और (आदम की हक़ीक़त ज़ाहिर करने की ग़रज़ से) आदम को सब चीज़ों के नाम सिखा
दिए फिर उनको फरिश्तों के सामने पेश किया और फ़रमाया कि अगर तुम अपने दावे
में कि हम मुस्तहके़ खि़लाफ़त हैं। सच्चे हो तो मुझे इन चीज़ों के नाम
बताओ (31)
तब फ़रिश्तों ने (आजिज़ी से) अजऱ् की तू (हर ऐब से) पाक व पाकीज़ा है हमे तो जो कुछ तूने बताया है उसके सिवा कुछ नहीं जानते तू बड़ा जानने वाला, मसलहक़े का पहचानने वाला है (32)
(उस वक़्त खु़दा ने आदम को) हुक्म दिया कि ऐ आदम तुम इन फ़रिश्तों को उन सब चीज़ों के नाम बता दो बस जब आदम ने फ़रिश्तों को उन चीज़ों के नाम बता दिए तो खु़दा ने फरिश्तों की तरफ खि़ताब करके फरमाया क्यों, मैं तुमसे न कहता था कि मैं आसमानों और ज़मीनों के छिपे हुए राज़ को जानता हूँ, और जो कुछ तुम अब ज़ाहिर करते हो और जो कुछ तुम छुपाते थे (वह सब) जानता हूँ (33)
और (उस वक़्त को याद करो) जब हमने फ़रिश्तों से कहा कि आदम को सजदा करो तो सब के सब झुक गए मगर शैतान ने इन्कार किया और ग़ुरूर में आ गया और काफि़र हो गया (34)
और हमने आदम से कहा ऐ आदम तुम अपनी बीवी समैत बेहिश्त में रहा सहा करो और जहाँ से तुम्हारा जी चाहे उसमें से ब फराग़त खाओ (पियो) मगर उस दरख़्त के पास भी न जाना (वरना) फिर तुम अपना आप नुक़सान करोगे (35)
तब शैतान ने आदम व हौव्वा को (धोखा देकर) वहाँ से डगमगाया और आखि़र कार उनको जिस (ऐश व राहत) में थे उनसे निकाल फेंका और हमने कहा (ऐ आदम व हौव्वा) तुम (ज़मीन पर) उतर पड़ो तुममें से एक का एक दुशमन होगा और ज़मीन में तुम्हारे लिए एक ख़ास वक़्त (क़यामत) तक ठहराव और ठिकाना है (36)
फिर आदम ने अपने परवरदिगार से (माज़रत के चन्द अल्फाज़) सीखे बस खु़दा ने उन अल्फाज़ की बरकत से आदम की तौबा कु़बूल कर ली बेशक वह बड़ा माफ़ करने वाला मेहरबान है (37)
(और जब आदम को) ये हुक्म दिया था कि यहाँ से उतर पड़ो (तो भी कह दिया था कि) अगर तुम्हारे पास मेरी तरफ़ से हिदायत आए तो (उसकी पैरवी करना क्योंकि) जो लोग मेरी हिदायत पर चलेंगे उन पर (क़यामत) में न कोई ख़ौफ होगा (38)
और न वह रंजीदा होगे और (ये भी याद रखो) जिन लोगों ने कुफ्र इख़तेयार किया और हमारी आयतों को झुठलाया तो वही जहन्नुमी हैं और हमेशा दोज़ख़ में पड़े रहेगे (39)
ऐ बनी इसराईल (याक़ूब की औलाद) मेरे उन एहसानात को याद करो जो तुम पर पहले कर चुके हैं और तुम मेरे एहद व इक़रार (ईमान) को पूरा करो तो मैं तुम्हारे एहद (सवाब) को पूरा करूँगा, और मुझ ही से डरते रहो (40)
तब फ़रिश्तों ने (आजिज़ी से) अजऱ् की तू (हर ऐब से) पाक व पाकीज़ा है हमे तो जो कुछ तूने बताया है उसके सिवा कुछ नहीं जानते तू बड़ा जानने वाला, मसलहक़े का पहचानने वाला है (32)
(उस वक़्त खु़दा ने आदम को) हुक्म दिया कि ऐ आदम तुम इन फ़रिश्तों को उन सब चीज़ों के नाम बता दो बस जब आदम ने फ़रिश्तों को उन चीज़ों के नाम बता दिए तो खु़दा ने फरिश्तों की तरफ खि़ताब करके फरमाया क्यों, मैं तुमसे न कहता था कि मैं आसमानों और ज़मीनों के छिपे हुए राज़ को जानता हूँ, और जो कुछ तुम अब ज़ाहिर करते हो और जो कुछ तुम छुपाते थे (वह सब) जानता हूँ (33)
और (उस वक़्त को याद करो) जब हमने फ़रिश्तों से कहा कि आदम को सजदा करो तो सब के सब झुक गए मगर शैतान ने इन्कार किया और ग़ुरूर में आ गया और काफि़र हो गया (34)
और हमने आदम से कहा ऐ आदम तुम अपनी बीवी समैत बेहिश्त में रहा सहा करो और जहाँ से तुम्हारा जी चाहे उसमें से ब फराग़त खाओ (पियो) मगर उस दरख़्त के पास भी न जाना (वरना) फिर तुम अपना आप नुक़सान करोगे (35)
तब शैतान ने आदम व हौव्वा को (धोखा देकर) वहाँ से डगमगाया और आखि़र कार उनको जिस (ऐश व राहत) में थे उनसे निकाल फेंका और हमने कहा (ऐ आदम व हौव्वा) तुम (ज़मीन पर) उतर पड़ो तुममें से एक का एक दुशमन होगा और ज़मीन में तुम्हारे लिए एक ख़ास वक़्त (क़यामत) तक ठहराव और ठिकाना है (36)
फिर आदम ने अपने परवरदिगार से (माज़रत के चन्द अल्फाज़) सीखे बस खु़दा ने उन अल्फाज़ की बरकत से आदम की तौबा कु़बूल कर ली बेशक वह बड़ा माफ़ करने वाला मेहरबान है (37)
(और जब आदम को) ये हुक्म दिया था कि यहाँ से उतर पड़ो (तो भी कह दिया था कि) अगर तुम्हारे पास मेरी तरफ़ से हिदायत आए तो (उसकी पैरवी करना क्योंकि) जो लोग मेरी हिदायत पर चलेंगे उन पर (क़यामत) में न कोई ख़ौफ होगा (38)
और न वह रंजीदा होगे और (ये भी याद रखो) जिन लोगों ने कुफ्र इख़तेयार किया और हमारी आयतों को झुठलाया तो वही जहन्नुमी हैं और हमेशा दोज़ख़ में पड़े रहेगे (39)
ऐ बनी इसराईल (याक़ूब की औलाद) मेरे उन एहसानात को याद करो जो तुम पर पहले कर चुके हैं और तुम मेरे एहद व इक़रार (ईमान) को पूरा करो तो मैं तुम्हारे एहद (सवाब) को पूरा करूँगा, और मुझ ही से डरते रहो (40)
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