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Written By Bisari Raahein on सोमवार, 28 मार्च 2011 | 10:54 pm


    " विश्वास की लौ"
विचार टूटते रहते हैं ,
विचार बनते रहते हैं ,
विचारों का क्या है?
विचार तो विचार हैं ,
हमारे मनों के रूप- संचार हैं ,
नहीं टूटना चाहिए वो बंधन ,
जो विश्वास से बनता है,
प्यार में पलता है ,
सहयोग से चलता है ,
इस बंधन से ही
तो समाज बना है ,
जो भाईचारे और
एकता में ढला है ,
देश की उन्नति व
विकास में ,
सहायक है विश्वास ,
राष्ट्र की एकता व
प्रगति में
सहायक है विश्वास ,
क्यों आज
नैतिकता गिर गई है ,
सामाजिक मूल्यों व
जीवन- स्तर में
गिरावट आई है ,
इन सब के पीछे
जो कारण है वो ..
कि उठ गया है विश्वास ,
आदमी का आदमी से ,
माँ- बाप का संतान से ,
भाई का बहन से ,
बहन का भाई से ,
घट गया है विश्वास ,
अपने - आप में ,
इस जहान में
और भगवान में ,
अराजकता फ़ैल रही है,
आज जहान में ,
"कायत " चुप क्यों है फिर ?
इस घुटन व उफान में ,
जब देश की
बेपतवारी नाव ,
घिर रही हो तूफ़ान  में ,
कुछ न कुछ
तो करना होगा ,
रौशनी के लिए
जलना होगा ,
विश्वास की जोत
जलानी है ,
जन -जन तक
पहुँचानी है ,
हर कोई गाए
विश्वास के गीत ,
तभी होगी
लेखनी की जीत ,
तभी होगी लेखनी की जीत .... 






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1 टिप्पणियाँ:

हरीश सिंह ने कहा…

जीवन के हर पहलू में विश्वास आवश्यक है. अच्छी कविता...

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