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fact n figure: निर्मल बाबा के विरोध का सच

Written By devendra gautam on शुक्रवार, 13 अप्रैल 2012 | 12:39 am

निर्मल बाबा की पृष्ठभूमि खंगाली जा रही है. प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रोनिक मीडिया और इन्टरनेट मीडिया तक ने उनके विरुद्ध हल्ला बोल दिया है. हालांकि लखनऊ के दो बच्चों को छोड़ दें तो अभी तक किसी आम नागरिक ने उनके विरुद्ध कहीं कोई शिकायत दर्ज करने का प्रयास नहीं किया है. फिर भी मीडिया के लोगों ने आम लोगों की आंखें खोलने के अपने कर्तव्य का पालन किया है. मीडिया के लोग आम तौर पर विज्ञापनदाताओं की जायज़-नाजायज़ सभी हरकतों को संरक्षण दिया करते हैं. कितने ही काले कारनामों पर उन्होंने सफलतापूर्वक पर्दा  डाल रखा है. आज की तारीख में देश के दर्जनों बड़े पत्रकार कई घोटालों में संलग्न होने के आरोपी हैं. जांच एजेंसियों के पास इसके प्रमाण भी हैं लेकिन उनपर हाथ नहीं डाला जा रहा है. उनका लिहाज़ किया जा रहा है. निर्मल बाबा भी बड़े विज्ञापनदाता हैं. 35  चैनलों पर उनके विज्ञापन प्रसारित हो रहे हैं. यदि वे आमजन की अंधभक्ति का दोहन कर रहे हैं और ईशकृपा की मार्केटिंग कर रहे हैं तो मीडिया को उसका हिस्सा भी दे रहे हैं. उनकी गल्ती यही है कि 35  चैनलों के अलावा जो मीडिया घराने हैं उनकी तरफ ध्यान नहीं दे रहे हैं. ध्यान देते तो यह हमले या तो नहीं होते या फिर उनकी धार कुछ कमजोर होती.  
फिलहाल उनके प्रारंभिक जीवन के जो खुलासे हुए हैं उनमें कुछ भी आपत्तिजनक नज़र नहीं आता. झारखंड के चतरा के निर्दलीय सांसद इन्दर सिंह नामधारी का साला होना या पूर्व में कपडे का थोक व्यापार करना, ठेकेदारी करना कोई गुनाह नहीं है. वे कोई मंगल ग्रह से नहीं आये हैं कि धरती पर उनका कोई रिश्तेदार न हो. सोने का चम्मच लेकर नहीं पैदा हुए कि उन्हें जीवन में संघर्ष न करना पड़ा हो. ज्ञान चक्षु तो उम्र के किसी भी पड़ाव पर खुल सकते हैं. भगवान बुद्ध भी तो ज्ञान प्राप्त होने के पूर्व पत्नी और बच्चे को नींद में सोता छोड़ यानी अपनी जिम्मेवारियों को छोड़ कर भागे हुए एक कापुरुष ही कहे जा सकते हैं. लेकिन सुजाता के हांथों से खीर खाने के बाद उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ तो वे महान और युग प्रवर्तक बन गए. बाद में उन्हें विष्णु का नवां अवतार तक मान लिया गया.
निर्मल बाबा जिस तीसरी आंख का दावा करते हैं उसकी वास्तविकता क्या है यह एक बहस का विषय हो सकता है. अभी तक हमारी जानकारी में भगवान शिव तीन नेत्रों वाले माने गए हैं. उनके तीसरे नेत्र के खुलने पर कामदेव भस्म हो गए थे. उनका यह नेत्र कभी-कभार ही खुलता था. निर्मल बाबा की मानें तो उनका यह नेत्र हमेशा खुला ही रहता है लेकिन किसी को भस्म करने के लिए नहीं भक्तों तक ईश कृपा के निर्वाध वितरण के लिए. वे अपने भक्तों को त्याग और संयम की शिक्षा नहीं देते. महंगी से महंगी चीजें खरीदने और ऐश के साथ जीने की सलाह देते हैं. वे अध्यात्म की नहीं भौतिक जीवन को बेहतर बनाने की बात करते हैं. भारत में भक्तियोग का बोलबाला है. लोग अपनी समस्याओं से निजात पाने के लिए किसी दैवी शक्ति के चमत्कार के इंतज़ार में रहते हैं. उनकी इसी कमजोरी का लाभ निर्मल बाबा जैसे लोग उठाते रहे हैं और जबतक भक्तियोग की जगह कर्मयोग या ज्ञानयोग का प्रचालन नहीं बढेगा उठाते रहेंगे. एक निर्मल बाबा जायेंगे दस पैदा होंगे. जनता के साथ इस तरह की ठगी का यदि कोई ह्रदय से विरोध करता है और सिर्फ टीआरपी या प्रसार संख्या बढ़ने के लिए इसका इस्तेमाल नहीं करते उन्हें जन चेतना को भक्तियोग से उबारने का प्रयास करना चाहिए.

----देवेंद्र गौतम  

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1 टिप्पणियाँ:

RITU BANSAL ने कहा…

पैसे का लोभ रख कर अगर समाज सेवा करी जाए तो वो व्यर्थ है ..
आज तक जो भी बड़े संत या महापुरुष हुए हैं उन्होंने निः स्वार्थ सेवा की है ..

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