नियम व निति निर्देशिका::: AIBA के सदस्यगण से यह आशा की जाती है कि वह निम्नलिखित नियमों का अक्षरशः पालन करेंगे और यह अनुपालित न करने पर उन्हें तत्काल प्रभाव से AIBA की सदस्यता से निलम्बित किया जा सकता है: *कोई भी सदस्य अपनी पोस्ट/लेख को केवल ड्राफ्ट में ही सेव करेगा/करेगी. *पोस्ट/लेख को किसी भी दशा में पब्लिश नहीं करेगा/करेगी. इन दो नियमों का पालन करना सभी सदस्यों के लिए अनिवार्य है. द्वारा:- ADMIN, AIBA

Home » »

Written By Anurag Anant on रविवार, 27 फ़रवरी 2011 | 5:26 pm


क्या करें जाये कहाँ ,
राह  कोई दिखती नहीं है ,
ये भूँख की दीवार  है ,
पानी से गिरती नहीं है ,
रात में सोते है हम ,
दाब के घुटनों से पेट ,
बिक रहें हैं आज हम ,
लोग लगा रहें हैं आज रेट ,
१० रू ० रोज में हम बचपन बेच रहें हैं 
झरना बने हुयें  हैं परिवार सींच रहें हैं ,
हम अपने नन्हें हाँथों कचरा ढोते हैं ,
हम भूंख के मारे भैया जी  रिक्शा खीँच रहे हैं ,
बाबू जी हमे बचा लो वरना,
हम सब विद्रोही हो जायेंगें  ,
या नक्सलवादी  हो जायेंगे,
या फिर आतंकवादी हो जायेंगे ,
 बाबू  जी हमे बचा लो वरना ,
हम सब विद्रोही हो जायेंगे ,
''तुम्हारा -- अनंत ''
anantsabha.blogspot.com/  anuraganant.blogspot.com
Share this article :

2 टिप्पणियाँ:

Shikha Kaushik ने कहा…

jab taq babuji jaise log hain tab taq ek varg ke bachche kachra hi uthate rahenge.samaj me samanta zaroori hai.sarthak prastuti.

Shalini kaushik ने कहा…

samaj me ye vishamta jab taq vyapt hai tab taq aise udgar sunai dete hi rahenge.nice post.

एक टिप्पणी भेजें

Thanks for your valuable comment.