आज
के जमाने में विज्ञान आपको जरूर आना चाहिए। अगर विज्ञान नहीं आता तो, कम
से कम विज्ञान समझना तो आना ही चाहिए। विज्ञान वैसा नहीं कि एक पौधे का
अध्ययन करने लग गए। विज्ञान वैसा भी नहीं कि विज्ञानिक बन गए। मुझे
विज्ञान नहीं आता था। कभी नहीं आया, तो मैंने जिल्लत भी खूब झेली। इसलिए
मैं चाहता हूं कि अब आने वाली हर पीढ़ी को विज्ञान आए।
एक बार तो मेरी दीदी के ससुर ने मुझे बिल्कुल ही बेज्जत कर दिया था। ऐसे नहीं कि यह कहा हो, तुम्हें विज्ञान क्यों नहीं आता, बल्कि दूसरे तरीके से। हुआ यूं कि हम लोग आंगन में बैठे थे, कि तभी बरामदे में टेलीफोन घनघनाया। तो वे गए उस पर बात करने लगे, थोड़ी देर बाद आए, तो बोले, रवि बड़े पीछे रह गए। रवि उनके छोटे भाई के छोटे बेटे हैं, उन्होंने आगे कहा, रवि ने बारहवीं तक तो मन लगाकर पढ़ाई की फिर भटक गए। बीए कर बैठे। आज कल विज्ञान के बिना होता है भला कुछ। अब मुझे काटो तो खून नहीं। क्या बोलता, इसलिए हूं...हूं करके मुस्कुराया कुछ यूं जैसे गरीब आदमी भव्यता देखकर स्माइली चेहरा लिए और दीन सा लगने लग जाता है।
इसलिए मैं कहता हूं विज्ञान जरूर समझो और सीखो। यह सोचते-सोचते मेरी आंख लग गई। यूं तो मुझे कभी सपने नहीं आते, मगर आज आ गया। यह सपना डरावना था, सुहावना था, मजेदार था, कह तो नहीं सकता। मगर देखने के बाद विज्ञान भाई का महत्व समझ लिया और यह भी जान लिया, कि विज्ञान भाई का भरपूर इस्तेमाल करने से भी वे खुश रहते हैं।
सपने में देखा, कि मैं मुंबई में हूं। वहां पहुंचने में मुझे 16 घंटों से भी ज्यादा का वक्त लगा है। वहीं मेरे साथ एक मेरे ही जैसी हैसियत वाले और भी गए थे, तो वे जरा में पंहुच गए। मुझे लगा, वे शायद फ्लाइट से आए होंगे। लेकिन मन मानने ही तैयार नहीं हुआ। चूंकि वे खटारा सी मोटरसाइकिल से ऑफिस आते हैं, और पत्रकारों की सेवा आजकल कौन करता है, अखबार मालिक ही सेवाएं लेने के लिए तत्पर हैं तो। फिर ऐसा हो कैसे सकता है, कि वे फ्लाइट से आएं।
तभी वहां किसी शख्स ने कहा वे कूदकर आए हैं। मुझे लगा ये कैसे आना हुआ। आजतक तो मैं बैलगाड़ी, घोड़े की पीठ, साइकिल, मोटरसाइकिल, ऑटो, बस, रेल या हवाई से ही सफर के बारे में सुनता आया हूं, यह कूदकर आना क्या हुआ। तब किसी ने कहा आपको नहीं पता? मैंने अज्ञानता में सिर हिलाया, ठीक वैसे ही जैसे 11वीं में रसायन पढ़ते वक्त हिलाता था। बस फर्क इतना था, कि 11वीं क्लास में जब रसायन नहीं समझ आती तो न में सिर हिलाने से भी मैडम दोबारा नहीं समझाती, बल्कि दीन, बुद्धिहीन सोचकर अगले चैप्टर की ओर बढ़ जाती। मैं भी अपनी राह पकड़ लेता, चलो अच्छा हुआ, वह समझाती भी तो कौन अपन को समझ में आने वाली थी। फिर कहीं वह यह पूछती कि क्या समझ में नहीं आया तब तो अपन मर ही जाते। क्या बताते?
किंतु यहां वाले विज्ञानी ने समझाया। उन्होंने कहा आज कल स्वप्न टेक्निक आ गई न। इसमें एक परोगराम होता है, दिमाग में। बस तो उसे एक्टिवेट कर दो फिर जैसे ही नींद लगेगी, जो कुछ भी आपने उस परोगराम में सेट किया है, उसके मुताबिक आप वहां पहुंचा जाओगे। बस इसे ही कूदना कहते हैं।
हमें यकीन नहीं हुआ, तो उन्होंने एक्सपैरीमेंट करके बताया। वे सोफे पर बैठे और हाथ माथे पर लगाकर कुछ करने लगे और अगले 5 मिनट में वैपोराइज होने लगे। बस क्या था, देखते ही देखते वहां सोफे पर बैठा वह पूरा खासा आदमी गायब हो गया। वह देखकर मैंने भी माथा रगड़ा, कुछ नहीं हुआ। थोड़ी देर बाद वह भाई सामने रखे एक सोफे पर जमने लगा। मुझे याद आया जैसे धार्मिक धारावाहिकों में लोग गायब होते हैं, वैसे ही कुछ हुआ। तब वे पूरे आ चुके थे, तो बोले, देखा। इसे कोई चमत्कार न समझें, बस एक छोटा सा एप मैं दूंगा उसे आप कान में डराप की तरह डाल लेना, वह दिमाग में जाएगा और इंस्टॉल हो जाएगा। फिर मैं आपको ऑपरेटिंग बता दूंगा।
हमारा मुंह खुला है तो बंद नहीं हो रहा था। दिमाग मे एक एप्लीकेशन कान से डरॉप के जरिए भी इंस्टॉल हो सकती है।
हमने उन सज्जन से कहा आप तो महान हैं, तो वे बोले। इसमें महान कैसा? मैंने थोड़े ही बनाया है, यह तो बाजार में मिलता है। बस हमें यूज करना है। तब मुझे समझ में आया कि विज्ञान को यूज करना भी एक तरह का विज्ञानी बनने जैसा है। हमें इस एप के बारे में बताने वाला शख्स हमें कुछ पलों के लिए तो भगवान लगा, ठीक उसी तरह जैसे बॉयो पढ़ाने वाले व्यासजी लगते थे। चूंकि उन्हें वह आता था, जो हमें नहीं आता था और हमें जो आता था, वह उन्हें न आए यह हो नहीं सकता था। यानी गाली, क्लास बंक,बहाने, स्कूल न जाने के 100 तरीके आदि। व्यासजी के बारे में ऐसी ही किंवदंतियां थी, उस वक्त कि वे बहुत बड़े विज्ञानी होते, अगर स्टेशन पर सोए नहीं होते। हमें लगता था सही होगा, चूंकि उन्हें बॉयो आती भी थी। विज्ञानी और किसे कहते हैं? अब करीब 15 सालों बाद क्लियर हो रहा है, कि विज्ञान को मानना ही उसे समझना है, सीखना है, इस्तेमाल ही उसका सही ज्ञान है।
- सखाजी
एक बार तो मेरी दीदी के ससुर ने मुझे बिल्कुल ही बेज्जत कर दिया था। ऐसे नहीं कि यह कहा हो, तुम्हें विज्ञान क्यों नहीं आता, बल्कि दूसरे तरीके से। हुआ यूं कि हम लोग आंगन में बैठे थे, कि तभी बरामदे में टेलीफोन घनघनाया। तो वे गए उस पर बात करने लगे, थोड़ी देर बाद आए, तो बोले, रवि बड़े पीछे रह गए। रवि उनके छोटे भाई के छोटे बेटे हैं, उन्होंने आगे कहा, रवि ने बारहवीं तक तो मन लगाकर पढ़ाई की फिर भटक गए। बीए कर बैठे। आज कल विज्ञान के बिना होता है भला कुछ। अब मुझे काटो तो खून नहीं। क्या बोलता, इसलिए हूं...हूं करके मुस्कुराया कुछ यूं जैसे गरीब आदमी भव्यता देखकर स्माइली चेहरा लिए और दीन सा लगने लग जाता है।
इसलिए मैं कहता हूं विज्ञान जरूर समझो और सीखो। यह सोचते-सोचते मेरी आंख लग गई। यूं तो मुझे कभी सपने नहीं आते, मगर आज आ गया। यह सपना डरावना था, सुहावना था, मजेदार था, कह तो नहीं सकता। मगर देखने के बाद विज्ञान भाई का महत्व समझ लिया और यह भी जान लिया, कि विज्ञान भाई का भरपूर इस्तेमाल करने से भी वे खुश रहते हैं।
सपने में देखा, कि मैं मुंबई में हूं। वहां पहुंचने में मुझे 16 घंटों से भी ज्यादा का वक्त लगा है। वहीं मेरे साथ एक मेरे ही जैसी हैसियत वाले और भी गए थे, तो वे जरा में पंहुच गए। मुझे लगा, वे शायद फ्लाइट से आए होंगे। लेकिन मन मानने ही तैयार नहीं हुआ। चूंकि वे खटारा सी मोटरसाइकिल से ऑफिस आते हैं, और पत्रकारों की सेवा आजकल कौन करता है, अखबार मालिक ही सेवाएं लेने के लिए तत्पर हैं तो। फिर ऐसा हो कैसे सकता है, कि वे फ्लाइट से आएं।
तभी वहां किसी शख्स ने कहा वे कूदकर आए हैं। मुझे लगा ये कैसे आना हुआ। आजतक तो मैं बैलगाड़ी, घोड़े की पीठ, साइकिल, मोटरसाइकिल, ऑटो, बस, रेल या हवाई से ही सफर के बारे में सुनता आया हूं, यह कूदकर आना क्या हुआ। तब किसी ने कहा आपको नहीं पता? मैंने अज्ञानता में सिर हिलाया, ठीक वैसे ही जैसे 11वीं में रसायन पढ़ते वक्त हिलाता था। बस फर्क इतना था, कि 11वीं क्लास में जब रसायन नहीं समझ आती तो न में सिर हिलाने से भी मैडम दोबारा नहीं समझाती, बल्कि दीन, बुद्धिहीन सोचकर अगले चैप्टर की ओर बढ़ जाती। मैं भी अपनी राह पकड़ लेता, चलो अच्छा हुआ, वह समझाती भी तो कौन अपन को समझ में आने वाली थी। फिर कहीं वह यह पूछती कि क्या समझ में नहीं आया तब तो अपन मर ही जाते। क्या बताते?
किंतु यहां वाले विज्ञानी ने समझाया। उन्होंने कहा आज कल स्वप्न टेक्निक आ गई न। इसमें एक परोगराम होता है, दिमाग में। बस तो उसे एक्टिवेट कर दो फिर जैसे ही नींद लगेगी, जो कुछ भी आपने उस परोगराम में सेट किया है, उसके मुताबिक आप वहां पहुंचा जाओगे। बस इसे ही कूदना कहते हैं।
हमें यकीन नहीं हुआ, तो उन्होंने एक्सपैरीमेंट करके बताया। वे सोफे पर बैठे और हाथ माथे पर लगाकर कुछ करने लगे और अगले 5 मिनट में वैपोराइज होने लगे। बस क्या था, देखते ही देखते वहां सोफे पर बैठा वह पूरा खासा आदमी गायब हो गया। वह देखकर मैंने भी माथा रगड़ा, कुछ नहीं हुआ। थोड़ी देर बाद वह भाई सामने रखे एक सोफे पर जमने लगा। मुझे याद आया जैसे धार्मिक धारावाहिकों में लोग गायब होते हैं, वैसे ही कुछ हुआ। तब वे पूरे आ चुके थे, तो बोले, देखा। इसे कोई चमत्कार न समझें, बस एक छोटा सा एप मैं दूंगा उसे आप कान में डराप की तरह डाल लेना, वह दिमाग में जाएगा और इंस्टॉल हो जाएगा। फिर मैं आपको ऑपरेटिंग बता दूंगा।
हमारा मुंह खुला है तो बंद नहीं हो रहा था। दिमाग मे एक एप्लीकेशन कान से डरॉप के जरिए भी इंस्टॉल हो सकती है।
हमने उन सज्जन से कहा आप तो महान हैं, तो वे बोले। इसमें महान कैसा? मैंने थोड़े ही बनाया है, यह तो बाजार में मिलता है। बस हमें यूज करना है। तब मुझे समझ में आया कि विज्ञान को यूज करना भी एक तरह का विज्ञानी बनने जैसा है। हमें इस एप के बारे में बताने वाला शख्स हमें कुछ पलों के लिए तो भगवान लगा, ठीक उसी तरह जैसे बॉयो पढ़ाने वाले व्यासजी लगते थे। चूंकि उन्हें वह आता था, जो हमें नहीं आता था और हमें जो आता था, वह उन्हें न आए यह हो नहीं सकता था। यानी गाली, क्लास बंक,बहाने, स्कूल न जाने के 100 तरीके आदि। व्यासजी के बारे में ऐसी ही किंवदंतियां थी, उस वक्त कि वे बहुत बड़े विज्ञानी होते, अगर स्टेशन पर सोए नहीं होते। हमें लगता था सही होगा, चूंकि उन्हें बॉयो आती भी थी। विज्ञानी और किसे कहते हैं? अब करीब 15 सालों बाद क्लियर हो रहा है, कि विज्ञान को मानना ही उसे समझना है, सीखना है, इस्तेमाल ही उसका सही ज्ञान है।
- सखाजी
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