आज 24 अगस्त है ... आज राजगुरु जी की 104वी जयंती है ...
देश के लिए क़ुर्बान होने वाले वीरों के लिए "हिंदी ब्लोगर्स फोरम इंटरनेश्नल" की और से प्रेममय मनोभाव .
शिवराम हरि राजगुरु मराठी थे . उन्होंने हिन्दू धर्म-ग्रंन्थों तथा वेदों का अध्ययन तो किया ही लघु सिद्धान्त कौमुदी जैसे क्लिष्ट ग्रन्थ को भी बहुत कम आयु में ही कण्ठस्थ कर लिया था। वह छत्रपति शिवाजी की छापामार युद्ध-शैली के बड़े प्रशंसक थे.
इसके बावजूद वह क्षेत्रवाद और सांप्रदायिकता की भावना से ऊपर थे . अपने मन की संकीर्णता से मुक्ति पाना अंग्रेजों से मुक्ति पाने से भी ज़्यादा कठिन काम है. यह काम उन्होंने किया और हमारे लिए एक अच्छी मिसाल क़ायम की.
उनका जन्म 24 अगस्त 1908 को हुआ था. आज उनके जन्मदिन पर हम सब अपने मन को संकीर्णताओं से मुक्त करने का संकल्प लें.
उन्हें 23 मार्च 1931 को फाँसी पर लटका दिया गया था ।
जिन्हें फाँसी पर नहीं लटकाया गया, उनके काल के दूसरे सब भी मर चुके हैं. उन्हें फांसी देने वाला जल्लाद, जज और अंग्रेज़ सब मर गए हैं.
मौत सबको आनी है. उन्हें आई है तो हमें भी आएगी.
हम अपने मन को निर्मल बनाकर जियें और बुराई से पवित्र हो कर मर जाएँ, तो हम सफल रहे.
यह एक लड़ाई हरेक आदमी अपने आप से लड़ ले तो हमारे देश की हर समस्या हल हो जायेगी.
वर्ना हिसाब लेने वाला एक प्रभु परमेश्वर तो हमारे सभी छिपे और खुले कामों का साक्षी है ही.
अपने शुभ अशुभ कर्मों को खुद हमें ही भोगना है.
शिवराम हरि राजगुरु मराठी थे . उन्होंने हिन्दू धर्म-ग्रंन्थों तथा वेदों का अध्ययन तो किया ही लघु सिद्धान्त कौमुदी जैसे क्लिष्ट ग्रन्थ को भी बहुत कम आयु में ही कण्ठस्थ कर लिया था। वह छत्रपति शिवाजी की छापामार युद्ध-शैली के बड़े प्रशंसक थे.
इसके बावजूद वह क्षेत्रवाद और सांप्रदायिकता की भावना से ऊपर थे . अपने मन की संकीर्णता से मुक्ति पाना अंग्रेजों से मुक्ति पाने से भी ज़्यादा कठिन काम है. यह काम उन्होंने किया और हमारे लिए एक अच्छी मिसाल क़ायम की.
उनका जन्म 24 अगस्त 1908 को हुआ था. आज उनके जन्मदिन पर हम सब अपने मन को संकीर्णताओं से मुक्त करने का संकल्प लें.
उन्हें 23 मार्च 1931 को फाँसी पर लटका दिया गया था ।
जिन्हें फाँसी पर नहीं लटकाया गया, उनके काल के दूसरे सब भी मर चुके हैं. उन्हें फांसी देने वाला जल्लाद, जज और अंग्रेज़ सब मर गए हैं.
मौत सबको आनी है. उन्हें आई है तो हमें भी आएगी.
हम अपने मन को निर्मल बनाकर जियें और बुराई से पवित्र हो कर मर जाएँ, तो हम सफल रहे.
यह एक लड़ाई हरेक आदमी अपने आप से लड़ ले तो हमारे देश की हर समस्या हल हो जायेगी.
वर्ना हिसाब लेने वाला एक प्रभु परमेश्वर तो हमारे सभी छिपे और खुले कामों का साक्षी है ही.
अपने शुभ अशुभ कर्मों को खुद हमें ही भोगना है.
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