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प्रोफेशन की आंधी में इंसानी भार न खो दें

Written By Barun Sakhajee Shrivastav on गुरुवार, 21 जून 2012 | 12:07 am

अपने जूनियर्स के प्रति आपका नजरिया कूटनीतिक से ज्यादा ईमानदारी भरा हो यह जरूरी है। कूटनीति भी कंपनी के कुछ हितों के लिए जरूरी है। किंतु ईमानदारी की कीमत पर कतई नहीं। चूंकि आपका जूनियर आपसे ही सीखता है। अगर हम अपने छोटे-छोटे स्वार्थों के चलते जूनियर के लिए नकारात्मक रहेंगे तो संभव है कि हम अपना इंसानी वजन तो खो ही रहे हैं, साथ ही कंपनी को भी एक खुराफाती ब्रेन दे रहे हैं। कई फैसले, जिनमें जूनियर यह अपेक्षा करता है कि इसमें रिस्क फैक्टर है तो निर्णय आप लें और उसे अमल करने को कहें। तो हमें ही साफ कर देना चाहिए कि यह करना है या नहीं करना है। खासकर तब, जबकि वह फैसला हम भी स्वयं लेने में डर रहे हों। कहीं कोई ऐसी बात न हो जाए, जो कंपनी की पॉलिसी के विपरीत हो। ऐसी स्थिति में जिम्मदारी और साहस की बड़ी जरूरत होती है। और ऐसा तभी हो सकता है, जब हम सिर्फ और सिर्फ काम के प्रति सजग, समर्थ, बहादुर और जिम्मेदार होंगे। कंपनियों के मुख्य काम के अलावा भी कई जिम्मेदारियां सीनीयर्स के कंधों पर होती हैं, ऐसे में मुमकिन है कि हम लगातार कूटनीतिक होते चले जाएं। किंतु इन सब पेशेवराना तंग दर्रो से भी होकर हमें अपने आपको बेहद साफ सुथरा और खासकर ईमानदार बने रहना होगा। दरअसल यह बात जेहन में उस वक्त आई, जब गांव के बहुत धनाड्य रहे परिवार के अंतिम सदस्य की बड़ी गुरवत में दम तोडऩे की खबर सुनी। दुनिया से जाने के बाद उनके बारे में जो ख्याल आया वह बड़ा नकारात्मक था। दिमाग के सिनेमा हॉल में उनके जीवन की डॉक्यूमेंट्री चलने लगी। वे बड़े सेठ हुआ करते थे। इस समय उन पर कई व्यावसायिक जिम्मेदारियां थीं। वे अपने कर्मचारियों के प्रति ऐसा रवैया रखते थे, कि अगर कल को बड़े सेठ नाराज हुए तो वे गोलमोल कुछ ऐसा कह सकें कि ठीकरा कर्मचारी पर फूट जाए। जब भी उनसे किसी बड़े फैसले के लिए पूछा जाता तो वे कोई ऐसी बात करते कि वह घूम फिरकर पूछने वाले की ही जिम्मेदारी रह जाए। ऐसे में कई कर्मचारी परेशान भी रहते थे। किंतु वह कुछ बोल नहीं सकते थे। यह बात इतनी शातिर तरीके से वे करते थे कि लोग समझ ही नहीं पाते। लेकिन जब उन सेठ के यहां से कर्मचारी दूसरी जगह काम पर गए तो उन्हें कहने के लिए एक भी काम से जुड़ा उदाहरण नहीं मिला। नई जगह पर भी उनके काम में यही डर रहा कि हमारा बॉस कोई भी बात हमपर ही ढालेगा। छोटे सेठ इस बात की लंबे समय तक ताल भी ठोकते रहे। आज जब नव पेशेवर युग शुरू हुआ तो न उन सेठ जी का पता चला और वैसे कर्मचारियों का। असली में उदारवाद के बाद तेजी से देश में नव पेशेवर युग जो शुरू हुआ है, तो कोई भी ऐसी कंपनियां, लोग, संस्थाएं या विचार आगे नहीं बढ़ पा रहे, जो स्पष्ट और ईमानदार न हों। यह नकारात्मक विचार होता है कि झूठ जीत रहा है, बल्कि मुझे तो कई बार लगता है कि सतयुग आ रहा है। ऐसे लोग इतनी तेजी से रिप्लेस हो रहे हैं, कि अगले 6-8 सालों में पेंशनर्स हो जाएंगे। वक्त ने हमेशा अपने साथ बदलने वालों को ही साथ में लिया है, जो नहीं बदले वे दूर कहीं पीछे रह गए हैं। गोलमोल बात, अस्पष्ट विचार, सोले के सिक्के (दोनों तरफ एक से, सिर्फ भ्रम भर रहे कि दो पहलू होंगे) जैसे गैर इंसानी भार के लोग अगले दशक तक अल्प संख्यक हो जाएंगे। वरुण के सखाजी
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1 टिप्पणियाँ:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सार्थक प्रस्तुति!
शेअर करने के लिए आभार!

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