और (यहूद) कहते हैं कि यहूद (के सिवा) और (नसारा कहते हैं कि) नसारा के
सिवा कोई बेहिश्त में जाने ही न पाएगा ये उनके ख़्याली पुलाव है (ऐ रसूल)
तुम उन से कहो कि भला अगर तुम सच्चे हो कि हम ही बेहिश्त में जाएँगे तो
अपनी दलील पेश करो (111)
हाँ अलबत्ता जिस शख़्स ने खु़दा के आगे अपना सर झुका दिया और अच्छे काम भी करता है तो उसके लिए उसके परवरदिगार के यहाँ उसका बदला (मौजूद) है और (आख़ेरत में) ऐसे लोगों पर न किसी तरह का ख़ौफ़ होगा और न ऐसे लोग ग़मग़ीन होगे (112)
और यहूद कहते हैं कि नसारा का मज़हब कुछ (ठीक) नहीं और नसारा कहते हैं कि यहूद का मज़हब कुछ (ठीक) नहीं हालाँकि ये दोनों फरीक़ किताबे (खु़दा) पढ़ते रहते हैं इसी तरह उन्हीं जैसी बातें वह (मुशरेकीन अरब) भी किया करते हैं जो (खु़दा के एहकाम) कुछ नहीं जानते तो जिस बात में ये लोग पड़े झगड़ते हैं (दुनिया में तो तय न होगा) क़यामत के दिन खु़दा उनके दरमियान ठीक फैसला कर देगा (113)
और उससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा जो खु़दा की मसजिदों में उसका नाम लिए जाने से (लोगों को) रोके और उनकी बरबादी के दर पे हो, ऐसों ही को उसमें जाना मुनासिब नहीं मगर सहमे हुए ऐसे ही लोगों के लिए दुनिया में रूसवाई है और ऐसे ही लोगों के लिए आख़ेरत में बड़ा भारी अज़ाब है (114)
(तुम्हारे मसजिद में रोकने से क्या होता है क्योंकि सारी ज़मीन) खु़दा ही की है (क्या) पूरब (क्या) पच्छिम बस जहाँ कहीं कि़ब्ले की तरफ रूख़ करो वही खु़दा का सामना है बेशक खु़दा बड़ी गुन्जाइश वाला और खू़ब वाकि़फ है (115)
और यहूद कहने लगे कि खु़दा औलाद रखता है हालाँकि वह (इस बखेड़े से) पाक है बल्कि जो कुछ ज़मीन व आसमान में है सब उसी का है और सब उसी के फ़रमाबरदार हैं (116)
(वही) आसमान व ज़मीन का मोजिद है और जब किसी काम का करना ठान लेता है तो उसकी निसबत सिर्फ कह देता है कि “हो जा” बस वह (खु़द ब खु़द) हो जाता है (117)
और जो (मुशरेकीन) कुछ नहीं जानते कहते हैं कि खु़दा हमसे (खु़द) कलाम क्यों नहीं करता, या हमारे पास (खु़द) कोई निशानी क्यों नहीं आती, इसी तरह उन्हीं की सी बाते वह कर चुके हैं जो उनसे पहले थे इन सब के दिल आपस में मिलते जुलते हैं जो लोग यक़ीन रखते हैं उनको तो अपनी निशानियाँ क्यों साफतौर पर दिखा चुके (118)
(ऐ रसूल) हमने तुमको दीने हक़ के साथ (बेहिश्त की) खु़शख़बरी देने वाला और (अज़ाब से) डराने वाला बनाकर भेजा है और दोज़खि़यों के बारे में तुमसे कुछ न पूछा जाएगा (119)
और (ऐ रसूल) न तो यहूदी कभी तुमसे रज़ामंद होगे न नसारा यहाँ तक कि तुम उनके मज़हब की पैरवी करो (ऐ रसूल उनसे) कह दो कि बस खु़दा ही की हिदायत तो हिदायत है (बाक़ी ढकोसला है) और अगर तुम इसके बाद भी कि तुम्हारे पास इल्म (क़ुरान) आ चुका है उनकी ख़्वाहिशों पर चले तो (याद रहे कि फिर) तुमको खु़दा (के ग़ज़ब) से बचाने वाला न कोई सरपरस्त होगा न मददगार (120)
हाँ अलबत्ता जिस शख़्स ने खु़दा के आगे अपना सर झुका दिया और अच्छे काम भी करता है तो उसके लिए उसके परवरदिगार के यहाँ उसका बदला (मौजूद) है और (आख़ेरत में) ऐसे लोगों पर न किसी तरह का ख़ौफ़ होगा और न ऐसे लोग ग़मग़ीन होगे (112)
और यहूद कहते हैं कि नसारा का मज़हब कुछ (ठीक) नहीं और नसारा कहते हैं कि यहूद का मज़हब कुछ (ठीक) नहीं हालाँकि ये दोनों फरीक़ किताबे (खु़दा) पढ़ते रहते हैं इसी तरह उन्हीं जैसी बातें वह (मुशरेकीन अरब) भी किया करते हैं जो (खु़दा के एहकाम) कुछ नहीं जानते तो जिस बात में ये लोग पड़े झगड़ते हैं (दुनिया में तो तय न होगा) क़यामत के दिन खु़दा उनके दरमियान ठीक फैसला कर देगा (113)
और उससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा जो खु़दा की मसजिदों में उसका नाम लिए जाने से (लोगों को) रोके और उनकी बरबादी के दर पे हो, ऐसों ही को उसमें जाना मुनासिब नहीं मगर सहमे हुए ऐसे ही लोगों के लिए दुनिया में रूसवाई है और ऐसे ही लोगों के लिए आख़ेरत में बड़ा भारी अज़ाब है (114)
(तुम्हारे मसजिद में रोकने से क्या होता है क्योंकि सारी ज़मीन) खु़दा ही की है (क्या) पूरब (क्या) पच्छिम बस जहाँ कहीं कि़ब्ले की तरफ रूख़ करो वही खु़दा का सामना है बेशक खु़दा बड़ी गुन्जाइश वाला और खू़ब वाकि़फ है (115)
और यहूद कहने लगे कि खु़दा औलाद रखता है हालाँकि वह (इस बखेड़े से) पाक है बल्कि जो कुछ ज़मीन व आसमान में है सब उसी का है और सब उसी के फ़रमाबरदार हैं (116)
(वही) आसमान व ज़मीन का मोजिद है और जब किसी काम का करना ठान लेता है तो उसकी निसबत सिर्फ कह देता है कि “हो जा” बस वह (खु़द ब खु़द) हो जाता है (117)
और जो (मुशरेकीन) कुछ नहीं जानते कहते हैं कि खु़दा हमसे (खु़द) कलाम क्यों नहीं करता, या हमारे पास (खु़द) कोई निशानी क्यों नहीं आती, इसी तरह उन्हीं की सी बाते वह कर चुके हैं जो उनसे पहले थे इन सब के दिल आपस में मिलते जुलते हैं जो लोग यक़ीन रखते हैं उनको तो अपनी निशानियाँ क्यों साफतौर पर दिखा चुके (118)
(ऐ रसूल) हमने तुमको दीने हक़ के साथ (बेहिश्त की) खु़शख़बरी देने वाला और (अज़ाब से) डराने वाला बनाकर भेजा है और दोज़खि़यों के बारे में तुमसे कुछ न पूछा जाएगा (119)
और (ऐ रसूल) न तो यहूदी कभी तुमसे रज़ामंद होगे न नसारा यहाँ तक कि तुम उनके मज़हब की पैरवी करो (ऐ रसूल उनसे) कह दो कि बस खु़दा ही की हिदायत तो हिदायत है (बाक़ी ढकोसला है) और अगर तुम इसके बाद भी कि तुम्हारे पास इल्म (क़ुरान) आ चुका है उनकी ख़्वाहिशों पर चले तो (याद रहे कि फिर) तुमको खु़दा (के ग़ज़ब) से बचाने वाला न कोई सरपरस्त होगा न मददगार (120)
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