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अपनी- अपनी गरीबी रेखा

Written By प्रदीप नील वसिष्ठ on रविवार, 15 अप्रैल 2012 | 5:08 pm

आदरणीय अन्ना अंकल,
मेरा एक मित्र है राम औतार . करोड़पति है, कोठी -कार और सब सुविधाएं उसके पास हैं लेकिन चाय पीने का मन होने के बावज़ूद जेब से पांच रूपए नहीं निकालना चाहता और तलाश  में रहता है कि कब उसे कोई चाय-बीडी़ पिलाने वाला मिले . ऐसे में मैं उसकी औकत मात्र पांच रूपए ही समझता हूं और चाहता हूं कि मेरा वह मित्र अपने आप को गरीबी रेखा से नीचे मान ले लेकिन मित्र है कि उसे अपने आप के करोड़पति होने का घमण्ड रहता है . मैं सरकार होता तो उसे यकीनन ही गरीबी रेखा से नीचे रखता और वह इस बात पर मुझे कोसता. यानि सरकार की फज़ीहत तो तय है .
 मेरा दूसरा मित्र राम खिलावन झोंपडे़ में रहता है .दाने-दाने का मोहताज़ है लेकिन घर में दो मोबाइल फोन हैं और हर शाम  देसी शराब  का अद्धा पता नहीं कैसे उसके पास आ जाता है . उसे दुख है कि उसके पास साईकिल ही क्यों है , बाईक क्यों नहीं ?  वह चाहता है कि उसे गरीबी रेखा से नीचे मान लिया जाए और सरकार उसके आठों बच्चों को पाले . मैं सरकार होता तो उसे गरीबी रेखा से ऊपर मानता . जिसके घर में केबल टी वी हो, दो मोबाइल हों ,हर शाम  शराब  का जुगाड़ हो और जो  आदमी बेचारी सरकार तक को अपने बच्चों की आया बनाने के सपने देखता हो उसे गरीबी रेखा से नीचे रखना तो रेखा की बेइज़्ज़ती होती .ऐसे में मैं सरकार होता तो यकीनन ही राम खिलावन मुझे गालियां देता . यानि, सरकार की फज़ीहत तो तय है .
सच तो यह है कि इस गरीबी रेखा की शक्ल  जिसने बिगाड. रखी है वह औरत हमारे महल्ले में रहती है . कुछ साल पहले जनगणना हुई थी तो पता चला था कि वह हर सेकिण्ड एक बच्चे को ज़न्म दे डालती है . अब मुझे पूरा यकीन है कि वही औरत आज़कल हर सेकिण्ड तीन नहीं तो कम से कम दो या डेढ बच्चे तो ज़रूर ही पैदा करने लगी है .
और उस औरत के सामने बेचारी सरकार मुझे तो सातवीं क्लास को पढाने वाली ड्राइंग भैंजी लगती है . भैंजी बेचारी ब्लैक-बोर्ड की तरफ मुंह करके गरीब बच्चों के चारों तरफ गरीबी रेखा खींच रही होती है कि पीछे से वह औरत दो बच्चे उसे रेखा के पास गिरा कर ताली बजा कर हंसती है और मज़ाक उड़ाने लगती है कि ऐसी औरत को किसने भैंजी लगा दिया जिसे सही रेखा ही नहीं खींचनी आती .भैंजी हैरान-परेशान  होकर वह रेखा मिटाकर दूसरी बना ही रही होती है कि वह औरत पांच बच्चे फैंक कर भैंजी को मूर्ख साबित कर देती है . यानि, सरकार की फज़ीहत तो तय है .
लोग सरकार की बनाई गरीबी रेखा से खुश   नहीं होते और हरेक को शिकायत  बनी रहती है .
 जिस तरह जितने मुंह उतनी बातें, उसी तरह जितने लोग उतनी ही गरीबी रेखाएं . ऊपर से दिक्कत यह कि आज़कल लोग मुंह भी दो-तीन रखने लेगे हैं .ऐसे में क्या हो सकता है ?  यानि, सरकार की फज़ीहत तो तय है .


आपका अपना बच्चा,
मन  का सच्चा,

अकल का कच्चा

- प्रदीप नील
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1 टिप्पणियाँ:

Unknown ने कहा…

सलीम खान साहब मै भी aiba का मेंबर बनना चाहता हूँ.आप मुझे भी शामिल कर लीजिये.मै मोहब्बत नामा ब्लॉग का ब्लोगर हूँ.
मोहब्बत नामा हिंदी ब्लॉग

http://ishq-love.blogspot.com/

आमिर दुबई.

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