महाशिव पुराण
Written By Shikha Kaushik on रविवार, 31 जुलाई 2011 | 10:42 pm
जिन्दगी इश्क की
हिंदी ब्लॉगर्स फ़ोरम इंटरनेशनल HBFI: हरेक समस्या का अंत आप कर सकते हैं तुरंत Easy Solution
स्वर्ग.....कविता...ड़ा श्याम गुप्त.....
घुसते ही घर में कानों में ,
अमन का पैग़ाम: क्यों साऊथ अफ्रीका मैं बलात्कार इंडिया से अधिक होत...
ख़ुशी और दर्द
Written By नीरज द्विवेदी on शनिवार, 30 जुलाई 2011 | 8:37 am
Bezaban: क्या कहा आपने शादी नहीं करेंगे?
Written By एस एम् मासूम on शुक्रवार, 29 जुलाई 2011 | 10:01 pm
क्या कहा आपने शादी नहीं करेंगे? परेशान ना हों भाई आप को तो केवल अपनी पसंद बतानी है. अभी इस सप्ताह मैंने दो पोल (POLL) किये और आश्चर्य जनक रूप से टिप्पणिओं से अधिक इमानदार नतीजे सामने आये.
उन विषयों पे जहाँ लोग कम बोलना चाहते हैं पोल (POLL) वैसे भी एक कामयाब तरीका हुआ करता है हकीकत जानने का.
आज हम जिस समाज मैं रह रहे हैं वहाँ शादी के पहले सेक्स या शादी के बाद पति या पत्नी के अलावा सेक्स स्वीकार नहीं किया जाता. लेकिन ऐसा होता है यह भी सत्य है और बहुत से परिवारों मैं शादी के पहले सेक्स की इजाजत तो नहीं लेकिन बहुत बुरा नहीं समझा जाता. और कई जगह तो बिना शादी जीवन साथ गुजरने मैं भी आपत्ति नहीं होती लोगों को.
1) आप को क्या लगता है?
2) शादी के बाद परायी स्त्री या पराये पुरुष से सेक्स
बाबा और उनका राज़दार बालकृष्ण तनाव दूर करने के लिए ख़ुद योग का सहारा क्यों नहीं लेते ?
शायद गुरूर होगा
खबरगंगा: हीरा भी है सोना भी लेकिन किस काम का
Written By devendra gautam on गुरुवार, 28 जुलाई 2011 | 4:05 pm
दुनिया की बातें, होती हैं सच्ची
पहले ही तैयार था, तरीका निजाद का || 1 ||
मकसद न बदलना कभी |
रास्ता न छोड़ना कभी |
मंजिलें मिल जाती हैं सभी || 2 ||
हर गंवार जाहिल नहीं होता |
हर इंसान काहिल नहीं होता |
हर मामा माहिल नहीं होता || 3 ||
चोट कर जाती हैं, आदमी को बदल जाती हैं, भले ही वह, क्यूँ न लगें अच्छी || 4 ||
दुशवार, हो जाती है, जिन्दगी थोड़ी-सी तकरार से |
गर बात समझ लो इतनी सी |
तो खुशियों से भर जाती है जिन्दगी || 5 ||
गलत रास्ता बता कर किसी को भटकाया मत करो |
रास्ते जिन्दगी के एक न एक दिन मिल ही जाते हैं |
पर रास्ते रूहानी के भटक गये तो बस भटक ही जाते हैं || 6 ||
------- बेतखल्लुस
ऐसे तो रोज़ निकल जाती थी
Written By Pappu Parihar Bundelkhandi on बुधवार, 27 जुलाई 2011 | 10:07 pm
ऐसे तो रोज़ निकल जाती थी,
यूँ न देर लगाती थी,
पर आज पता नहीं,
अभी तक क्यूँ आयी नहीं,
देखता हूँ, जाता हूँ,
पता लगाता हूँ,
क्या बात है,
पहुंचा वहाँ,
क्या देखता हूँ,
अपनी सहेलियों के साथ,
हो रही उसकी बात है |
चिड़ा रहीं हैं उसे,
चुहुल बाज़ी हो रही है,
शायद किसी दावत की बात हो रही है,
उसकी तरफ से भी हाँ हो रही है,
मुझे जो देखा, आँख फेर ली,
सहेली के काम में कुछ कहा,
सहेली ने इशारा में कहा,
कुछ दूर चलने को कहा,
न आना अब इसके पीछे.
ये जा रही किसी और के पीछे,
खैर अगर चाहो,
दूर अब भागो,
अब क्या बचा था,
मुँह मेरा लटका था,
उन्ही बैठ गया,
न उठा गया,
.
दष्ठौन...कविता...डा श्याम गुप्त.....
पुत्री के जन्म दिन पर,
दष्ठौन, पार्टी !
कहा था आश्चर्य से ,
तुमने भी ।
मैं जानता था पर -
मन ही मन ,
तुम खुश थीं ,
हर्षिता, गर्विता |
दर्पण में,
अपनी छवि देखकर,
हम सभी प्रसन्न होते हैं ;
तो , अपनी प्रतिकृति देखकर ,
कौन हर्षित नहीं होगा |
पुत्र जन्म पर ये सवाल -
क्यों नहीं पूछा था तुमने ?
मैंने भी पूछ लिया था-
अनायास ही |
इसका उत्तर -
लोगों के पास तो था,पर-
नहीं था तुम्हारे पास ही |
प्रकृति-पुरुष,
विद्या-अविद्या,
ईश्वर-माया,
शिव और शक्ति;
युग्म होने पर ही -
पूर्ण होती है,
यह संसार रूपी प्रकृति |
अतः, गृहस्थ रूपी संसार की
पूर्णाहुति में ही है
यह पार्टी ||
Bezaban: महिलाओं को दैहिक स्तर पर देखने की मानसिकता और महिल...
महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाओं का एक कारण महिलाओं को दैहिक स्तर पर देखने की मानसिकता और महिलाओं का इसमें सहयोग है.
आज गलियों में, बेरुखी सी छाई थी
आज गलियों में, बेरुखी सी छाई थी |
उसका दर भी, आज, बन्द लग रहा था |
उसके मिलने को, आज, जी कर रहा था |
बस यूँ गुमसुम-सा, घूम रहा था |
दोस्त न आज कोई, मिल रहा था |
टहलते-टहलते यूँ ही, दूर तक निकल गया |
वही पास एक चाय की दुकान पर बैठ गया |
चुस्कियां चाय की अब चल रही थीं |
आखें अब भी उसके दर पर लगी थीं |
बेसब्री-सी यूँ बढ रही थी |
दिल की धड़कन तेज़ हो रही थी |
तभी न जाने कोन निकला |
दिल धक् से यूँ बिकला |
ये क्या कातिल बला थी |
अरे ये तो अपनी ही दिला थी |
किसी की कलाकारी ने इसे और हसीन कर दिया था |
सुबह-सुबह इसको किसी ने इतना रंगीन कर दिया था |
बाद में पता चला चाय की दुकान पर |
आज इसको देखने आने वाले हैं, घर पर |
दिल बैठ गया, मैं भी बैठ गया |
मुझको ये क्या सिला दिया |
किसी और की उसे बना दिया |
मैंने ऐसा क्या गुनाह किया |
उठा धीरे-से चल पड़ा घर की ओर |
पड़ा बिस्तर पर, कर पीठ उसके घर की ओर |
तभी घंटी बजी, सामने खड़ी थी सजी |
मुस्करा रही थी, बुलावा आने का भेजी |
साथ में कुछ सामान ले गयी |
आना ज़रूर जाते-जाते कह गयी |
सब घर जाने की तैयारी में लग गया |
मैं भी कोई बहाना ढूढने में लग गया |
अब कैसे जाना होगा |
कैसे मुँह दिखाना होगा |
बस जिन्दगी को भुलाना होगा |
आंसू पीकर शादी में इसकी जाना होगा |
.
ये तेरा दरबार न था
Written By नीरज द्विवेदी on मंगलवार, 26 जुलाई 2011 | 8:09 pm
खुदा मेरा खुदा है
खुदा मेरा खुदा है, मेरी हर फ़रियाद पूरी करता है |
जहन में बात आने से पहले, मेरी हर बात सुनता है |
हर हर्फ़, हर लफ्ज़, बाखुदा एकदम सही है |
आपका शुक्रिया, बाखुदा क्या बात कही है |
मेरे मकाँ के दरीचों से, रौशनी खुदा की आती है |
रोशन पूरा घर हो जाता है, स्याही भाग जाती है |
सजदा अब कर लेने दो, खुदा का |
शुक्रिया अब कर लेने दो, खुदा का |
बड़ा नसीब पाया, जो खुदा मिल गया |
उसको और क्या चाहिए जिसको खुदा मिल गया |
खुद्दारी, खुदा से आती है |
उसे, हर कौम भाती है |
कोई काम न, छोटा होता है |
खुदा का हाथ, जो सर पे होता है |
खुदा कहता है, खुद्दार बन |
खुद्दारी को दे अपना पन |
काम कोई भी हो कर |
छोटा-बड़ा न देखा कर |
अब खुदा के सजदे में, सर झुका दिया है |
दुआ मांग ली, आरजू को अर्ज़ कर दिया है |
मुकीम तेरे प्यार का, खुदा पूरी कर देगा |
न कर चिंता, वो तुझे तेरी हूर लाकर देगा |
मुफ्लिश तेरा, मुस्तकबिल खुदा के हाथ में है |
तू क्यूँ चिंता करता है, जब खुदा तेरे साथ में है |
है जोर खुदा का दुनिया में, बात ये मान ले |
उसके बिना पत्ता भी नहीं हिलता, बात ये जान ले |
है दूर नहीं तू खुदा से, है तू करीब |
खुदा का बन्दा है तू, नहीं तू गरीब |
न खोज है, न खबर है
बस तेरी दुआ का असर है |
बात यूँ बन गयी |
जैसे जिन्दगी यूँ गुज़र गयी |
------- बेतखल्लुस
.
तवा अभी ठंडा है
लकडियाँ अभी गीली हैं, अभी जला नहीं सकते || १ ||
चल पड़ो तो, रास्ता बताती है, जिन्दगी |
रुक जाओ तो, ऊपर उठाती है, जिन्दगी || २ ||
देख लो इस जिन्दगी में गम बहुत भरा है |
यूँ ख़ुशी अगर चाहो तो, उसमें क्या बुरा है || ३ ||
बंज़र हो गयी जमीं, आसमानों को उतर आने दो |
सोख लेने दो पानी, फिर से हरा-भरा हो जाने दो || ४ ||
गौर करो मुसाफिरों का, कैसे ये चलते हैं |
राह अभी छोड़ी नहीं, मंजिल पर मिलते हैं || ५ ||
मकसद यूँ जिन्दगी का कोई बदलता नहीं |
राह में रोड़े यूँ, कोई अटकाता नहीं |
ज़माने में दुश्मनी, यूँ कोई निभाता नहीं |
दोस्त न भी करो तो, दुश्मनी यूँ कोई करता नहीं || ६ ||
------- बेतखल्लुस
.
Arun Kumar Sharma has such a cool profile!
एक तोहफा - 2
Written By Pappu Parihar Bundelkhandi on सोमवार, 25 जुलाई 2011 | 2:49 pm
आवाज़ से सजाना, उसको गाना |
अंदाज़ ये तुम्हारा, दिल पे छाना |
सबको है भाता तुम्हारा यूँ गाना || १ ||
हुश्न भी पाया है, आवाज़ भी पायी है |
अदा भी पायी है, अदाकारी भी पायी हैं || २ ||
सबसे बड़ी बात है की, जज्बातों की कदर करती हो |
दूसरों के दिल की बात को, अपने दिल से सुनती हो || ३ ||
ये नवाजिस खुदा सबको नहीं देता है |
किसी खास को ही यह तोहफा देता है || ४ ||
तुम पर खुदा की मेहर बनी रहे |
हम पर तुम्हारी नज़र बनी रहे || ५ ||
इदरिसे हसन्नुम, उसका तरन्नुम, क्या सुना |
वक्त-ए-हाल, मुनासिब ख्याल, उसका क्या सुना |
आदि-से-हलक, उसका हलकान क्या सुना |
सुर-ए-नाज़ुक, गले-ए-सुरमाई, उसका क्या सुना || ६ ||
नाभि से सुर उठा, नाद होकर | छुआ दिल को, अहसास होकर |
कंठ से निकला, सुरीला होकर |
सुगंधा ने गाया, सुगन्धित होकर |
सबने ने सुना, आनंदित होकर || ७ ||
खता माफ़ करना, यूँ अब रुका जाता नहीं है |
बरबस तेरी तारीफ़ में, शेर निकल आता है || ८ ||
क्या करून तू है ऐसी, तेरी खूबसूरती तेरी शोखी |
तारीफ़ तेरी करून, ऐसा एक जोश-सा देती तोखी || ९ ||
तारीफ़ करता हूँ, तू वफादार है अपने हुनर से |
रोज़ करती है रियाज़, बिना किसी न नुकर से || १० ||
खुसबू बिखेरती हो, सभी के आँगन में, सुगंधा नाम है, तुम्हारा |
आवाज़-ए-सुगन्ध और फुहार-ए-हंसी पर इख्तियार है, तुम्हारा || ११ ||
.मुझे मेरा मेरे परिजनों सी बिछड़ने का जमाना याद आया .........
Written By आपका अख्तर खान अकेला on रविवार, 24 जुलाई 2011 | 10:34 pm
मुझे मेरा मेरे परिजनों सी बिछड़ने का जमाना याद आया .........
अगज़ल ----- दिलबाग विर्क
ग़ज़लगंगा.dg: खुदी के हाथ से निकला........
ये कच्चे धागों का बंधन है या तमाशा है
अभी-अभी हुई शादी अभी तलाक हुआ.
तलब की आखिरी मंजिल अजीब मंजिल है
की इस मुकाम पर जो पहुंचा वो हलाक हुआ.
दिल न लगाती हैं वो
Written By Pappu Parihar Bundelkhandi on शनिवार, 23 जुलाई 2011 | 5:21 pm
झूठी मुस्कुराहट का भी, अपना असर है |
लगता है हमको, कुछ हमारी भी कदर है || 1 ||
उसकी मुस्कान का, कुछ मतलब न लगा लेना |
वो परी है जहाज़ की, दिल न उससे लगा लेना || 2 ||
सही कहा है, परियाँ जन्नत में होती हैं, जन्नत आसमान में होती है |
तो, आसमान के जहाज़ की ये सुंदरियाँ, क्या परियों से कम होती हैं || 3 ||
चेहरा मुस्कुराता है, दिल न लगाती हैं वो |
बस दूर से ही, इंसान से नज़रें चुराती हैं वो || 4 ||
खुदा ने हुश्न भी तो आसमान में लटका दिया है |
इस गरीब को इस हाल में एक फटका दिया है || 5 ||
इतनी ख़ूबसूरती, जमीं पर पैर न धरती है |
नज़रों से लगता है, किसी और पर मरती है || 6 ||
कितना बेदर्द नज़ारा था, हुश्न होते हुए बेदारा था |
बस एक तकल्लुफ था, हुश्न भी किये किनारा था || 7 ||
कितना सहती हैं रोज़, किनके-किनके आखों कि बेहहाई |
गर पूछ लो इनसे, पता चल जाए सबके नज़र कि सफाई || 8 ||
शायद ही किसी ने, नज़रें न मिलाई हों इनसे |
नजर से दिल मिलाने की आरज़ू की हो इनसे || 9 ||
इन हसीनों को भी काम करना पड़ता है |
दूसरों का कितना ख्याल रखना पड़ता है || 10 ||
गर वक्त होता, थोडा अभी पीछे |
दीदार न होता, इनका यूँ दरीचे |
होती ये किसी, सूबे की मल्लिका |
न देख पाते यूँ, इनका ये सलीका || 11 ||
पहरे में रहतीं, हर वक्त किसी के |
न गौर से देख पाते, यूँ जी भर के |
खुदा ने हम पर, मेहरबानी की है |
इनको न यूँ, किसी की रानी की है || 12 ||
सहमी सी जिन्दगी का, चेहरे से झलक आता है |
किसी और के सामने, चेहरा यूँ जो मुस्कुराता है || 13 ||
दिल में यूँ कितनी कसमसाहट होती है तब |
कोई अनजान हसीना, मुस्कुरा देती है जब |
कई तो आदि हैं इसके, न देखते हैं उनकी तरफ |
कैसे छिपाए, दिल का अरमाँ देखें उनकी तरफ || 14 ||
बड़ा अजीब लगता है, हलचल सी मच जाती है |
समझ न पड़ता, दिल में झंकार से बज जाती है || 15 ||
इस तरह शायद बहुत किस्से बने होंगे |
इन हसीनाओं के बहुत दीवाने बने होंगे || 16 ||
.
उन्नत - जन्नत - जमानत -
उन्नत वही होते हैं, जो नत होते हैं |
नत वो होते हैं, जो अति पर नहीं जाते हैं |
तो जो अति पर नहीं जाते और नत हो जाते हैं वही उन्नत होते हैं, और उन्नति को पाते हैं |
जन्नत
जन जहाँ नत होते हैं उसे जन्नत कहते हैं |
जमानत
जमा करके जहाँ नत होते हैं उसे जमानत कहते हैं |
अमानत
आम तौर पर जहाँ नत होते हैं उसे अमानत कहते हैं |
.
आजकल ज़मीनों और कमीनों का ज़माना है, AIBA condemns Forbesganj killing, demands suspension of police officers.
6 महीने के बच्चे को भी गोलिओं का शिकार बना डाला |
भारत में तो कोई कुछ न बोला मगर सात समंदर पार अमेरिका के एक इंडियन मुस्लिम संगठन ने इस बात की सुध ली और यह जागरण किया कि मुख्यमंत्री नितीश कुमार जी के फ़ोन नम्बर पर कॉल करके इस मुद्दे के बाबत कोई फ़ैसला लेने पर मजबूर किया जाए.
बताते चलें कि पूरे देश ने IBN7 न्यूज़ चैनल के ज़रिये ये जाना कि किस तरह से ज़मीन को गैर कानूनी तरीके से कानून के नुमाइंदों ने हथिया लिया और विरोध करने पर जवाब में गोलिओं से भून डाला. अब सुशासन का डंका पीटने वाले नीतीश कुमार की सरकार से और क्या अपेक्षा की जा सकती है. बीजेपी MLC सौरभ अग्रवाल ने अरारिया ज़िले के फ़ोर्ब्सगंज इलाके के भजनपुर गाँव में 33 एकड़ ज़मीन को 90 साल के लिए मात्र 90 लाख में ले लिया. यही नहीं हमारे सुशासन बाबू की सरकार ने सरकारी खर्चे से इसके चारो ओर 4 करोड़ की लागत लगा कर चहारदीवारी खिंचवा दी और सौरभ अग्रवाल को यूँ ही दे दी, उनसे एक भी पैसा नहीं लिया. ये ज़मीन बिहार इंडस्ट्रियल एरिया डेवेलपमेंट अथोरिटी (BIADA) जो कि बिहार सरकार की एक बॉडी है ने दिया.
- 3 जून 2011 को फ़ोर्ब्सगंज के नरसंहार में शामिल पुलिसवालों का तत्काल बर्ख़ास्त किया जाए.
- तत्काल प्रभाव से मारे गए लोगों के परिवार को आर्थिक सहायता प्रदान करना.
- CBI जांच की मांग करना.
मुख्यमंत्री नितीश कुमार का नम्बर है-
- +91-612-2201000
- +91-612-2222079
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Ummid.com:
Indian Muslim leaders' apathy towards Forbesganj killing painful.
http://www.ummid.com/news/2011/June/18.06.2011/indian_muslims_n_forbesganj_killing.htm
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