आज बात करुंगा भगवा पर लग रहे दाग की और वो ऐसे वैसे दाग की नहीं, बल्कि यौनाचार जैसे घिनौने कृत्य से लगे उस दाग की जिसे आसानी से धो पाना संभव नहीं है। अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है स्वामी नित्यानंद की एक सीडी ने पूरे देश में तहलका मचा दिया था। इस सीडी में स्वामी नित्यानंद दक्षिण भारत की ही एक अभिनेत्री के साथ अश्लील हरकतें करते हुए कैमरे पर कैद हो गए थे। नित्यानंद की इस करतूतों से कई इलाकों में गुस्सा भड़का और लोग सड़कों पर आ गए। नित्यानंद आश्रम छोड़कर भाग निकले बाद में उन्हें हिमाचल से गिरफ्तार किया गया।
लेकिन इस ताजा मामले में कोई सीडी नहीं है, पर स्वामी की शिष्या ने ही थाने में जो रिपोर्ट दर्ज कराई है। उसमें स्वामी पर बलात्कार, अपहरण और गला दबाकर जान से मारने की बात कही गई है। अब इस स्वामी को भी जान लें, ये स्वामी कोई और नहीं बल्कि बीजेपी नेता, पूर्व गृह राज्यमंत्री स्वामी चिन्मयानंद हैं। इन पर गंभीर आरोप लगाने वाली इनकी ही शिष्या हैं, जिनका नाम है साध्वी चिदर्पिता। साध्वी बनने से पहले इनका नाम कोमल गुप्ता था। कोमल की बचपन से ही ईश्वर में अटूट आस्था थी। ये मां के साथ लगभग हर शाम मंदिर जाती थी। इसी बीच मां की सहेली ने हरिद्वार में भागवत कथा का आयोजन किया और इन्हें भी वहां मां के साथ जाने का अवसर मिला। उसी समय कोमल गुप्ता का स्वामी चिन्मयानन्द से परिचय हुआ। स्वामी जी उस समय जौनपुर से सांसद थे। तब कोमल की उम्र लगभग बीस वर्ष थी। स्वामी को ना जाने कोमल में क्या बात नजर आई कि वे कोमल को संन्यास के लिये मानसिक रूप से तैयार करने लगे। मैं कह नहीं सकता कि कोमल नासमझ थी या वो सन्यास लेकर नई दुनिया में खो जाना चाहती थी। बहरहाल कुछ भी हो कोमल ने स्वामी की बातों में हामी भरी और सन्यास के लिए राजी हो गई। स्वामी चिन्मयानंद ने कोमल को दीक्षा देने के साथ ही उसका नाम बदल कर साध्वी चितर्पिता कर दिया। दीक्षा के बाद साध्वी का नया ठिकाना बना शाहजहांपुर का मुमुक्ष आश्रम। चिन्मयानंद ने साध्वी को दीक्षा तो दी पर उसके सन्यास की बात को टालते रहे। ऐसा क्यों, इस रहस्य से स्वामी और साध्वी ही पर्दा हटा सकते हैं।
वैसे स्वामी और साध्वी में अंदरखाने क्या संबध थे, इस पर तो ये दोनों ही बात करें तो ज्यादा बेहतर है। पर मैं कुछ बाते आप सबके साथ साझा करना चाहता हूं। पिछले साल की बात है, मेरे सास स्वसुर ने हरिद्वार में स्वामी जी के आश्रम में ही भागवत कथा का आयोजन कराया था। इस दौरान पूरे सप्ताह भर मैं भी परिवार के साथ इसी आश्रम में रहा। आश्रम खूबसूरत है, देवी देवाताओं की मूर्तियां से तो अटा पड़ा है, आश्रम के सामने से गंगा बह रही है। यहां स्वामी और साध्वी दोनों एक साथ निकलते हैं, तो लोग उनके पैर छूकर आशीर्वाद लेने को आतुर दिखाई देते हैं। देर रात में भी स्वामी इसी साध्वी के साथ टहलते दिखाई देते हैं। सप्ताह पर के प्रवास के दौरान कई बार उनके टहलने के दौरान मेरा आमना सामना हुआ। सर तो मैने भी झुकाया, पर इस जोड़ी के सामने सिर झुकाने में कभी श्रद्धा का भाव मन में नहीं आया। गंगा आरती के दौरान ये दोनों वहां मौजूद रहते थे, दोनों की आंखों में होनी वाली शरारत को कोई भी आसानी से पकड़ सकता था। बहरहाल ये सब मैं सिर्फ इसलिए कह रहा हूं कि मैने दोनों के आखों में होने वाली शरारत को कई बार पकडा।
साध्वी लगभग 10 साल से भी ज्यादा समय से स्वामी जी के साथ हैं, वो केवल उनकी आश्रम की ही साथी नहीं रही हैं, बल्कि स्वामी जी जब मंत्री थे तो ये उनकी पीए थीं और दिल्ली में ही रहीं थीं। साध्वी 24 घंटे स्वामी जी के साथ परछाई तरह रहती थीं। एक दुर्घटना के बाद स्वामी जी दिल्ली में भर्ती थे तो साध्वी ही उनकी सेवा में लगी थीं । सच तो ये है कि खुद स्वामी जी ने कभी ये नहीं सोचा होगा कि उन्हें अपनी इस शिष्या से अलग होना पड़ सकता है, क्योंकि स्वामी जी कि अगर कोई कमजोरी है तो वो है सिर्फ यही साध्वी। स्वामी ने उन्हें हरिद्वार, शाहजहांपुर और बद्रीनाथ के आश्रमों की व्यवस्था की पूरी जिम्मेदारी सौंपी थी। शाहजहांपुर के कालेज की भी जिम्मेदारी खुद साध्वी उठा रही थीं।
ऐसे में बडा सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्या कुछ हुआ जिससे साध्वी ने बलात्कार, अपहरण और हत्या का प्रयास जैसे संगीन धाराओं में स्वामी जी के खिलाफ मामला दर्ज कराया दिया। कितने समय से साध्वी आश्रम में हैं उनके ऊपर किसी और का ऐसा नियंत्रण भी नहीं है कि वो कहीं जाना चाहें तो ना जा सकें। ऐसे में अपहरण की बात कहना तो मुझे लगता है कि बेमानी है। सवाल उठता है कि अगर स्वामी ने उनकी मर्जी के खिलाफ उनके साथ शारीरिक संबंध बनाया तो उन्होंने ये बात पहले क्यों नहीं की। फिर साध्वी पहले अचानक आश्रम से भाग निकलीं, और उन्होंने शादी कर ली। अब तीन महीने गुजारने के बाद शाहजहांपुर में रिपोर्ट दर्ज कराई। सवाल तो ये भी खड़ा हो सकता है कि जिस तरह से उन्होंने प्रेम विवाह किया है, इससे इतना तो साफ है कि आश्रम में रहते हुए भी उनका बाहरी दुनिया में कुछ चल रहा था, वरना शादी एक दिन में तो होती नहीं।
मैं चिन्मयानंद को कोई साफ सुथरा होने का सर्टिफिकेट नहीं दे रहा हूं। बल्कि मेरा तो मानना है कि इन जैसों को साधु, संत, स्वामी कहना ही गलत है। चिन्मयानंद स्वामी क्यों हैं ? स्वामी वाली उनमें क्या बात है? सैकडों करोड की संपत्ति के स्वामी हैं, क्या कोई साधु संपत्ति जमा करता है ? चुनाव के दौरान हाथ जोड़कर लोगों से वोट मांगना ये साधु संतों का काम है। फिर स्वामी पर वैसे ही तमाम आरोप लगते रहे हैं, अब उनकी ही शिष्या ने स्वामी जी के चरित्र पर जिस तरह से सवाल उठाए हैं उससे तो उनकी रही सही भी खत्म हो गई है। स्वामी जी मैं तो आपसे यही कहूंगा कि फिलहाल ऐसा कुछ कीजिए जिससे भगवा वस्त्र की गरिमा बनी रहे। जिस तरह के सवाल आज आपसे किए जा रहे हैं उसके बारे में खुद मनन करें। देश के लोगों की आज भी आश्रमों, साधु, संतों में बडी आस्था है, इस आस्था को तार तार ना होने दें। ऐसा ना हो कि गंगा किनारे स्थित आपके आश्रम से ये गंगा मैली हो जाए।
साध्वी चिदर्पिता का भी साध्वी जीवन विवादों से भरा रहा है। कहा जा रहा है कि आपकी नजर स्वामी जी के करोड़ों के साम्राज्य पर थी। इसे ही हथियाने के लिए आपने ये छोटा रास्ता चुना और स्वामी जी के करीब आईं। यहां आपने साध्वी धर्म का कितना पालन किया ये तो आप ही बेहतर बता सकती हैं लेकिन आपकी रिपोर्ट से साफ हो गया है स्वामी ने आपके साथ बलात्कार किया। इससे जाहिर है कि आपके साध्वी होने पर प्रश्न खड़ा हो गया है। फिर मेरी एक बात समझ में नहीं आ रही है कि एक ओर आप स्वामी जी से सन्यास लेने की बात कर रही थीं, दूसरी ओर आपके मन में प्रेम भी पनप रहा था। ये दोनों बातें एक साथ कैसे संभव हो सकती हैं। आपके साध्वी होने के बावजूद प्रेम का पक्ष इतना मजबूत था कि आपने आश्रम से भागकर शादी कर ली,जाहिर है कि आश्रम में रहने के दौरान आपका कुछ चल रहा था, वरना शादी तो एक दिन में नहीं होती है। ये तो खुद साध्वी कहती हैं कि मुझे स्वामी जी मारते पीटते रहे, लेकिन किस बात पर इसका खुलासा नहीं किया गया।
कहा ये जा रहा है कि अब साध्वी को लगने लगा था कि स्वामी जी को उसकी जरूरत है। स्वामी जी की तमाम इच्छाएं साध्वी के बगैर पूरी नहीं हो सकतीं थीं, साध्वी इसी का फायदा उठा रही थीं। उनकी महत्वाकांक्षा लगातार बढती जा रही थी । पहले तो उनका दबाव था कि स्वामी जी अपना उत्तराधिकारी उन्हें घोषित करें। उत्तराधिकारी भी सिर्फ आश्रम या स्कूल कालेज का ही नही बल्कि राजनीतिक उत्तराधिकारी भी बनना चाहतीं थीं। उन्होंने चुनाव लड़ने की इच्छा भी चिन्मयानंद से जाहिर की। इस पर स्वामी जी भड़क गए। उन्हें लगा कि ये साध्वी अब उन पर हावी होने की कोशिश कर रही है, लिहाजा उन्होंने जमकर फटकार लगा दी।
कहा तो यही जा रहा है कि इसके बाद ही साध्वी ने अलग रास्ता चुना। स्वामी के गुस्से से साफ हो गया था कि यहां से उनके हाथ कुछ लगने वाला नहीं है। उन्हें लगा होगा कि शायद यौन उत्पीड़न के आरोप से स्वामी जी घबरा कर उन्हें बुलाएंगे और कुछ समझौता होगा। पर स्वामी जी ने अभी तक नरमी के कोई संकेत नहीं दिए हैं और पूरी घटना को एक साजिश भर बता कर पल्ला झाड ले रहे हैं।
बहरहाल साधु संतों पर आए दिन अब यौनाचार जैसे गंभीर आरोप लग रहे हैं। संतो को समझना होगा कि ऐसा वो क्या करें जिससे और कुछ ना सही लेकिन चरित्र पर धब्बा ना लगे। ये भगवा भी अगर दागदार हो गया तो समाज में लोगों का साधु संतो पर से भी भरोसा डिग जाएगा।
2 टिप्पणियाँ:
चरित्र के मामले में किसी भी संन्यासी पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। लेकिन यह भी सत्य है कि इसमें महिला भी उतनी ही जिम्मेदार होती है। भारत में आज हजारों संन्यासी हैं, जो भोग विलास में लिप्त हैं। तुलसीदास जी ने गोस्वामी पद इसीलिए छोड़ा था कि वहाँ व्यभिचार था। आज चरित्र हनन हथियार बन गया है, जब अपना उल्लू सीधा ना हो तो यही काम होता है। इसलिए ना तो वो महिला सति-सावित्री है और ना ही संन्यासी जी। अब देश की जनता को भी इनके पीछे भागना बन्द करना चाहिए।
मीरा बनने के चक्कर में, किस-किस ने घर न छोड़ा,
कौन-कौन कहाँ न फंसी, किस-किस ने कब है छोड़ा,
बहुत बेदर्द कहानी है, हर स्त्री की जुबानी है,
बात बहुत पुरानी है, झेली यह जिंदगानी है,
घर से बाहर कदम रखा, हर आँख ने तक के रखा,
मंसूबा सभी ने बना के रखा, महबूबा बक के कहा,
क्या बयाँ करूँ दास्ताँ, मेरी भी वही है,
मैं तो चुप ही रह गई, तुने बात कही है,
..... सियाना मस्कीनी
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