हर किसी की आंख में फिर क्यों नहीं चुभता बहुत.
कोयले की खान में दबकर रहा हीरा बहुत.
इसलिए मैं धीरे-धीरे सीढियां चढ़ता रहा
पंख कट जाते यहां पर मैं अगर उड़ता बहुत.
ज़िन्दगी इकबार भटकी तो भटकती ही गयी
सबने समझाया बहुत समझा मगर थोडा बहुत.
रात भर बिस्तर पे कोई करवटें लेता रहा
रातभर रोता रहा बिल्ली का एक बच्चा बहुत.
Read more: http://www.gazalganga.in/2012/08/blog-post_29.html#ixzz256IuUITZ
कोयले की खान में दबकर रहा हीरा बहुत.
इसलिए मैं धीरे-धीरे सीढियां चढ़ता रहा
पंख कट जाते यहां पर मैं अगर उड़ता बहुत.
ज़िन्दगी इकबार भटकी तो भटकती ही गयी
सबने समझाया बहुत समझा मगर थोडा बहुत.
रात भर बिस्तर पे कोई करवटें लेता रहा
रातभर रोता रहा बिल्ली का एक बच्चा बहुत.
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