इस विषय में लिखने से पहले मैं बता दूं कि इस बारे में सारी जानकारी मेरी बेटी सोनू ने दी है जो कि औक्यूपेशनल थेरेपिस्ट है और ऑटिज्म के बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए ही काम कर रही है।
वैसे तो ऐसे बच्चे सदियों से पाए जाते हें लेकिन इधर ऐसे बच्चों की संख्या बढ़ती चली जा रही है। इस रोग का सीधा सम्बन्ध बच्चे की मष्तिष्क में स्थित नर्वस सिस्टम से होता है। जो जन्मजात होता है और इसके लिए कोई भी स्थायी इलाज नहीं होता है , हाँ इतना अवश्य है कि उस बच्चे को इस काबिल बनाया जा सकता है कि वह अपने कामों को खुद कर सके और यह भी उसके ऑटिज्म के प्रकार पर निभर करता है कि उसको किस तरह की थेरेपी की जरूरत है । इसका निर्धारण उसको चिकित्सा देने वाला खुद ही निश्चित करता है।
सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि अब इस तरह के बच्चों में बढ़ोत्तरी का कारण क्या है?
-- इस तरह के बच्चों की बढती संख्या के पीछे आज अपने करियर के लिए संघर्ष कर रहे माँ बाप अपने की चिंता में बच्चे को जन्म देने के बारे में देर से सोचते हें ।
-- वैसे भी पढ़ाई और करियर के सेट होते होते आज कल विवाह की उम्र बढ़ रही है और विवाह की बढ़ती हुई उम्र इसका एक बड़ा कारण बन गया है।
--अगर परिवार में ऐसे सदस्य पहले से हों तब भी ऑटिज्मग्रस्त बच्चे हो सकते हें।
--जन्म के समय बच्चे का सामान्य व्यवहार न होना भी इस तरह की स्थिति को जन्म दे सकती है जैसे कि बच्चे का पैदा होते ही न रोना। बच्चे का गर्भ से बाहर आते ही रोने से उसके मष्तिष्क में रक्त का संचार पूरी तरह होने लगता है और सके मष्तिष्क में स्थित सारी रक्तवाहिनियाँ सुचारू रूप से है।
-- -- कभी कभी देखने में आता है कि बच्चा एकदम सामान्य होता है लेकिन अचानक तेज बुखार आ जाने से उसके बाद उसके व्यवहार या फिर शारीरिक और मानसिक क्रियायों में बदलाव आ जाता है . ऐसा भी संभव है तेज बुखार की स्थिति में मष्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है और कभी कभी इससे ब्रेन हैमरेज और पक्षाघात तक हो जाता है.
ऑटिज्म के शिकार बच्चों के क्या लक्षण हो सकते हें . पहले ही बता दूं कि ऑटिज्म के कई प्रकार हो सकते हें और इनमें से कुछ तो ऐसे भी हो सकते हें --
१. अति सक्रिय -- इसमें बच्चे जरूरत से अधिक शोर करने वाले , उठापटक करने वाले , चीखने और चिल्लाने वाले हो सकते हें .
२ .अति निष्क्रिय - इसमें बच्चे खामोश प्रवृत्ति के होते हें , वे बात सुन लेते हें तब भी कोई रूचि नहीं दिखाते हें या फिर आप उनसे कोई बात कहें तो आपके कहने के कई मिनट बाद वे उस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हें.
बच्चों के लक्षण ---
कुछ इस प्रकार के भी हो सकते हें कि एकांत में रहना पसंद करते हों. उन्हें समूह में रहना पसंद नहीं होता है. किसी से अधिक मिलना जुलना भी वे पसंद नहीं करते हें.
--कभी कभी उन्हें किसी का अपने को छूना भी पसंद नहीं होता है.
--अँधेरे से डरते हें, अकेले से डरते हें.
--किसी विशेष वस्तु प्रेम भी हो सकता है , जैसे कि कोई भी चीज मैंने एक बच्चे को देखा उसको ढक्कन से विशेष प्रेम था किसी भी चीज का ढक्कन हो. अगर आप उसको हटा देंगे तो वह किसी और चीज के ढक्कन खोल कर ले लेगा.
--ऐसे बच्चे कभी कभी गले लगा लेने पर बहुत खुश हो जाते हें.
--कुछ अपने सामने वाले को मारने पीटने में भी आनंद लेते हें, ऐसे में सामान्य छोटे भाई बहन उनके कहर का शिकार बन जाते हें. माता पिता भी इसके शिकार हो जाते हें. ऐसे बच्चों को बहुत ही धैर्यपूर्वक सभांलने की जरूरत होती हें. .
--बुलाने पर बच्चे कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं करते हें या अनसुना कर देते हें.
--अक्सर ऐसे बच्चे आँखें मिलने में कतराते हें
--समूह में खेलने या पढ़ाने में उनको उलझन होती है और वे अधिक लोगों के बीच रहना पसंद नहीं करते हें.
--अपनी रूचि स्वयं कभी जाहिर नहीं करते हें. आपके पूछने पर भी बतलाने में कोई रूचि नहीं दिखलाते हें.
--अपनी दिनचर्या में समरसता चाहते हें , उन्हें कोई परिवर्तन पसंद नहीं होता है और परिवर्तन करने पर वे चीखने चिल्लाने भी लगते हें.
--
अभिभावकों के लिए :
ऐसे बच्चों के विषय में माता पिता को जल्दी ही निर्णय ले लेना चाहिए. जैसे ही उन्हें लगे कि उनका बच्चा सामान्य से अलग है , उसको डॉक्टर को दिखा कर राय ले लेनी चाहिए. अब इस तरह के बच्चों के लिए अलग से सेंटर खुल गए हें और इसके लिए सरकारी तौर पर भी कई संस्थान हें जहाँ पर इसके लिए ओ पी डी खुले हुए हें और इसके लिए विशेष प्रशिक्षण देकर ओकुपेशनल थेरेपिस्ट तैयार किये जाते हें.
नई दिल्ली में इसके लिए - पं दीन दयाल उपाध्याय विकलांग संस्थान , ४ विष्णु दिगंबर मार्ग पर है. जहाँ पर जाकर अपने बच्चे का परीक्षण करवा कर आप उसके भविष्य के प्रति जागरूक होकर उन्हें एक बेहतर जीवन जीने के लिए तैयार कर सकते हें. इन बच्चों के इलाज की दिशा इनके व्यवहार के अध्ययन के पश्चात् ही निश्चित की जाती हें क्योंकि उनके लक्षणों के अनुसार ही उन्हें थेरेपी दी जाती है.
--इसके ठीक होने का कोई एक उपाय नहीं है बल्कि इसका सुनिश्चित इलाज भी नहीं है बस आपके बच्चे को अपने कार्यों के लिए जो वे खुद नहीं कर सकते हें आत्मनिर्भर होने लायक बनाने के लिए प्रशिक्षण और थेरेपी दी जा सकती है.
--अलग अलग बच्चों में ऑटिज्म की डिग्री अलग अलग होती है, अतः इसके लिए उनके आत्मनिर्भर होने में कुछ समय लग सकता है. वैसे तो सारे जीवन ही इसकी जरूरत हो सकती है लेकिन उचित प्रशिशन और शिक्षा उनको बहुत कुछ सामान्य जीवन जीने योग्य बना देती है.
--इसके शिकार बच्चे कभी कभी स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त करने में सफल हो जाते हें लेकिन इसके लिए उनके माता पिता को बहुत ही मेहनत करनी पड़ती है. इसका एक उदाहरण मेरे सामने है. मेरी एक कलीग की बड़ी बच्ची उसके जन्म के समय उन्होंने गर्भपात के लिए कोई दवा खाई थी और उससे गर्भपात तो नहीं हुआ बल्कि होने वाली बच्ची ऑटिज्म का शिकार हो गयी. उसको याद बहुत देर में होता था. खाने में रूचि नहीं लेती थी. उसका चेहरा भी उसके असामान्य होने का प्रभाव दिखलाता था. लेकिन उनकी माँ के परिश्रम के चलते उन्होंने अपनी बेटी के साथ खुद भी घंटों मेहनत करके उसको बी. कॉम तक शिक्षा दिलवाने में सफल हुई और उसके बाद आगे की तैयारी में हें. ऐसे जागरूक माता पिता नमन के काबिल हें.
अगर किसी का भी बच्चा इस तरह से ऑटिज्म का शिकार है तो उसके लिए हताश न हों बल्कि उसके लिए बेहतर प्रयास करें कि वह बच्चा पूरे जीवन औरों पर निर्भर न होकर अपने कामों के लिए आत्मनिर्भर हो सके तभी आपका दायित्व पूर्ण होता है.
वैसे तो ऐसे बच्चे सदियों से पाए जाते हें लेकिन इधर ऐसे बच्चों की संख्या बढ़ती चली जा रही है। इस रोग का सीधा सम्बन्ध बच्चे की मष्तिष्क में स्थित नर्वस सिस्टम से होता है। जो जन्मजात होता है और इसके लिए कोई भी स्थायी इलाज नहीं होता है , हाँ इतना अवश्य है कि उस बच्चे को इस काबिल बनाया जा सकता है कि वह अपने कामों को खुद कर सके और यह भी उसके ऑटिज्म के प्रकार पर निभर करता है कि उसको किस तरह की थेरेपी की जरूरत है । इसका निर्धारण उसको चिकित्सा देने वाला खुद ही निश्चित करता है।
सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि अब इस तरह के बच्चों में बढ़ोत्तरी का कारण क्या है?
-- इस तरह के बच्चों की बढती संख्या के पीछे आज अपने करियर के लिए संघर्ष कर रहे माँ बाप अपने की चिंता में बच्चे को जन्म देने के बारे में देर से सोचते हें ।
-- वैसे भी पढ़ाई और करियर के सेट होते होते आज कल विवाह की उम्र बढ़ रही है और विवाह की बढ़ती हुई उम्र इसका एक बड़ा कारण बन गया है।
--अगर परिवार में ऐसे सदस्य पहले से हों तब भी ऑटिज्मग्रस्त बच्चे हो सकते हें।
--जन्म के समय बच्चे का सामान्य व्यवहार न होना भी इस तरह की स्थिति को जन्म दे सकती है जैसे कि बच्चे का पैदा होते ही न रोना। बच्चे का गर्भ से बाहर आते ही रोने से उसके मष्तिष्क में रक्त का संचार पूरी तरह होने लगता है और सके मष्तिष्क में स्थित सारी रक्तवाहिनियाँ सुचारू रूप से है।
-- -- कभी कभी देखने में आता है कि बच्चा एकदम सामान्य होता है लेकिन अचानक तेज बुखार आ जाने से उसके बाद उसके व्यवहार या फिर शारीरिक और मानसिक क्रियायों में बदलाव आ जाता है . ऐसा भी संभव है तेज बुखार की स्थिति में मष्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ता है और कभी कभी इससे ब्रेन हैमरेज और पक्षाघात तक हो जाता है.
ऑटिज्म के शिकार बच्चों के क्या लक्षण हो सकते हें . पहले ही बता दूं कि ऑटिज्म के कई प्रकार हो सकते हें और इनमें से कुछ तो ऐसे भी हो सकते हें --
१. अति सक्रिय -- इसमें बच्चे जरूरत से अधिक शोर करने वाले , उठापटक करने वाले , चीखने और चिल्लाने वाले हो सकते हें .
२ .अति निष्क्रिय - इसमें बच्चे खामोश प्रवृत्ति के होते हें , वे बात सुन लेते हें तब भी कोई रूचि नहीं दिखाते हें या फिर आप उनसे कोई बात कहें तो आपके कहने के कई मिनट बाद वे उस पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हें.
बच्चों के लक्षण ---
कुछ इस प्रकार के भी हो सकते हें कि एकांत में रहना पसंद करते हों. उन्हें समूह में रहना पसंद नहीं होता है. किसी से अधिक मिलना जुलना भी वे पसंद नहीं करते हें.
--कभी कभी उन्हें किसी का अपने को छूना भी पसंद नहीं होता है.
--अँधेरे से डरते हें, अकेले से डरते हें.
--किसी विशेष वस्तु प्रेम भी हो सकता है , जैसे कि कोई भी चीज मैंने एक बच्चे को देखा उसको ढक्कन से विशेष प्रेम था किसी भी चीज का ढक्कन हो. अगर आप उसको हटा देंगे तो वह किसी और चीज के ढक्कन खोल कर ले लेगा.
--ऐसे बच्चे कभी कभी गले लगा लेने पर बहुत खुश हो जाते हें.
--कुछ अपने सामने वाले को मारने पीटने में भी आनंद लेते हें, ऐसे में सामान्य छोटे भाई बहन उनके कहर का शिकार बन जाते हें. माता पिता भी इसके शिकार हो जाते हें. ऐसे बच्चों को बहुत ही धैर्यपूर्वक सभांलने की जरूरत होती हें. .
--बुलाने पर बच्चे कोई प्रतिक्रिया जाहिर नहीं करते हें या अनसुना कर देते हें.
--अक्सर ऐसे बच्चे आँखें मिलने में कतराते हें
--समूह में खेलने या पढ़ाने में उनको उलझन होती है और वे अधिक लोगों के बीच रहना पसंद नहीं करते हें.
--अपनी रूचि स्वयं कभी जाहिर नहीं करते हें. आपके पूछने पर भी बतलाने में कोई रूचि नहीं दिखलाते हें.
--अपनी दिनचर्या में समरसता चाहते हें , उन्हें कोई परिवर्तन पसंद नहीं होता है और परिवर्तन करने पर वे चीखने चिल्लाने भी लगते हें.
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अभिभावकों के लिए :
ऐसे बच्चों के विषय में माता पिता को जल्दी ही निर्णय ले लेना चाहिए. जैसे ही उन्हें लगे कि उनका बच्चा सामान्य से अलग है , उसको डॉक्टर को दिखा कर राय ले लेनी चाहिए. अब इस तरह के बच्चों के लिए अलग से सेंटर खुल गए हें और इसके लिए सरकारी तौर पर भी कई संस्थान हें जहाँ पर इसके लिए ओ पी डी खुले हुए हें और इसके लिए विशेष प्रशिक्षण देकर ओकुपेशनल थेरेपिस्ट तैयार किये जाते हें.
नई दिल्ली में इसके लिए - पं दीन दयाल उपाध्याय विकलांग संस्थान , ४ विष्णु दिगंबर मार्ग पर है. जहाँ पर जाकर अपने बच्चे का परीक्षण करवा कर आप उसके भविष्य के प्रति जागरूक होकर उन्हें एक बेहतर जीवन जीने के लिए तैयार कर सकते हें. इन बच्चों के इलाज की दिशा इनके व्यवहार के अध्ययन के पश्चात् ही निश्चित की जाती हें क्योंकि उनके लक्षणों के अनुसार ही उन्हें थेरेपी दी जाती है.
--इसके ठीक होने का कोई एक उपाय नहीं है बल्कि इसका सुनिश्चित इलाज भी नहीं है बस आपके बच्चे को अपने कार्यों के लिए जो वे खुद नहीं कर सकते हें आत्मनिर्भर होने लायक बनाने के लिए प्रशिक्षण और थेरेपी दी जा सकती है.
--अलग अलग बच्चों में ऑटिज्म की डिग्री अलग अलग होती है, अतः इसके लिए उनके आत्मनिर्भर होने में कुछ समय लग सकता है. वैसे तो सारे जीवन ही इसकी जरूरत हो सकती है लेकिन उचित प्रशिशन और शिक्षा उनको बहुत कुछ सामान्य जीवन जीने योग्य बना देती है.
--इसके शिकार बच्चे कभी कभी स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त करने में सफल हो जाते हें लेकिन इसके लिए उनके माता पिता को बहुत ही मेहनत करनी पड़ती है. इसका एक उदाहरण मेरे सामने है. मेरी एक कलीग की बड़ी बच्ची उसके जन्म के समय उन्होंने गर्भपात के लिए कोई दवा खाई थी और उससे गर्भपात तो नहीं हुआ बल्कि होने वाली बच्ची ऑटिज्म का शिकार हो गयी. उसको याद बहुत देर में होता था. खाने में रूचि नहीं लेती थी. उसका चेहरा भी उसके असामान्य होने का प्रभाव दिखलाता था. लेकिन उनकी माँ के परिश्रम के चलते उन्होंने अपनी बेटी के साथ खुद भी घंटों मेहनत करके उसको बी. कॉम तक शिक्षा दिलवाने में सफल हुई और उसके बाद आगे की तैयारी में हें. ऐसे जागरूक माता पिता नमन के काबिल हें.
अगर किसी का भी बच्चा इस तरह से ऑटिज्म का शिकार है तो उसके लिए हताश न हों बल्कि उसके लिए बेहतर प्रयास करें कि वह बच्चा पूरे जीवन औरों पर निर्भर न होकर अपने कामों के लिए आत्मनिर्भर हो सके तभी आपका दायित्व पूर्ण होता है.
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