और (तुम्हारा गुमान बिल्कुल ग़लत है) किसी नबी की (हरगिज़) ये शान नहीं कि
ख़्यानत करे और ख़्यानत करेगा तो जो चीज़ ख़्यानत की है क़यामत के दिन वही
चीज़ (बिलकुल वैसा ही) ख़ुदा के सामने लाना होगा फिर हर शख़्स अपने किए का
पूरा पूरा बदला पाएगा और उनकी किसी तरह हक़तल्फ़ी नहीं की जाएगी (161)
भला जो शख़्स ख़ुदा की ख़ुशनूदी का पाबन्द हो क्या वह उस शख़्स के बराबर हो सकता है जो ख़ुदा के गज़ब में गिरफ़्तार हो और जिसका ठिकाना जहन्नुम है और वह क्या बुरा ठिकाना है (162)
वह लोग खुदा के यहाँ मुख़्तलिफ़ दरजों के हैं और जो कुछ वह करते हैं ख़ुदा देख रहा है (163)
ख़ुदा ने तो ईमानदारों पर बड़ा एहसान किया कि उनके वास्ते उन्हीं की क़ौम का एक रसूल भेजा जो उन्हें खुदा की आयतें पढ़ पढ़ के सुनाता है और उनकी तबीयत को पाकीज़ा करता है और उन्हें किताबे (ख़ुदा) और अक़्ल की बातें सिखाता है अगरचे वह पहले खुली हुयी गुमराही में पडे़ थे (164)
मुसलमानों क्या जब तुमपर (जंगे ओहद) में वह मुसीबत पड़ी जिसकी दूनी मुसीबत तुम (कुफ़्फ़ार पर) डाल चुके थे तो (घबरा के) कहने लगे ये (आफ़त) क़हाँ से आ गयी (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ये तो खुद तुम्हारी ही तरफ़ से है (न रसूल की मुख़ालेफ़त करते न सज़ा होती) बेशक ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है (165)
और जिस दिन दो जमाअतें आपस में गुंथ गयीं उस दिन तुम पर जो मुसीबत पड़ी वह तुम्हारी शरारत की वजह से (ख़ुदा की इजाजत की वजह से आयी) और ताकि ख़ुदा सच्चे ईमान वालों को देख ले (166)
और मुनाफि़क़ों को देख ले (कि कौन है) और मुनाफि़क़ों से कहा गया कि आओ ख़ुदा की राह में जेहाद करो या (ये न सही अपने दुशमन को) हटा दो तो कहने लगे (हाए क्या कहीं) अगर हम लड़ना जानते तो ज़रूर तुम्हारा साथ देते ये लोग उस दिन बनिस्बते ईमान के कुफ्र के ज़्यादा क़रीब थे अपने मुँह से वह बातें कह देते हैं जो उनके दिल में (ख़ाक) नहीं होतीं और जिसे वह छिपाते हैं ख़ुदा उसे ख़ूब जानता है (167)
(ये वही लोग हैं) जो (आप चैन से घरों में बैठे रहते है और अपने शहीद) भाईयों के बारे में कहने लगे काश हमारी पैरवी करते तो न मारे जाते (ऐ रसूल) उनसे कहो (अच्छा) अगर तुम सच्चे हो तो ज़रा अपनी जान से मौत को टाल दो (168)
और जो लोग ख़ुदा की राह में शहीद किए गए उन्हें हरगिज़ मुर्दा न समझना बल्कि वह लोग जीते जागते मौजूद हैं अपने परवरदिगार की तरफ़ से वह (तरह तरह की) रोज़ी पाते हैं (169)
और ख़ुदा ने जो फ़ज़ल व करम उन पर किया है उसकी (ख़ुशी) से फूले नहीं समाते और जो लोग उनसे पीछे रह गए और उनमें आकर शामिल नहीं हुए उनकी निस्बत ये (ख़्याल करके) ख़ुशियां मनाते हैं कि (ये भी शहीद हों तो) उनपर न किसी कि़स्म का ख़ौफ़ होगा और न आज़ुर्दा ख़ातिर होंगे (170)
भला जो शख़्स ख़ुदा की ख़ुशनूदी का पाबन्द हो क्या वह उस शख़्स के बराबर हो सकता है जो ख़ुदा के गज़ब में गिरफ़्तार हो और जिसका ठिकाना जहन्नुम है और वह क्या बुरा ठिकाना है (162)
वह लोग खुदा के यहाँ मुख़्तलिफ़ दरजों के हैं और जो कुछ वह करते हैं ख़ुदा देख रहा है (163)
ख़ुदा ने तो ईमानदारों पर बड़ा एहसान किया कि उनके वास्ते उन्हीं की क़ौम का एक रसूल भेजा जो उन्हें खुदा की आयतें पढ़ पढ़ के सुनाता है और उनकी तबीयत को पाकीज़ा करता है और उन्हें किताबे (ख़ुदा) और अक़्ल की बातें सिखाता है अगरचे वह पहले खुली हुयी गुमराही में पडे़ थे (164)
मुसलमानों क्या जब तुमपर (जंगे ओहद) में वह मुसीबत पड़ी जिसकी दूनी मुसीबत तुम (कुफ़्फ़ार पर) डाल चुके थे तो (घबरा के) कहने लगे ये (आफ़त) क़हाँ से आ गयी (ऐ रसूल) तुम कह दो कि ये तो खुद तुम्हारी ही तरफ़ से है (न रसूल की मुख़ालेफ़त करते न सज़ा होती) बेशक ख़ुदा हर चीज़ पर क़ादिर है (165)
और जिस दिन दो जमाअतें आपस में गुंथ गयीं उस दिन तुम पर जो मुसीबत पड़ी वह तुम्हारी शरारत की वजह से (ख़ुदा की इजाजत की वजह से आयी) और ताकि ख़ुदा सच्चे ईमान वालों को देख ले (166)
और मुनाफि़क़ों को देख ले (कि कौन है) और मुनाफि़क़ों से कहा गया कि आओ ख़ुदा की राह में जेहाद करो या (ये न सही अपने दुशमन को) हटा दो तो कहने लगे (हाए क्या कहीं) अगर हम लड़ना जानते तो ज़रूर तुम्हारा साथ देते ये लोग उस दिन बनिस्बते ईमान के कुफ्र के ज़्यादा क़रीब थे अपने मुँह से वह बातें कह देते हैं जो उनके दिल में (ख़ाक) नहीं होतीं और जिसे वह छिपाते हैं ख़ुदा उसे ख़ूब जानता है (167)
(ये वही लोग हैं) जो (आप चैन से घरों में बैठे रहते है और अपने शहीद) भाईयों के बारे में कहने लगे काश हमारी पैरवी करते तो न मारे जाते (ऐ रसूल) उनसे कहो (अच्छा) अगर तुम सच्चे हो तो ज़रा अपनी जान से मौत को टाल दो (168)
और जो लोग ख़ुदा की राह में शहीद किए गए उन्हें हरगिज़ मुर्दा न समझना बल्कि वह लोग जीते जागते मौजूद हैं अपने परवरदिगार की तरफ़ से वह (तरह तरह की) रोज़ी पाते हैं (169)
और ख़ुदा ने जो फ़ज़ल व करम उन पर किया है उसकी (ख़ुशी) से फूले नहीं समाते और जो लोग उनसे पीछे रह गए और उनमें आकर शामिल नहीं हुए उनकी निस्बत ये (ख़्याल करके) ख़ुशियां मनाते हैं कि (ये भी शहीद हों तो) उनपर न किसी कि़स्म का ख़ौफ़ होगा और न आज़ुर्दा ख़ातिर होंगे (170)
1 टिप्पणियाँ:
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