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मसरूफ इस जिन्दगी ने, इतना कर दिया

Written By Brahmachari Prahladanand on शनिवार, 29 अक्तूबर 2011 | 3:33 pm

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मसरूफ इस जिन्दगी ने, इतना कर दिया,
भूल गए हर ज़ज्बात, वक्त न उनको दिया,
न जाने कब बेफिकरी की महफ़िल सजेगी,
शायद जब दुनियाबी काम से फुर्सत मिलेगी,

बेफिक्र होकर फिर किसी पर फिकरा कसेंगे,
लोग कहकहे लगायेंगे, फ़िक्र को भूल जायेंगे,
इस तरह जिन्दगी का लुफ्त अब सब उठाएंगे,
देखो बेफिकरी वाले दिन कब लौट के आयेंगे,

फ़िक्र ने यूँ तो जिन्दगी के साथ बाँध दिया,
वक्त सारा इन्तेज़मात जिन्दगी ने ले लिया,
जिन्दगी की फ़िक्र में जज़्बात दबा लिया,
फिर दिमाग के आड़े दिल को न आने दिया,

महफ़िल-ए-गाफिल में कोई शामिल न हुआ,
इंतज़ार करते रहे, दीदार किसी का न हुआ,
दफ्तर की थकान, घर में ही उतार सो हुआ,
महफ़िल में आने का उसका जो मूड न हुआ,

महफ़िलें यूँ ही तन्हा-सी रह गईं,
न जाने कितनों की गजलें बिन पड़े रह गईं,
उतार कर कागज़ पर अब न लिख कर गईं,
अब तो ब्लॉग पर सब ग़ज़लें आकर बैठ गईं,

वो लिखतें हैं न जाने कौन-कौन पड़ते हैं,
न जाने कौन-कौन पड़कर दाद करते हैं,
कभी कोई दो लफ्ज़ वाह-वाह लिखते हैं,
कभी उसको पसंद कर क्लिक करते हैं,

ज़माना कहाँ-से-कहाँ आ गया,
महफ़िलें खो गईं, पसन्दगार खो गया,
इतने कहने वाले हो गए, सबको कहना आ गया,
सुनने वाले खो गए, कमप्युटर का जामाना आ गया,

अब तो जज़्बात इस मशीन को सुनाते हैं,
इसी में लिखते हैं, इसी में रिकार्ड कराते हैं,
इसी से न जाने कितने सुनते हैं, सुनाते हैं,
कितनों के जज़्बात इस मशीन पे होते हैं,

                                                  ------- बेतखल्लुस


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