ख्वाहिशों के जिस्मो-जां की बेलिबासी देख ले.
काश! वो आकर कभी मेरी उदासी देख ले.
कल मेरे अहसास की जिंदादिली भी देखना
आज तो मेरे जुनूं की बदहवासी देख ले.
हर तरफ फैला हुआ है गर्मपोशी का हिसार
वक़्त के ठिठुरे बदन की कमलिबासी देख ले.
आस्मां से बादलों के काफिले रुखसत हुए
फिर ज़मीं पे रह गयी हर चीज़ प्यासी देख ले.
और क्या इस शहर में है देखने के वास्ते
जा-ब-जा बिखरे हुए मंज़र सियासी देख ले.
वहशतों की खाक है चारो तरफ फैली हुई
आदमी अबतक है जंगल का निवासी देख ले.
एक नई तहजीब उभरेगी इसी माहौल से
लोग कहते हैं कि गौतम सन उनासी देख ले.
2 टिप्पणियाँ:
संभावनाएं कभी खत्म नहीं होती बस प्रयास जारी रखने होते हैं |
अच्छा लिखा है
nice...keep in touch ..on my blog
kalamdaan.blogspt.com
एक टिप्पणी भेजें
Thanks for your valuable comment.