया गया है।
दुनिया की तीन बड़ी क़ौमें यहूदी, ईसाई और मुसलमान आदम और हव्वा को मानव जाति का आदि पिता और आदि माता मानते हैं और उन्हें सम्मान देते हैं। ये तीनों मिलकर आधी दुनिया की आबादी के बराबर हैं। अरबों लोग जिनका सम्मान करते हैं, उनके नंगे फ़ोटो लगाकर ब्लॉग पर हा हा ही ही की जा रही है।
यह कैसी बेहिसी है भाई साहब ?
आदम हव्वा का फ़ोटो इसलिए लगा दिया कि ये हमारे कुछ थोड़े ही लगते हैं, ये अब्राहमिक रिलीजन वालों के मां बाप लगते हैं।
अरे भाई ! आप किस की संतान हो ?
कहेंगे कि हम तो मनु की संतान हैं।
और पूछा जाए कि मनु कौन हैं, तो ...?
कुछ पता नहीं है कि मनु कौन हैं !
अथर्ववेद 11,8 बताता है कि मनु कौन हैं ?
इस सूक्त के रचनाकार ऋषि कोरूपथिः हैं -
यन्मन्युर्जायामावहत संकल्पस्य गृहादधिन।
क आसं जन्याः क वराः क उ ज्येष्ठवरोऽभवत्। 1 ।
तप चैवास्तां कर्भ चतर्महत्यर्णवे।
त आसं जन्यास्ते वरा ब्रह्म ज्येष्ठवरोऽभवत् । 2 ।
अर्थात मन्यु ने जाया को संकल्प के घर से विवाहा। उससे पहले सृष्टि न होने से वर पक्ष कौन हुआ और कन्या पक्ष कौन हुआ ? कन्या के चरण कराने वाले बराती कौन थे और उद्वाहक कौन था ? ।1। तप और कर्म ही वर पक्ष और कन्या पक्ष वाले थे, यही बराती थे और उद्वाहक स्वयं ब्रह्म था।2।
यहां स्वयंभू मनु के विवाह को सृष्टि का सबसे पहला विवाह बताया गया है और उनकी पत्नी को जाया और आद्या कहा गया है। ‘आद्या‘ का अर्थ ही पहली होता है और ‘आद्य‘ का अर्थ होता है पहला। ‘आद्य‘ धातु से ही ‘आदिम्‘ शब्द बना जो कि अरबी और हिब्रू भाषा में जाकर ‘आदम‘ हो गया।
स्वयंभू मनु का ही एक नाम आदम है। अब यह बिल्कुल स्पष्ट है। अब इसमें किसी को कोई शक न होना चाहिए कि मनु और जाया को ही आदम और हव्वा कहा जाता है और सारी मानव जाति के माता पिता यही हैं।
ख़ुशदीप सहगल के माता पिता भी यही हैं।
अपने मां बाप के नंगे फ़ोटो ब्लॉग पर लगाकर सहगल साहब ख़ुश हो रहे हैं कि देखो मैंने कितनी अच्छी पोस्ट लिखी है।
अपनी मां की नंगी फ़ोटो लगा नहीं सकते और जो उनकी मां की भी मां है और सबकी मां है उसका नंगा फ़ोटो लगाकर बैठ गए हैं और किसी ने उन्हें टोका तक नहीं ?
ये है हिंदी ब्लॉग जगत !
कहते हैं कि हम पढ़े लिखे और सभ्य हैं।
हम इंसान के जज़्बात को आदर देते हैं।
अपने मां बाप आदम और हव्वा अलैहिस्सलाम पर मनघड़न्त चुटकुले बनाना और उनका काल्पनिक व नंगा फ़ोटो लगाना क्या उन सबकी इंसानियत पर ही सवालिया निशान नहीं लगा रहा है जो कि यह सब देख रहे हैं और फिर भी मुस्कुरा रहे हैं ?
रात हमने पोस्ट पब्लिश करने के साथ ही उनकी पोस्ट पर टिप्पणी भी की और इस पोस्ट की सूचना देने के लिए अपना लिंक भी छोड़ा लेकिन उन्होंने गलती को मिटने के बजाय हमारी टिप्पणी ही मिटा डाली.
उनकी गलती दिलबाग जी ने भी दोहरा डाली. उनकी पोस्ट से फोटो लेकर उन्होंने भी चर्चा मंच की पोस्ट (चर्चा - 840 ) में लगा दिया है.
एक टिप्पणी हमने चर्चा मंच की पोस्ट पर भी कर दी है.
यह मुद्दा तो सबके माता पिता की इज्ज़त से जुडा है. सभी को इसपर अपना ऐतराज़ दर्ज कराना चाहिए.
http://blogkikhabren.blogspot.in/2012/04/manu-means-adam.html
8:26 pm
Written By अरविन्द शुक्ल on मंगलवार, 3 अप्रैल 2012 | 8:26 pm
तुम तुम थे हम हम थे
अहलादों की अविरल धारा में
निज को ही, निज धागे से
हर ओर पिरोया करते थे
तुम तुम थे हम हम थे !
होंठों पर से शब्दों की आहट से
दिल में सैलाब सा उठता था
बंद जुबा के अनकहे लफ्ज
बिन कहे ही समझे जाते थे
तुम तुम थे हम हम थे !
सागर की घटाओं में खोकर
मन में आकाश सा उठता था
विस्वाश के नीले आँचल में
तारो को पिरोया करते थे
तुम तुम थे हम हम थे !
वह प्रणय काल की अभिलाषा
वह मौन नयन की अविभाषा
बूंदों के सागर में अक्सर
रिम झिम को संजोया करते थे
तुम तुम थे हम हम थे !
http://eksafarjindgika.blogspot.in/
अहलादों की अविरल धारा में
निज को ही, निज धागे से
हर ओर पिरोया करते थे
तुम तुम थे हम हम थे !
होंठों पर से शब्दों की आहट से
दिल में सैलाब सा उठता था
बंद जुबा के अनकहे लफ्ज
बिन कहे ही समझे जाते थे
तुम तुम थे हम हम थे !
सागर की घटाओं में खोकर
मन में आकाश सा उठता था
विस्वाश के नीले आँचल में
तारो को पिरोया करते थे
तुम तुम थे हम हम थे !
वह मौन नयन की अविभाषा
बूंदों के सागर में अक्सर
रिम झिम को संजोया करते थे
तुम तुम थे हम हम थे !
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10:30 am
‘संभलकर, विषय बोल्ड है‘ पर टिप्पणी
पत्नी की संतुष्टि उसका स्वाभाविक अधिकार है Women's Natural Right
वंदना गुप्ता जी ने हिंदी ब्लॉग जगत को एक पोस्ट दी है ‘संभलकर, विषय बोल्ड है‘
हमने उनकी इस पोस्ट पर अपनी टिप्पणी देते हुए कहा है कि
वंदना गुप्ता जी ! आपने नर नारी संबंधों के क्रियात्मक पक्ष की जानकारी बहुत साफ़ शब्दों में दी है। यह सबके काम आएगी। तश्बीह, तम्सील और बिम्बों के ज़रिये कही गई बात को केवल विद्वान ही समझ पाते हैं और फिर उनके अर्थ भी हरेक आदमी अलग अलग ले लेता है। आपका साहित्य सरल है इसे हरेक आदमी समझ सकता है। पुरूषों को यह बात ज़रूर जाननी चाहिए कि शारीरिक संबंधों की अदायगी भी क़ायदे से होनी चाहिए जैसे कि धार्मिक कर्मकांड और इबादत में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि कहीं भी कोई कमी न रह जाए।
ईश्वर तक पहुंचने के लिए सीढ़ी माने जाने वालों से पत्नी के लिए पति और पति के लिए पत्नी भी हैं।
ईश्वर की प्रसन्नता चाहना भारतीय संस्कृति का अभिन्न तत्व है और अरबी संस्कृति का भी। संपूर्ण विश्व की आध्यात्मिक संस्कृति का मूल तत्व यही है। पत्नी भी प्रसन्न है कि नहीं, यह भी देखना बहुत ज़रूरी है। मां बाप गुरू अतिथि और पत्नी राज़ी हैं तो समझ लीजिए कि आपसे आपका रब भी राज़ी है।
पत्नी को राज़ी करना भी निहायत ही आसान है।
पत्नी चाहती क्या है ?
सिर्फ़ दो बोल प्रशंसा के,
जैसे कि ...
जब से तुम इस घर में आई हो मेरी ज़िंदगी संवर गई है।
तुम्हारे प्यार की क़द्र मेरे दिल में बहुत गहराई तक है।
बस हो गई नारी तुम्हारी, दिल से सदा के लिए।
लेकिन यह तारीफ़ दिल से निकलनी चाहिए।
औरत समर्पण करती है और अपने आप को मिटाती है तो उसे तारीफ़ मिलनी भी चाहिए।
मर्द को अपने खान पान को भी ‘औरत ओरिएंटिड‘ रखना चाहिए। मर्द को मछली और मुर्ग़ा ज़रूर खाना चाहिए। अगर मर्द शाकाहार का अभ्यस्त हो और सीधे मांस न खा सकता हो तो उसे दूध, शहद, बादाम, पनीर, लहसुन, अदरक, आंवला और एलोवेरा का सेवन ज़रूर करना चाहिए। बदन में जितनी ज़्यादा जान होगी, वह अपने महबूब के साथ उतना ही लंबा सफ़र कर सकता है।
महबूब को चांद के पार ले जाने में एलोवेरा का जवाब नहीं है। एलोवेरा के सेवन के बाद नारी तो संतुष्ट हो ही जाती है लेकिन मर्द संतुष्टि के अहसास को रिपीट करने का बल तुरंत ही पाता है।
चरम सुख के शीर्ष पर औरत का प्राकृतिक अधिकार है, हमारा यह उदघोष सदा से ही है।
इतनी लंबी टिप्पणी सिर्फ़ इसलिए कि जो भी पढ़े उसका वैवाहिक जीवन पूरी तरह संतुष्ट हो। संतोष परम धन है और हम भारत के युवक युवकों को ही नहीं बल्कि वृद्धों और वृद्धाओं को भी परम धनी देखना चाहते हैं। विधवा और विधुर सब इस धन से समृद्ध हों।
यह परम धन पास हो तो फिर लौकिक धन मुद्रा की कमी नर नारी को परेशान नहीं करती। उच्च के सामने तुच्छ का मूल्य गौण हुआ करता है।
हमने उनकी इस पोस्ट पर अपनी टिप्पणी देते हुए कहा है कि
वंदना गुप्ता जी ! आपने नर नारी संबंधों के क्रियात्मक पक्ष की जानकारी बहुत साफ़ शब्दों में दी है। यह सबके काम आएगी। तश्बीह, तम्सील और बिम्बों के ज़रिये कही गई बात को केवल विद्वान ही समझ पाते हैं और फिर उनके अर्थ भी हरेक आदमी अलग अलग ले लेता है। आपका साहित्य सरल है इसे हरेक आदमी समझ सकता है। पुरूषों को यह बात ज़रूर जाननी चाहिए कि शारीरिक संबंधों की अदायगी भी क़ायदे से होनी चाहिए जैसे कि धार्मिक कर्मकांड और इबादत में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि कहीं भी कोई कमी न रह जाए।
ईश्वर तक पहुंचने के लिए सीढ़ी माने जाने वालों से पत्नी के लिए पति और पति के लिए पत्नी भी हैं।
ईश्वर की प्रसन्नता चाहना भारतीय संस्कृति का अभिन्न तत्व है और अरबी संस्कृति का भी। संपूर्ण विश्व की आध्यात्मिक संस्कृति का मूल तत्व यही है। पत्नी भी प्रसन्न है कि नहीं, यह भी देखना बहुत ज़रूरी है। मां बाप गुरू अतिथि और पत्नी राज़ी हैं तो समझ लीजिए कि आपसे आपका रब भी राज़ी है।
पत्नी को राज़ी करना भी निहायत ही आसान है।
पत्नी चाहती क्या है ?
सिर्फ़ दो बोल प्रशंसा के,
जैसे कि ...
जब से तुम इस घर में आई हो मेरी ज़िंदगी संवर गई है।
तुम्हारे प्यार की क़द्र मेरे दिल में बहुत गहराई तक है।
बस हो गई नारी तुम्हारी, दिल से सदा के लिए।
लेकिन यह तारीफ़ दिल से निकलनी चाहिए।
औरत समर्पण करती है और अपने आप को मिटाती है तो उसे तारीफ़ मिलनी भी चाहिए।
मर्द को अपने खान पान को भी ‘औरत ओरिएंटिड‘ रखना चाहिए। मर्द को मछली और मुर्ग़ा ज़रूर खाना चाहिए। अगर मर्द शाकाहार का अभ्यस्त हो और सीधे मांस न खा सकता हो तो उसे दूध, शहद, बादाम, पनीर, लहसुन, अदरक, आंवला और एलोवेरा का सेवन ज़रूर करना चाहिए। बदन में जितनी ज़्यादा जान होगी, वह अपने महबूब के साथ उतना ही लंबा सफ़र कर सकता है।
महबूब को चांद के पार ले जाने में एलोवेरा का जवाब नहीं है। एलोवेरा के सेवन के बाद नारी तो संतुष्ट हो ही जाती है लेकिन मर्द संतुष्टि के अहसास को रिपीट करने का बल तुरंत ही पाता है।
चरम सुख के शीर्ष पर औरत का प्राकृतिक अधिकार है, हमारा यह उदघोष सदा से ही है।
इतनी लंबी टिप्पणी सिर्फ़ इसलिए कि जो भी पढ़े उसका वैवाहिक जीवन पूरी तरह संतुष्ट हो। संतोष परम धन है और हम भारत के युवक युवकों को ही नहीं बल्कि वृद्धों और वृद्धाओं को भी परम धनी देखना चाहते हैं। विधवा और विधुर सब इस धन से समृद्ध हों।
यह परम धन पास हो तो फिर लौकिक धन मुद्रा की कमी नर नारी को परेशान नहीं करती। उच्च के सामने तुच्छ का मूल्य गौण हुआ करता है।
8:48 am
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
यहीं खिलेंगे फूल
यहीं खिलेंगे फूल
——————–
क्या सरकार है कैसे मंत्री
काहे का सम्मान ??
भिखमंगे जब गली गली हों
भ्रष्टाचारी आम !
——————————
माँ बहनें जब कैद शाम को
भय से भागी फिरतीं
थाना पुलिस कचहरी सब में -
दिखे दु:शासन
बेचारी रोती हों फिरतीं
——————————-
बाल श्रमिक- होटल ढाबों में
मैले –कुचले- भूखे -रोते
अधनंगे भय में शोषित ये
बच्चे प्यारे वर्तन धोते
——————————
इंस्पेक्टर लेबर आफीसर
बैठ वहीं मुर्गा हैं नोचे
खोवा दूध मिलावट सब में
फल सब्जी सब जहर भरा
खून पसीने के पैसे से
क्यों हमने ये तंत्र रचा ??
———————————–
जिसकी लाठी भैंस है उसकी
लिए तमंचा गुंडे घूमें
चुन -चुन हमने- बेटे भेजे
जा कुछ रंग दिखाए
नील में –गीदड़- जा रंगा वो
कठपुतली बन नाचे जाए
———————————
गली -गली जो गला फाड़ते
बदलूँ दुनिया कल तक बोला
मिट्ठू मिट्ठू जा अब बोले
कभी बने बस -भोला-गूंगा
——————————
रिश्ता नाता माँ तक भूला
कैसा नामक हराम !
पढ़ा पढाया गुड गोबर कर
देश न आया काम !
मुंह में राम बगल में छूरी
क्या दुनिया – हे राम !
किस पर हम विस्वास करें हे
नींदे हुयी हराम !
—————————–
आओ भाई सब मिल करके हम
अपना बोझ उठायें
जो हराम की खाएं उनसे
सब हिसाब ले आयें
——————————–
वीर प्रतापी जनता सारी
तुम सब ही हो सच्चे राजा
कर बुलंद आवाजें अपनी
देखो कैसे जग थर्राता
सहो नहीं हे सहो नहीं तुम
एक बनो सब -सच्चे-भ्राता
——————————-
जो काँटा बोओ -पालोगे
यही गड़ें- बन शूल
कहें “भ्रमर” -सूरज- हे निकलो
करो भोर हे ! समय अभी अनुकूल
करो सफाई घर घर अपने
काँटा फेंको दूर
चैन से कोमल शैय्या सो लो
यहीं खिलेंगे फूल
——————–
क्या सरकार है कैसे मंत्री
काहे का सम्मान ??
भिखमंगे जब गली गली हों
भ्रष्टाचारी आम !
——————————
माँ बहनें जब कैद शाम को
भय से भागी फिरतीं
थाना पुलिस कचहरी सब में -
दिखे दु:शासन
बेचारी रोती हों फिरतीं
——————————-
बाल श्रमिक- होटल ढाबों में
मैले –कुचले- भूखे -रोते
अधनंगे भय में शोषित ये
बच्चे प्यारे वर्तन धोते
——————————
इंस्पेक्टर लेबर आफीसर
बैठ वहीं मुर्गा हैं नोचे
खोवा दूध मिलावट सब में
फल सब्जी सब जहर भरा
खून पसीने के पैसे से
क्यों हमने ये तंत्र रचा ??
———————————–
जिसकी लाठी भैंस है उसकी
लिए तमंचा गुंडे घूमें
चुन -चुन हमने- बेटे भेजे
जा कुछ रंग दिखाए
नील में –गीदड़- जा रंगा वो
कठपुतली बन नाचे जाए
———————————
गली -गली जो गला फाड़ते
बदलूँ दुनिया कल तक बोला
मिट्ठू मिट्ठू जा अब बोले
कभी बने बस -भोला-गूंगा
——————————
रिश्ता नाता माँ तक भूला
कैसा नामक हराम !
पढ़ा पढाया गुड गोबर कर
देश न आया काम !
मुंह में राम बगल में छूरी
क्या दुनिया – हे राम !
किस पर हम विस्वास करें हे
नींदे हुयी हराम !
—————————–
आओ भाई सब मिल करके हम
अपना बोझ उठायें
जो हराम की खाएं उनसे
सब हिसाब ले आयें
——————————–
वीर प्रतापी जनता सारी
तुम सब ही हो सच्चे राजा
कर बुलंद आवाजें अपनी
देखो कैसे जग थर्राता
सहो नहीं हे सहो नहीं तुम
एक बनो सब -सच्चे-भ्राता
——————————-
जो काँटा बोओ -पालोगे
यही गड़ें- बन शूल
कहें “भ्रमर” -सूरज- हे निकलो
करो भोर हे ! समय अभी अनुकूल
करो सफाई घर घर अपने
काँटा फेंको दूर
चैन से कोमल शैय्या सो लो
यहीं खिलेंगे फूल
————————————-
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२.४.१२ कुल्लू यच पी
७-७.३९ पूर्वाह्न
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२.४.१२ कुल्लू यच पी
७-७.३९ पूर्वाह्न
दे ऐसा आशीष मुझे माँ आँखों का तारा बन जाऊं
6:19 pm
विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस !
Written By रेखा श्रीवास्तव on सोमवार, 2 अप्रैल 2012 | 6:19 pm
इस विषय में लिखने से पहले मैं बता दूं कि इस बारे में सारी जानकारी मेरी बेटी सोनू ने दी है जो कि औक्यूपेशनल थेरेपिस्ट है और ऑटिज्म के बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ही काम कर रही है।
वैसे तो ऐसे बच्चे सदियों से पाए जाते हें लेकिन इधर ऐसे बच्चों की संख्या बढ़ती चली जा रही है। इस रोग का सीधा सम्बन्ध बच्चे की मष्तिष्क में स्थित नर्वस सिस्टम से होता है। जो जन्मजात होता है और इसके लिए कोई भी स्थायी इलाज नहीं होता है , हाँ इतना अवश्य है कि उस बच्चे को इस काबिल बनाया जा सकता है कि वह अपने कामों को खुद कर सके और यह भी उसके ऑटिज्म के प्रकार पर निभर करता है कि उसको किस तरह की थेरेपी की जरूरत है । इसका निर्धारण उसको चिकित्सा देने वाला खुद ही निश्चित करता है।
सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि अब इस तरह के बच्चों में बढ़ोत्तरी का कारण क्या है?
-- इस तरह के बच्चों की बढती संख्या के पीछे आज अपने करियर के लिए संघर्ष कर रहे माँ बाप अपने की चिंता में बच्चे को जन्म देने के बारे में देर से सोचते हें ।
-- वैसे भी पढ़ाई और करियर के सेट होते होते आज कल विवाह की उम्र बढ़ रही है और विवाह की बढ़ती हुई उम्र इसका एक बड़ा कारण बन गया है।
--अगर परिवार में ऐसे सदस्य पहले से हों तब भी ऑटिज्मग्रस्त बच्चे हो सकते हें।
--जन्म के समय बच्चे का सामान्य व्यवहार न होना भी इस तरह की स्थिति को जन्म दे सकती है जैसे कि बच्चे का पैदा होते ही न रोना। बच्चे का गर्भ से बाहर आते ही रोने से उसके मष्तिष्क में रक्त का संचार पूरी तरह होने लगता है और सके मष्तिष्क में स्थित सारी रक्तवाहिनियाँ सुचारू रूप से है।
-- -- कभी कभी देखने में आता है कि बच्चा एकदम सामान्य होता है लेकिन अचानक तेज बुखार आ जाने से उसके बाद उसके व्यवहार या फिर शारीरिक और मानसिक क्रियायों में बदलाव आ जाता है . ऐसा भी संभव है तेज बुखार की स्थिति में मष्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है और कभी कभी इससे ब्रेन हैमरेज और पक्षाघात तक हो जाता है.
ऑटिज्म के शिकार बच्चों के क्या लक्षण हो सकते हें . पहले ही बता दूं कि ऑटिज्म के कई प्रकार हो सकते हें और इनमें से कुछ तो ऐसे भी हो सकते हें --
१. अति सक्रिय -- इसमें बच्चे जरूरत से अधिक शोर करने वाले , उठापटक करने वाले , चीखने और चिल्लाने वाले हो सकते हें .
२ .अति निष्क्रिय - इसमें बच्चे खामोश प्रवृत्ति के होते हें , वे बात सुन लेते हें तब भी कोई रूचि नहीं दिखाते हें या फिर आप उनसे कोई बात कहें तो आपके कहने के कई मिनट बाद वे उस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हें.
बच्चों के लक्षण ---
कुछ इस प्रकार के भी हो सकते हें कि एकांत में रहना पसंद करते हों. उन्हें समूह में रहना पसंद नहीं होता है. किसी से अधिक मिलना जुलना भी वे पसंद नहीं करते हें.
--कभी कभी उन्हें किसी का अपने को छूना भी पसंद नहीं होता है.
--अँधेरे से डरते हें, अकेले से डरते हें.
--किसी विशेष वस्तु प्रेम भी हो सकता है , जैसे कि कोई भी चीज मैंने एक बच्चे को देखा उसको ढक्कन से विशेष प्रेम था किसी भी चीज का ढक्कन हो. अगर आप उसको हटा देंगे तो वह किसी और चीज के ढक्कन खोल कर ले लेगा.
--ऐसे बच्चे कभी कभी गले लगा लेने पर बहुत खुश हो जाते हें.
--कुछ अपने सामने वाले को मारने पीटने में भी आनंद लेते हें, ऐसे में सामान्य छोटे भाई बहन उनके कहर का शिकार बन जाते हें. माता पिता भी इसके शिकार हो जाते हें. ऐसे बच्चों को बहुत ही धैर्यपूर्वक सभांलने की जरूरत होती हें. .
--बुलाने पर बच्चे कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं करते हें या अनसुना कर देते हें.
--अक्सर ऐसे बच्चे आँखें मिलने में कतराते हें
--समूह में खेलने या पढ़ाने में उनको उलझन होती है और वे अधिक लोगों के बीच रहना पसंद नहीं करते हें.
--अपनी रूचि स्वयं कभी जाहिर नहीं करते हें. आपके पूछने पर भी बतलाने में कोई रूचि नहीं दिखलाते हें.
--अपनी दिनचर्या में समरसता चाहते हें , उन्हें कोई परिवर्तन पसंद नहीं होता है और परिवर्तन करने पर वे चीखने चिल्लाने भी लगते हें.
--
अभिभावकों के लिए :
ऐसे बच्चों के विषय में माता पिता को जल्दी ही निर्णय ले लेना चाहिए. जैसे ही उन्हें लगे कि उनका बच्चा सामान्य से अलग है , उसको डॉक्टर को दिखा कर राय ले लेनी चाहिए. अब इस तरह के बच्चों के लिए अलग से सेंटर खुल गए हें और इसके लिए सरकारी तौर पर भी कई संस्थान हें जहाँ पर इसके लिए ओ पी डी खुले हुए हें और इसके लिए विशेष प्रशिक्षण देकर ओकुपेशनल थेरेपिस्ट तैयार किये जाते हें.
नई दिल्ली में इसके लिए - पं दीन दयाल उपाध्याय विकलांग संस्थान , ४ विष्णु दिगंबर मार्ग पर है. जहाँ पर जाकर अपने बच्चे का परीक्षण करवा कर आप उसके भविष्य के प्रति जागरूक होकर उन्हें एक बेहतर जीवन जीने के लिए तैयार कर सकते हें. इन बच्चों के इलाज की दिशा इनके व्यवहार के अध्ययन के पश्चात् ही निश्चित की जाती हें क्योंकि उनके लक्षणों के अनुसार ही उन्हें थेरेपी दी जाती है.
--इसके ठीक होने का कोई एक उपाय नहीं है बल्कि इसका सुनिश्चित इलाज भी नहीं है बस आपके बच्चे को अपने कार्यों के लिए जो वे खुद नहीं कर सकते हें आत्मनिर्भर होने लायक बनाने के लिए प्रशिक्षण और थेरेपी दी जा सकती है.
--अलग अलग बच्चों में ऑटिज्म की डिग्री अलग अलग होती है, अतः इसके लिए उनके आत्मनिर्भर होने में कुछ समय लग सकता है. वैसे तो सारे जीवन ही इसकी जरूरत हो सकती है लेकिन उचित प्रशिशन और शिक्षा उनको बहुत कुछ सामान्य जीवन जीने योग्य बना देती है.
--इसके शिकार बच्चे कभी कभी स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त करने में सफल हो जाते हें लेकिन इसके लिए उनके माता पिता को बहुत ही मेहनत करनी पड़ती है. इसका एक उदाहरण मेरे सामने है. मेरी एक कलीग की बड़ी बच्ची उसके जन्म के समय उन्होंने गर्भपात के लिए कोई दवा खाई थी और उससे गर्भपात तो नहीं हुआ बल्कि होने वाली बच्ची ऑटिज्म का शिकार हो गयी. उसको याद बहुत देर में होता था. खाने में रूचि नहीं लेती थी. उसका चेहरा भी उसके असामान्य होने का प्रभाव दिखलाता था. लेकिन उनकी माँ के परिश्रम के चलते उन्होंने अपनी बेटी के साथ खुद भी घंटों मेहनत करके उसको बी. कॉम तक शिक्षा दिलवाने में सफल हुई और उसके बाद आगे की तैयारी में हें. ऐसे जागरूक माता पिता नमन के काबिल हें.
अगर किसी का भी बच्चा इस तरह से ऑटिज्म का शिकार है तो उसके लिए हताश न हों बल्कि उसके लिए बेहतर प्रयास करें कि वह बच्चा पूरे जीवन औरों पर निर्भर न होकर अपने कामों के लिए आत्मनिर्भर हो सके तभी आपका दायित्व पूर्ण होता है.
वैसे तो ऐसे बच्चे सदियों से पाए जाते हें लेकिन इधर ऐसे बच्चों की संख्या बढ़ती चली जा रही है। इस रोग का सीधा सम्बन्ध बच्चे की मष्तिष्क में स्थित नर्वस सिस्टम से होता है। जो जन्मजात होता है और इसके लिए कोई भी स्थायी इलाज नहीं होता है , हाँ इतना अवश्य है कि उस बच्चे को इस काबिल बनाया जा सकता है कि वह अपने कामों को खुद कर सके और यह भी उसके ऑटिज्म के प्रकार पर निभर करता है कि उसको किस तरह की थेरेपी की जरूरत है । इसका निर्धारण उसको चिकित्सा देने वाला खुद ही निश्चित करता है।
सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि अब इस तरह के बच्चों में बढ़ोत्तरी का कारण क्या है?
-- इस तरह के बच्चों की बढती संख्या के पीछे आज अपने करियर के लिए संघर्ष कर रहे माँ बाप अपने की चिंता में बच्चे को जन्म देने के बारे में देर से सोचते हें ।
-- वैसे भी पढ़ाई और करियर के सेट होते होते आज कल विवाह की उम्र बढ़ रही है और विवाह की बढ़ती हुई उम्र इसका एक बड़ा कारण बन गया है।
--अगर परिवार में ऐसे सदस्य पहले से हों तब भी ऑटिज्मग्रस्त बच्चे हो सकते हें।
--जन्म के समय बच्चे का सामान्य व्यवहार न होना भी इस तरह की स्थिति को जन्म दे सकती है जैसे कि बच्चे का पैदा होते ही न रोना। बच्चे का गर्भ से बाहर आते ही रोने से उसके मष्तिष्क में रक्त का संचार पूरी तरह होने लगता है और सके मष्तिष्क में स्थित सारी रक्तवाहिनियाँ सुचारू रूप से है।
-- -- कभी कभी देखने में आता है कि बच्चा एकदम सामान्य होता है लेकिन अचानक तेज बुखार आ जाने से उसके बाद उसके व्यवहार या फिर शारीरिक और मानसिक क्रियायों में बदलाव आ जाता है . ऐसा भी संभव है तेज बुखार की स्थिति में मष्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है और कभी कभी इससे ब्रेन हैमरेज और पक्षाघात तक हो जाता है.
ऑटिज्म के शिकार बच्चों के क्या लक्षण हो सकते हें . पहले ही बता दूं कि ऑटिज्म के कई प्रकार हो सकते हें और इनमें से कुछ तो ऐसे भी हो सकते हें --
१. अति सक्रिय -- इसमें बच्चे जरूरत से अधिक शोर करने वाले , उठापटक करने वाले , चीखने और चिल्लाने वाले हो सकते हें .
२ .अति निष्क्रिय - इसमें बच्चे खामोश प्रवृत्ति के होते हें , वे बात सुन लेते हें तब भी कोई रूचि नहीं दिखाते हें या फिर आप उनसे कोई बात कहें तो आपके कहने के कई मिनट बाद वे उस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हें.
बच्चों के लक्षण ---
कुछ इस प्रकार के भी हो सकते हें कि एकांत में रहना पसंद करते हों. उन्हें समूह में रहना पसंद नहीं होता है. किसी से अधिक मिलना जुलना भी वे पसंद नहीं करते हें.
--कभी कभी उन्हें किसी का अपने को छूना भी पसंद नहीं होता है.
--अँधेरे से डरते हें, अकेले से डरते हें.
--किसी विशेष वस्तु प्रेम भी हो सकता है , जैसे कि कोई भी चीज मैंने एक बच्चे को देखा उसको ढक्कन से विशेष प्रेम था किसी भी चीज का ढक्कन हो. अगर आप उसको हटा देंगे तो वह किसी और चीज के ढक्कन खोल कर ले लेगा.
--ऐसे बच्चे कभी कभी गले लगा लेने पर बहुत खुश हो जाते हें.
--कुछ अपने सामने वाले को मारने पीटने में भी आनंद लेते हें, ऐसे में सामान्य छोटे भाई बहन उनके कहर का शिकार बन जाते हें. माता पिता भी इसके शिकार हो जाते हें. ऐसे बच्चों को बहुत ही धैर्यपूर्वक सभांलने की जरूरत होती हें. .
--बुलाने पर बच्चे कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं करते हें या अनसुना कर देते हें.
--अक्सर ऐसे बच्चे आँखें मिलने में कतराते हें
--समूह में खेलने या पढ़ाने में उनको उलझन होती है और वे अधिक लोगों के बीच रहना पसंद नहीं करते हें.
--अपनी रूचि स्वयं कभी जाहिर नहीं करते हें. आपके पूछने पर भी बतलाने में कोई रूचि नहीं दिखलाते हें.
--अपनी दिनचर्या में समरसता चाहते हें , उन्हें कोई परिवर्तन पसंद नहीं होता है और परिवर्तन करने पर वे चीखने चिल्लाने भी लगते हें.
--
अभिभावकों के लिए :
ऐसे बच्चों के विषय में माता पिता को जल्दी ही निर्णय ले लेना चाहिए. जैसे ही उन्हें लगे कि उनका बच्चा सामान्य से अलग है , उसको डॉक्टर को दिखा कर राय ले लेनी चाहिए. अब इस तरह के बच्चों के लिए अलग से सेंटर खुल गए हें और इसके लिए सरकारी तौर पर भी कई संस्थान हें जहाँ पर इसके लिए ओ पी डी खुले हुए हें और इसके लिए विशेष प्रशिक्षण देकर ओकुपेशनल थेरेपिस्ट तैयार किये जाते हें.
नई दिल्ली में इसके लिए - पं दीन दयाल उपाध्याय विकलांग संस्थान , ४ विष्णु दिगंबर मार्ग पर है. जहाँ पर जाकर अपने बच्चे का परीक्षण करवा कर आप उसके भविष्य के प्रति जागरूक होकर उन्हें एक बेहतर जीवन जीने के लिए तैयार कर सकते हें. इन बच्चों के इलाज की दिशा इनके व्यवहार के अध्ययन के पश्चात् ही निश्चित की जाती हें क्योंकि उनके लक्षणों के अनुसार ही उन्हें थेरेपी दी जाती है.
--इसके ठीक होने का कोई एक उपाय नहीं है बल्कि इसका सुनिश्चित इलाज भी नहीं है बस आपके बच्चे को अपने कार्यों के लिए जो वे खुद नहीं कर सकते हें आत्मनिर्भर होने लायक बनाने के लिए प्रशिक्षण और थेरेपी दी जा सकती है.
--अलग अलग बच्चों में ऑटिज्म की डिग्री अलग अलग होती है, अतः इसके लिए उनके आत्मनिर्भर होने में कुछ समय लग सकता है. वैसे तो सारे जीवन ही इसकी जरूरत हो सकती है लेकिन उचित प्रशिशन और शिक्षा उनको बहुत कुछ सामान्य जीवन जीने योग्य बना देती है.
--इसके शिकार बच्चे कभी कभी स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त करने में सफल हो जाते हें लेकिन इसके लिए उनके माता पिता को बहुत ही मेहनत करनी पड़ती है. इसका एक उदाहरण मेरे सामने है. मेरी एक कलीग की बड़ी बच्ची उसके जन्म के समय उन्होंने गर्भपात के लिए कोई दवा खाई थी और उससे गर्भपात तो नहीं हुआ बल्कि होने वाली बच्ची ऑटिज्म का शिकार हो गयी. उसको याद बहुत देर में होता था. खाने में रूचि नहीं लेती थी. उसका चेहरा भी उसके असामान्य होने का प्रभाव दिखलाता था. लेकिन उनकी माँ के परिश्रम के चलते उन्होंने अपनी बेटी के साथ खुद भी घंटों मेहनत करके उसको बी. कॉम तक शिक्षा दिलवाने में सफल हुई और उसके बाद आगे की तैयारी में हें. ऐसे जागरूक माता पिता नमन के काबिल हें.
अगर किसी का भी बच्चा इस तरह से ऑटिज्म का शिकार है तो उसके लिए हताश न हों बल्कि उसके लिए बेहतर प्रयास करें कि वह बच्चा पूरे जीवन औरों पर निर्भर न होकर अपने कामों के लिए आत्मनिर्भर हो सके तभी आपका दायित्व पूर्ण होता है.
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