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राजस्थान हाई कोर्ट के बाहर न्याय में देरी को लेकर एक व्यक्ति के जहर खाने की घटना को गम्भीरता से नहीं लिया तो अराजकता के हालात से नहीं बच सकेंगे हम लोग

Written By आपका अख्तर खान अकेला on गुरुवार, 1 मार्च 2012 | 8:27 am


राजस्थान हाई कोर्ट के बाहर न्याय के इन्तिज़ार में वर्षों से भटक रहे एक व्यक्ति ने नेराश्य में आकर जहर खाकर अपनी इह लीला समाप्त करने की कोशिश की वेसे तो उसे बचा कर न्याय के मन्दिर के बाहर खुद के साथ यह अन्याय करने के लियें दंड भुगतना पढ़ेगा लेकिन न्याय में देरी के मामले को लेकर ..शीर्ष अदालत के बाहर इस व्यक्ति की इस निराशा ने देश के न्यायालयों में देरी से मिल रहे फ़सलों के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया है ........हमारे संविधान में न्याय पालिका ..कार्यपालिका ..संसद तीन स्तम्भ है सभी लोगों पर कहीं न कहीं भ्रष्टाचार और लेट लतीफी के मामले उजागर होते रहे है .............न्याय के मन्दिर भी इससे अछूते नहीं रहे है जजों के खिलाफ महा अभियोग तक लगाये गये है जबकि खुद सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने भ्रष्ट और दागी जजों को नोकरी से निकल कर अपना दामन साफ करने की कोशिश की है ...लेकिन न्याय में देरी और विरोधाभासी न्याय दोनों ऐसे तथ्य है जिन पर न्यायालयों और देश की संसद को विचार करना होगा ..कहते है न्यायालय सुप्रीम है फिर कहते है संसद सुप्रीम है फिर कहते है कार्यपालिका सुप्रीम है व्यवहार में सब जानते है के यह सुप्रिमेसी की जंग ने हमारेदेश में अराजकता फेला दी है ..हमारे देश में एक छोटा सा मुकदमा जिसका फेसला कानून में दिन प्रतिदिन सुनवाई के बाद तुरंत किये जाने का प्रावधान है महीनों नहीं सालों और कई सालों तक चलाया जाता है ..देश की कई अदालतों में तो जज नहीं है हमारे राजस्थान के कोटा में तेरह मजिस्ट्रेटों में से नो मजिस्ट्रेट नहीं है जबकि दो जज ..एक मोटर यान दुर्घटना क्लेम जज ...अनुसूचित मामलात जज और खुद जिला जज कोटा में नहीं है ..बात हंसने की नहीं है यह सच है यहाँ एक तरफ तो कोटा के वकीलों ने पक्षकारों का हित बताकर कोटा में राजस्थान हाईकोर्ट बेंच की मांग को लेकर ऐतिहासिक गिनीज़ रिकोर्ड में दर्ज होने वाली हडताल की है और आज न्याय के मन्दिर में जज नहीं होने से कोटा का वकील शर्मिंदा है ...राजस्थान में वकील कोटे से ऐ डी जे की नियुक्ति कहीं ना कहीं उलझती रही है ...देश में एक तरफ तो सेठी आयोग की रिपोर्ट लागू करने का दबाव रहा है जिसमे प्रत्येक तहसील स्तर पर जजों की नियुक्ति और समय बद्ध न्याय का प्रावधान रख कर सिफारिश की गयी है और दूसरी तरफ सरकार ने न्यायालयों की स्थिति यह कर रखी है के यहाँ जजों के बेठने और बाबुओं के फ़ाइल रखने तक के भवन के लाले पढ़े है कहने को तो विधिक न्यायिक प्राधिकरण ..मेडितियेष्ण सेंटर खोले गये है लेकिन इसका फायदा जनता को खान मिल रहा है कुछ देखने को नहीं मिलता ..देश के और खासकर राजस्थान के वकील ..जज रिटायर्ड जज जरा अपने सिने पर हाथ रख कर देखें क्या वोह यहाँ की जनता को समय बद्ध न्याय देने के लियें वचन बद्ध और कर्तव्यबद्ध है सभी लोग आंकड़ों की भूल भुलय्या में फंस गये है हाईकोर्ट चाहता है के निचली अदालते काम करें निचले अदालतों में जज नहीं है एक अदालत के पास चार चार अदालतों के कम है और फिर आंकड़ों का भ्रमजाल कोटा कितने मामले दायर हुए कितने निस्तारित किया बताओं ..खुद हाईकोर्ट नहीं देखता के वहां कितने मामले कितने वर्षों से लम्बित है और अवकाश के मामले में हाई कोर्ट के अवकाश तो कम नहीं होते लेकिन निचली अदालतों में अलबत्ता दबाव होता है सरकार है के हाईकोर्ट में जजों के खाली पढ़े पद भर्ती ही नहीं .देश में अदालतों में चाहे वोह निचली हों या उपरी सभी में एक अभियान के तहत जजों की नियुक्ति कर न्याय का अभियान चलाना होगा वरना हम वकील के नाते रोज़ देखते है के मजिस्ट्रेट और जज कितने तनाव में कितने काम के बोझ में काम करते है ..एक अदालत में एक तरफ तो कानून का दबाव है मर्यादा है के न्यायी अधिकारी एक वक्त में केवल एक ही काम करेंगे गवाह लेंगे तो गवाह होगी ..बहस होगी तो बहस होगी लेकिन हम देखते है के एक अदालत में एक तरफ बहस होती है और दो तरफ ब्यान होते है कानून और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार यह गलत है लेकिन होता है हम कानून के रक्षक यह सब होता हुआ देखते ही नहीं मजबूरी समझ कर मदद करते है लेकिन जरा जमीर को झकझोरें क्या यह सही बात है अगर नहीं तो क्यूँ हम ऐसा होने देते है ............हाई कोर्ट में कोई जनहित याचिका लगाये तो लम्बे कानून हैं लेकिन अगर खुद अदालत प्रसंज्ञान ले और जनहित याचिका मान ले तो कोई कानून कोई मर्यादा नहीं .....तो दोस्तों राजस्थान हाईकोर्ट के बहर न्याय की तलाश में काफी समय से इन्तिज़ार के बाद नेराश्य में आकर एक व्यक्ति की आत्महत्या के प्रयास की घटना चाहे सामान्य हो लेकिन यह दिल और देश की न्यायिक व्यवस्था में देरी को झकझोरने वाली है यहाँ हमे निचली अदालतों के जजों पर निर्णयों में गुणवत्ता का भी दबाव बनाना होगा यह भी पाबंदी लगाना होगी के अगर उनके फेसले उपर की न्यायालयों गलत मान कर पलते तो उन्हें दंडित भी क्या जाएगा तभी वोह निष्पक्ष और सही फेसले दे सकेंगे वरना सब जानते है के निचे की अदालत सज़ा देती है तो उपर से बरी होते है ..निचे से बरी होते है तो उपर से सज़ा होते है ऐसे में अगर विरोधाभास है तो गलती करने वाले को सजा नहीं मिले तो यह न इंसाफी है एक व्यक्ति महीनों जेल में एक गलत फेसले के कारण रहता है ..या जेल से बचता है तो इसमें तो सावधानी और कठोरता होना ही चाहिए ..देश की सरकार देश की संसद देश के महामहिम राष्ट्रपति जी को इस गंभीर मुद्दे पर चिन्तन मनन कर देश को एक नई दिशा देने के लिए देश में न्यायिक सुधार के लियें कदम उठाने होंगे ..न्यायालयों में जो संसाधनों .स्टाफ और जजों की कमी है उन्हें एक विशेष बजट पारित कर उसे पूरा करना होगा वरना यूँ ही रस्म निभाने और एक दुसरे को निचा दिखने की परम्परा से देश और देशवासियों का भला नहीं होगा .........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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1 टिप्पणियाँ:

sangita ने कहा…

kya khen ? arajakta ke aek marmik udaharan ko prastut karti sarthak post

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