हाँ (सच तो यह है) कि जिसने बुराई हासिल की और उसके गुनाहों ने चारों तरफ
से उसे घेर लिया है वही लोग तो दोज़ख़ी हैं और वही (तो) उसमें हमेशा रहेगें
(81)
और जो लोग ईमानदार हैं और उन्होंने अच्छे काम किए हैं वही लोग जन्नती हैं कि हमेशा जन्नत में रहेंगे (82)
और (वह वक़्त याद करो) जब हमने बनी ईसराइल से (जो तुम्हारे बुजुर्ग थे) अहद व पैमान लिया था कि खु़दा के सिवा किसी की इबादत न करना और माँ बाप और क़राबतदारों और यतीमों और मोहताजों के साथ अच्छे सुलूक करना और लोगों के साथ अच्छी तरह (नरमी) से बातें करना और बराबर नमाज़ पढ़ना और ज़कात देना फिर तुममें से थोड़े आदमियों के सिवा (सब के सब) फिर गए और तुम लोग हो ही इक़रार से मुँह फेरने वाले (83)
और (वह वक़्त याद करो) जब हमने तुम (तुम्हारे बुजुर्गों) से अहद लिया था कि आपस में खू़रेजि़याँ न करना और न अपने लोगों को शहर बदर करना तो तुम (तुम्हारे बुजुर्गों) ने इक़रार किया था और तुम भी उसकी गवाही देते हो (84)
(कि हाँ ऐसा हुआ था) फिर वही लोग तो तुम हो कि आपस में एक दूसरे को क़त्ल करते हो और अपनों से एक जत्थे के नाहक़ और ज़बरदस्ती हिमायती बनकर दूसरे को शहर बदर करते हो (और लुत्फ़ तो ये है कि) अगर वही लोग क़ैदी बनकर तम्हारे पास (मदद माँगने) आए तो उनको तावान देकर छुड़ा लेते हो हालाँकि उनका निकालना ही तुम पर हराम किया गया था तो फिर क्या तुम (किताबे खु़दा की) बाज़ बातों पर ईमान रखते हो और बाज़ से इन्कार करते हो बस तुम में से जो लोग ऐसा करें उनकी सज़ा इसके सिवा और कुछ नहीं कि जि़न्दगी भर की रूसवाई हो और (आखि़रकार) क़यामत के दिन सख़्त अज़ाब की तरफ लौटा दिये जाए और जो कुछ तुम लोग करते हो खु़दा उससे ग़ाफि़ल नहीं है (85)
यही वह लोग हैं जिन्होंने आख़ेरत के बदले दुनिया की जि़न्दगी ख़रीद ली बस न उनके अज़ाब ही में तख़्फ़ीफ़ (कमी) की जाएगी और न वह लोग किसी तरह की मदद दिए जाएँगे (86)
और ये हक़ीक़ी बात है कि हमने मूसा को किताब (तौरेत) दी और उनके बाद बहुत से पैग़म्बरों को उनके क़दम ब क़दम ले चलें और मरयम के बेटे ईसा को (भी बहुत से) वाजे़ए व रौशन मौजिजे दिए और पाक रूह जिबरील के ज़रिये से उनकी मदद की क्या तुम उस क़द्र बददिमाग़ हो गए हो कि जब कोई पैग़म्बर तुम्हारे पास तुम्हारी ख़्वाहिशे नफ़सानी के खि़लाफ कोई हुक्म लेकर आया तो तुम अकड़ बैठे फिर तुमने बाज़ पैग़म्बरों को तो झुठलाया और बाज़ को जान से मार डाला (87)
और कहने लगे कि हमारे दिलों पर गि़लाफ चढ़ा हुआ है (ऐसा नहीं) बल्कि उनके कुफ्र की वजह से खु़दा ने उनपर लानत की है बस कम ही लोग ईमान लाते हैं (88)
और जब उनके पास खु़दा की तरफ़ से किताब (कु़रान) आई और वह उस (किताब तौरेत) की जो उन के पास है तसदीक़ भी करती है। और उससे पहले (इसकी उम्मीद पर) काफि़रों पर फतेहयाब होने की दुआएँ माँगते थे बस जब उनके पास वह चीज़ जिसे पहचानते थे आ गई तो लगे इन्कार करने बस काफि़रों पर खु़दा की लानत है (89)
क्या ही बुरा है वह काम जिसके मुक़ाबले में (इतनी बात पर) वह लोग अपनी जानें बेच बैठे हैं कि खु़दा अपने बन्दों से जिस पर चाहे अपनी इनायत से किताब नाजि़ल किया करे इस रश्क से जो कुछ खु़दा ने नाजि़ल किया है सबका इन्कार कर बैठे बस उन पर ग़ज़ब पर ग़ज़ब टूट पड़ा और काफि़रों के लिए (बड़ी) रूसवाई का अज़ाब है (90)
और जो लोग ईमानदार हैं और उन्होंने अच्छे काम किए हैं वही लोग जन्नती हैं कि हमेशा जन्नत में रहेंगे (82)
और (वह वक़्त याद करो) जब हमने बनी ईसराइल से (जो तुम्हारे बुजुर्ग थे) अहद व पैमान लिया था कि खु़दा के सिवा किसी की इबादत न करना और माँ बाप और क़राबतदारों और यतीमों और मोहताजों के साथ अच्छे सुलूक करना और लोगों के साथ अच्छी तरह (नरमी) से बातें करना और बराबर नमाज़ पढ़ना और ज़कात देना फिर तुममें से थोड़े आदमियों के सिवा (सब के सब) फिर गए और तुम लोग हो ही इक़रार से मुँह फेरने वाले (83)
और (वह वक़्त याद करो) जब हमने तुम (तुम्हारे बुजुर्गों) से अहद लिया था कि आपस में खू़रेजि़याँ न करना और न अपने लोगों को शहर बदर करना तो तुम (तुम्हारे बुजुर्गों) ने इक़रार किया था और तुम भी उसकी गवाही देते हो (84)
(कि हाँ ऐसा हुआ था) फिर वही लोग तो तुम हो कि आपस में एक दूसरे को क़त्ल करते हो और अपनों से एक जत्थे के नाहक़ और ज़बरदस्ती हिमायती बनकर दूसरे को शहर बदर करते हो (और लुत्फ़ तो ये है कि) अगर वही लोग क़ैदी बनकर तम्हारे पास (मदद माँगने) आए तो उनको तावान देकर छुड़ा लेते हो हालाँकि उनका निकालना ही तुम पर हराम किया गया था तो फिर क्या तुम (किताबे खु़दा की) बाज़ बातों पर ईमान रखते हो और बाज़ से इन्कार करते हो बस तुम में से जो लोग ऐसा करें उनकी सज़ा इसके सिवा और कुछ नहीं कि जि़न्दगी भर की रूसवाई हो और (आखि़रकार) क़यामत के दिन सख़्त अज़ाब की तरफ लौटा दिये जाए और जो कुछ तुम लोग करते हो खु़दा उससे ग़ाफि़ल नहीं है (85)
यही वह लोग हैं जिन्होंने आख़ेरत के बदले दुनिया की जि़न्दगी ख़रीद ली बस न उनके अज़ाब ही में तख़्फ़ीफ़ (कमी) की जाएगी और न वह लोग किसी तरह की मदद दिए जाएँगे (86)
और ये हक़ीक़ी बात है कि हमने मूसा को किताब (तौरेत) दी और उनके बाद बहुत से पैग़म्बरों को उनके क़दम ब क़दम ले चलें और मरयम के बेटे ईसा को (भी बहुत से) वाजे़ए व रौशन मौजिजे दिए और पाक रूह जिबरील के ज़रिये से उनकी मदद की क्या तुम उस क़द्र बददिमाग़ हो गए हो कि जब कोई पैग़म्बर तुम्हारे पास तुम्हारी ख़्वाहिशे नफ़सानी के खि़लाफ कोई हुक्म लेकर आया तो तुम अकड़ बैठे फिर तुमने बाज़ पैग़म्बरों को तो झुठलाया और बाज़ को जान से मार डाला (87)
और कहने लगे कि हमारे दिलों पर गि़लाफ चढ़ा हुआ है (ऐसा नहीं) बल्कि उनके कुफ्र की वजह से खु़दा ने उनपर लानत की है बस कम ही लोग ईमान लाते हैं (88)
और जब उनके पास खु़दा की तरफ़ से किताब (कु़रान) आई और वह उस (किताब तौरेत) की जो उन के पास है तसदीक़ भी करती है। और उससे पहले (इसकी उम्मीद पर) काफि़रों पर फतेहयाब होने की दुआएँ माँगते थे बस जब उनके पास वह चीज़ जिसे पहचानते थे आ गई तो लगे इन्कार करने बस काफि़रों पर खु़दा की लानत है (89)
क्या ही बुरा है वह काम जिसके मुक़ाबले में (इतनी बात पर) वह लोग अपनी जानें बेच बैठे हैं कि खु़दा अपने बन्दों से जिस पर चाहे अपनी इनायत से किताब नाजि़ल किया करे इस रश्क से जो कुछ खु़दा ने नाजि़ल किया है सबका इन्कार कर बैठे बस उन पर ग़ज़ब पर ग़ज़ब टूट पड़ा और काफि़रों के लिए (बड़ी) रूसवाई का अज़ाब है (90)
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें
Thanks for your valuable comment.