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खुदा सूद को मिटाता है और ख़ैरात को बढ़ाता है

Written By आपका अख्तर खान अकेला on गुरुवार, 9 मई 2019 | 6:11 am

अगर ख़ैरात को ज़ाहिर में दो तो यह (ज़ाहिर करके देना) भी अच्छा है और अगर उसको छिपाओ और हाजतमन्दों को दो तो ये छिपा कर देना तुम्हारे हक़ में ज़्यादा बेहतर है और ऐसे देने को ख़ुदा तुम्हारे गुनाहों का कफ़्फ़ारा कर देगा और जो कुछ तुम करते हो ख़ुदा उससे ख़बरदार है (271)
ऐ रसूल उनका मंजि़ले मक़सूद तक पहुँचाना तुम्हारा काम नहीं (तुम्हारा काम सिर्फ़ रास्ता दिखाना है) मगर हां ख़ुदा जिसको चाहे मंजि़ले मक़सूद तक पहुँचा दे और (लोगों) तुम जो कुछ नेक काम में ख़र्च करोगे तो अपने लिए और तुम ख़ुदा की ख़ुशनूदी के सिवा और काम में ख़र्च करते ही नहीं हो (और जो कुछ तुम नेक काम में ख़र्च करोगे) (क़यामत में) तुमको भरपूर वापस मिलेगा और तुम्हारा हक़ न मारा जाएगा (272)
(यह खै़रात) ख़ास उन हाजतमन्दों के लिए है जो ख़ुदा की राह में घिर गये हो (और) रूए ज़मीन पर (जाना चाहें तो) चल नहीं सकते नावाकि़फ़ उनको सवाल न करने की वजह से अमीर समझते हैं (लेकिन) तू (ऐ मुख़ातिब अगर उनको देखे) तो उनकी सूरत से ताड़ जाये (कि ये मोहताज हैं अगरचे) लोगों से चिमट के सवाल नहीं करते और जो कुछ भी तुम नेक काम में ख़र्च करते हो ख़ुदा उसको ज़रूर जानता है (273)
जो लोग रात को या दिन को छिपा कर या दिखा कर (ख़ुदा की राह में) ख़र्च करते हैं तो उनके लिए उनका अज्र व सवाब उनके परवरदिगार के पास है और (क़यामत में) न उन पर किसी कि़स्म का ख़ौफ़ होगा और न वह आज़ुर्दा ख़ातिर होंगे (274)
जो लोग सूद खाते हैं वह (क़यामत में) खड़े न हो सकेंगे मगर उस शख़्स की तरह खड़े होंगे जिस को शैतान ने लिपट कर मख़बूतुल हवास {पागल} बना दिया है ये इस वजह से कि वह उसके क़ायल हो गए कि जैसा बिक्री का मामला वैसा ही सूद का मामला हालाकि बिक्री को तो खुदा ने हलाल और सूद को हराम कर दिया बस जिस शख़्स के पास उसके परवरदिगार की तरफ़ से नसीहत (मुमानियत) आये और वह बाज़ आ गया तो इस हुक्म के नाजि़ल होने से पहले जो सूद ले चुका वह तो उस का हो चुका और उसका अम्र (मामला) ख़ुदा के हवाले है और जो मनाही के बाद फिर सूद ले (या बिक्री और सूद के मामले को यकसा बताए जाए) तो ऐसे ही लोग जहन्नुम में रहेंगे (275)
खुदा सूद को मिटाता है और ख़ैरात को बढ़ाता है और जितने नाशुक्रे गुनाहगार हैं खुदा उन्हें दोस्त नहीं रखता (276)
(हां) जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे-अच्छे काम किए और पाबन्दी से नमाज़ पढ़ी और ज़कात दिया किये उनके लिए अलबत्ता उनका अज्र व (सवाब) उनके परवरदिगार के पास है और (क़यामत में) न तो उन पर किसी कि़स्म का ख़ौफ़ होगा और न वह रन्जीदा दिल होंगे (277)
ऐ ईमानदारों ख़ुदा से डरो और जो सूद लोगों के जि़म्मे बाक़ी रह गया है अगर तुम सच्चे मोमिन हो तो छोड़ दो (278)
और अगर तुमने ऐसा न किया तो ख़ुदा और उसके रसूल से लड़ने के लिये तैयार रहो और अगर तुमने तौबा की है तो तुम्हारे लिए तुम्हारा असल माल है न तुम किसी का ज़बरदस्ती नुकसान करो न तुम पर ज़बरदस्ती की जाएगी (279)
और अगर कोई तंगदस्त तुम्हारा (कर्जदार हो) तो उसे ख़ुशहाली तक मोहल्लत (दो) और सदक़ा करो और अगर तुम समझो तो तुम्हारे हक़ में ज़्यादा बेहतर है कि असल भी बख़्श दो (280)
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