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जब संताक्लोज़ भी गिफ्ट (रिश्वत) दे रहा है

Written By Brahmachari Prahladanand on रविवार, 25 दिसंबर 2011 | 7:49 am

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गिफ्ट देकर, वह संताक्लोज़ कहलाता है,
क्या दुनिया में, गिफ्ट देकर ही किसी को करीब लाया जाता है,

गिफ्ट का आलम बड़ा, अच्छा लगता है,
गिफ्ट देकर अजनबी को पटाना अच्छा लगता है,

गिफ्ट देकर, बड़े से बड़े गुनाह छुप जाते हैं,
गिफ्ट देकर, बड़े से बड़े गुनाहगार भी संत बन जाते हैं,

गिफ्ट का ज़माना है, जो गिफ्ट का फ़साना है,
गिफ्ट देते जाओ, गिफ्ट देकर हर किसी को फ़साना है,

गिफ्ट देकर अब इस संत को भी संताक्लोज़ बनना है,
गिफ्ट देकर हर किसी को, गिले शिकवे दूर करना है,

क्या बात है गिफ्ट की, भुला देती है सब गम,
जिससे भी हो रुसवा, पिला देती है उसे रम,

गिफ्ट-ए-गिफ्ट कल छा जाएगा,
कोई संताक्लोज़ बन कर जिन्दगी में गिफ्ट लेकर आ जाएगा,

                                                               ------- बेतखल्लुस
 

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1 टिप्पणियाँ:

Brahmachari Prahladanand ने कहा…

जब संत्क्लोज़ भी गिफ्ट (रिश्वत) दे रहा है, और हज़ारों सालों से अपनी धाक जमाये है, तो रिश्वत को कैसे एक लोकपाल से हटवा सकते हैं, क्या किसी ने कभी गौर किया है की यह संताक्लोज़ इतने गिफ्ट लाता कहाँ से है ? और क्यूँ बे मतलब के गिफ्ट देता है, गिफ्ट देकर ही तो किसी को लिफ्ट किया जाता है, शायद इसलिए,

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