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आख़िर क्यों

Written By Hema Nimbekar on गुरुवार, 31 मार्च 2011 | 6:18 pm

क्यों आज इंसान खुद ही एक वेहेशी जानवर बन गया है।
क्यों वो आज भी मज़हब के नाम पे लड़ता रह गया है॥
क्या सच में यहाँ कोई मुस्लिम या कोई हिन्दु रह गया है।
क्या एक दुसरे को मारना काटना धर्म का मतलब यही रह गया है॥
क्या यह गीता में लिखा है,
कि जो हिन्दू है वही इंसान रह गया है।
क्या यह कुरान में लिखा है,
कि मुस्लिम कौम ही बस एक मज़हब रह गया है॥
क्या इस्सू मसि ने यह कहा है,
कि रोटी की जगह गोलियाँ ही बांटना रह गया है।
क्या गुरु नानक ने सिखाया है,
कि दुसरे के घर घुस वहां दहशत बचाना रह गया है॥
कितना कत्ले आम किया अब तो लड़ना छोडें हम,
अब एक दुसरे को फिर से गले लगना रह गया है।
शान्ति बनाये एकजुट हो जाए एक मानव धर्म निभाए,
फिर इस धरती माँ को गले लगना ही रह गया है॥
उन वीर जवानों ने अपना धर्म निभाया है,
अब उनकी इस अनकहीं कुर्बानी का क़र्ज़ निभाना रह गया है।
धरती माँ के वो पूत कुछ करने आए थे,
जिस मिटटी संग खेले बचपन में उसी में समाना रह गया है॥ 


~'~hn~'~
(One of the poems written by me after Mumbai Attack-26 Nov 08 .....)


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3 टिप्पणियाँ:

Brahmachari Prahladanand ने कहा…

इन्सानी हकीकत से रूबरू होना बाकी है |
लड़ना और मारना तो इसकी फितरत है ||
गले लगाकर ही तो यह पीठ में छुरा घोप्ता है |
पहले दोस्ती और फिर दोस्त से दगा करता है ||

यह तो है धर्मों और मजहबों की बातें |
जिसके बिना कटती नहीं हैं रातें ||
बस यही सोचते हैं की अब किसको काटें |
फिर उसके धन, दौलत और औरत को अपने आपस में बाटें ||

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

मौत एक अटल सच्चाई है और तौहीद सबसे बड़ी दौलत है. यह इंसान को बहुत से जुर्म और पाप से बचाकर उसे जीते जी भी सुकून देती है और मरने के बाद भी राहत देती है. यही वह सच्ची दौलत है जो इंसान के साथ मरने के बाद भी जाती है.
तौहीद और शिर्क

Pappu Parihar Bundelkhandi ने कहा…

मातम न मना ओ प्यार मेरे, देख अभी मैं जिन्दा हूँ |
रुखसत न हुआ अभी जनाजा मेरा, इंतज़ार है तेरी वफ़ा का मुझे |

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