मोदी दुनियाभर में अप्रवासी भारतीयों को बरगला रहे हैं। वे भी भावनाओं में बहकर भारतीय तिरंगा लहरा रहे हैं। ये संबंधित देश की नजर में देशद्रोह नहीं तो और क्या है। ऐसे में अप्रवासियों को देश निकाला सुना दिया जाए तो कौन जिम्मेदार होगा। यूं भी ये कोई विश्वसनीय नहीं हैं। जब भारत भूखा था तो इसे गरियाते हुए भाग गये थे और आज जब भारत का पेट भर रहा है तो फिर आएंगे। जब खराब हाल होंगे तो फिर भागेंगे। यद्दपि एसे सब नहीं हैं, किंतु अधिकतर हैं। जो नहीं हैं उनसे क्षमा। मोदीजी तो पांच साल के लिए हैं भैया। अप्रवासियों के लिए ये नासूर न बन जाए। हर-हर मोदी घर-घर मोदी।
-सखाजी
12:06 am
क्यों बरगला रहे हो मोदीजी
Written By Barun Sakhajee Shrivastav on मंगलवार, 14 अप्रैल 2015 | 12:06 am
11:13 am
चैन दिल का हम कहाँ तलाशते रहे |
Written By Nazeel on गुरुवार, 2 अप्रैल 2015 | 11:13 am
चैन दिल का हम कहाँ तलाशते रहे |
इस ज़मीं से आसमां तलाशते रहे ||
और चेहरों में नहीं मिली हमें ,
या खुदा ! ताउम्र माँ तलाशते रहे ||
ये कहे हिन्दू ,कहे मुस्लमान वो,
ना मिला हमको ,इंसां तलाशते रहे |
कुछ आया न हाथ तो उदास से हुए ,
ख़ाक से मेरी दास्ताँ तलाशते रहे ||
नींद आई थी कहाँ हिज्र की रात में ,
बस उसे अपने दरम्याँ तलाशते रहे ||
बात ही तो थी "नज़ील" ये नसीब की ,
उजड़ के हम पासबाँ तलाशते रहे ||
इस ज़मीं से आसमां तलाशते रहे ||
और चेहरों में नहीं मिली हमें ,
या खुदा ! ताउम्र माँ तलाशते रहे ||
ये कहे हिन्दू ,कहे मुस्लमान वो,
ना मिला हमको ,इंसां तलाशते रहे |
कुछ आया न हाथ तो उदास से हुए ,
ख़ाक से मेरी दास्ताँ तलाशते रहे ||
नींद आई थी कहाँ हिज्र की रात में ,
बस उसे अपने दरम्याँ तलाशते रहे ||
बात ही तो थी "नज़ील" ये नसीब की ,
उजड़ के हम पासबाँ तलाशते रहे ||
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