और जो (कु़रान) मैंने नाजि़ल किया वह उस किताब (तौरेत) की (भी) तसदीक़ करता
हूँ जो तुम्हारे पास है और तुम सबसे चले उसके इन्कार पर मौजूद न हो जाओ और
मेरी आयतों के बदले थोड़ी क़ीमत (दुनयावी फायदा) न लो और मुझ ही से डरते
रहो (41)
और हक़ को बातिल के साथ न मिलाओ और हक़ बात को न छिपाओ हालाँकि तुम जानते हो और पाबन्दी से नमाज़ अदा करो (42)
और ज़कात दिया करो और जो लोग (हमारे सामने) इबादत के लिए झुकते हैं उनके साथ तुम भी झुका करो (43)
और तुम लोगों से नेकी करने को कहते हो और अपनी ख़बर नहीं लेते हालाँकि तुम किताबे खु़दा को (बराबर) रटा करते हो तो तुम क्या इतना भी नहीं समझते (44)
और (मुसीबत के वक़्त) सब्र और नमाज़ का सहारा पकड़ो और अलबत्ता नमाज़ दूभर तो है मगर उन ख़ाक़सारों पर (नहीं) जो बख़ूबी जानते हैं (45)
कि वह अपने परवरदिगार की बारगाह में हाजि़र होंगे और ज़रूर उसकी तरफ लौट जाएँगे (46)
ऐ बनी इसराइल मेरी उन नेअमतों को याद करो जो मैंने पहले तुम्हें दी और ये (भी तो सोचो) कि हमने तुमको सारे जहाँन के लोगों से बढ़ा दिया (47)
और उस दिन से डरो (जिस दिन) कोई शख़्स किसी की तरफ से न फिदिया हो सकेगा और न उसकी तरफ से कोई सिफारिश मानी जाएगी और न उसका कोई मुआवज़ा लिया जाएगा और न वह मदद पहुँचाए जाएँगे (48)
और (उस वक़्त को याद करो) जब हमने तुम्हें (तुम्हारे बुजुर्गों को) फिरऔन (के पन्जे) से छुड़ाया जो तुम्हें बड़े-बड़े दुख दे के सताते थे तुम्हारे लड़कों पर छुरी फेरते थे और तुम्हारी औरतों को (अपनी खि़दमत के लिए) जि़न्दा रहने देते थे और उसमें तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से (तुम्हारे सब्र की) सख़्त आज़माइश थी (49)
और (वह वक़्त भी याद करो) जब हमने तुम्हारे लिए दरया को टुकड़े-टुकड़े किया फिर हमने तुमको छुटकारा दिया (50)
और हक़ को बातिल के साथ न मिलाओ और हक़ बात को न छिपाओ हालाँकि तुम जानते हो और पाबन्दी से नमाज़ अदा करो (42)
और ज़कात दिया करो और जो लोग (हमारे सामने) इबादत के लिए झुकते हैं उनके साथ तुम भी झुका करो (43)
और तुम लोगों से नेकी करने को कहते हो और अपनी ख़बर नहीं लेते हालाँकि तुम किताबे खु़दा को (बराबर) रटा करते हो तो तुम क्या इतना भी नहीं समझते (44)
और (मुसीबत के वक़्त) सब्र और नमाज़ का सहारा पकड़ो और अलबत्ता नमाज़ दूभर तो है मगर उन ख़ाक़सारों पर (नहीं) जो बख़ूबी जानते हैं (45)
कि वह अपने परवरदिगार की बारगाह में हाजि़र होंगे और ज़रूर उसकी तरफ लौट जाएँगे (46)
ऐ बनी इसराइल मेरी उन नेअमतों को याद करो जो मैंने पहले तुम्हें दी और ये (भी तो सोचो) कि हमने तुमको सारे जहाँन के लोगों से बढ़ा दिया (47)
और उस दिन से डरो (जिस दिन) कोई शख़्स किसी की तरफ से न फिदिया हो सकेगा और न उसकी तरफ से कोई सिफारिश मानी जाएगी और न उसका कोई मुआवज़ा लिया जाएगा और न वह मदद पहुँचाए जाएँगे (48)
और (उस वक़्त को याद करो) जब हमने तुम्हें (तुम्हारे बुजुर्गों को) फिरऔन (के पन्जे) से छुड़ाया जो तुम्हें बड़े-बड़े दुख दे के सताते थे तुम्हारे लड़कों पर छुरी फेरते थे और तुम्हारी औरतों को (अपनी खि़दमत के लिए) जि़न्दा रहने देते थे और उसमें तुम्हारे परवरदिगार की तरफ से (तुम्हारे सब्र की) सख़्त आज़माइश थी (49)
और (वह वक़्त भी याद करो) जब हमने तुम्हारे लिए दरया को टुकड़े-टुकड़े किया फिर हमने तुमको छुटकारा दिया (50)
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