फिर भी सबक नहीं ले रहा आज का इंसान !
मिट गए सारे जंगल - पर्वत
खून का प्यासा युद्धखोर अब यह मानव बेईमान ,
हिंसा-प्रतिहिंसा में जल कर जग बनता श्मशान !
इसीलिए तो धमका जाए
, कुछ लोगों की करनी से है यह दुनिया परेशान !
गंगा -जमुना मैली हो गयी
झूठ-फरेब की आदत और एक झूठा अभिमान ,
महंगाई का खूनी मंज़र रोज निकाले प्राण ,
फिर भी सबक नहीं ले रहा आज का इंसान !
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें
Thanks for your valuable comment.