"रोटी से रस, रक्त, मांस, मेदा, अस्थी, मज्जा, वीर्य, मन, बुद्धी, चित, अहंकार, प्राण, आत्मा, माया, परमात्मा यह पूरा हुआ |" यह मेरा कथन है | अब यह यात्रा कैसे होती हैं बताते हैं - रोटी से रस बनता है | रस से खून बनता है | खून से मांस बनता है | मॉस से हड्डी बनती है | हड्डी से बोन मेरो बनता है | बोन मेरो से वीर्य बनता है | वीर्य जो कुंड में इक्कठा होता है | जब वीर्य का शोधन किया जाता है तो वह मन बनता है | इसलिए कहते है जैसा खाए अन्न वैसा हो मन | मन का शोधन होने के बाद बुद्धी बनती है | बुद्धी का शोधन होने से चित्त बनता है | चित्त का शोधन होने से अहंकार बनता है | अहंकार का शोधन होने से प्राण बनता है | प्राण का शोधन होने से आत्मा बनती है | आत्मा का शोधन होने से माया | माया का शोधन होने से परमात्मा बनता है | यह सभी की रोटी के साथ होता है |
.
.
1 टिप्पणियाँ:
सटीक ---तभी तो भोजन ब्रह्म है ...
एक टिप्पणी भेजें
Thanks for your valuable comment.