गीत
जाने कितने बेघर हो गए !
, क़त्ल हो गए झरने
खेतों में धुंए की बारिश ,
फसल लगी है मरने !
समझे खुद को धरती और
समन्दर का स्वामी ,
बार-बार सुनामी !
मिट जाएगा देख लेना सबका नाम-ओ-निशान
खुल कर पापी मुस्काएं ,
पाप नहीं मिट पाएगा
चाहे बार-बार धुलवाए !
महासागर के रौद्र रूप से मटियामेट मकान !
नदियों के मीठे पानी को
बना दिया ज़हरीला ,
सहज-सलोना गाँव मिटाया
शहर बसा रंगीला !
-- स्वराज्य करुण
जाने कितने बेघर हो गए !
जाने कितने बेघर हो गए ,कितने ही बेजान ,
फिर भी सबक नहीं ले रहा आज का इंसान !
मिट गए सारे जंगल - पर्वत
खून का प्यासा युद्धखोर अब यह मानव बेईमान ,
हिंसा-प्रतिहिंसा में जल कर जग बनता श्मशान !
इसीलिए तो धमका जाए
, कुछ लोगों की करनी से है यह दुनिया परेशान !
गंगा -जमुना मैली हो गयी
झूठ-फरेब की आदत औ एक झूठा अभिमान ,
महंगाई का खूनी मंज़र रोज निकाले प्राण ,
फिर भी सबक नहीं ले रहा आज का इंसान !
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