(उनकी भी) क़ौमे फि़रऔन और उनसे पहले वालों की सी हालत है कि उन लोगों ने
हमारी आयतों को झुठलाया तो खुदा ने उन्हें उनके गुनाहों की पादाश {सज़ा}
में ले डाला और ख़ुदा सख़्त सज़ा देने वाला है (11)
(ऐ रसूल) जिन लोगों ने कुफ्र इख़्तेयार किया उनसे कह दो कि बहुत जल्द तुम (मुसलमानो के मुक़ाबले में) मग़लूब {हारे हुए} होंगे और जहन्नुम में इकट्ठे किये जाओगे और वह (क्या) बुरा ठिकाना है (12)
बेशक तुम्हारे (समझाने के) वास्ते उन दो (मुख़ालिफ़ गिरोहों में जो (बद्र की लड़ाई में) एक दूसरे के साथ गुथ गए (रसूल की सच्चाई की) बड़ी भारी निशानी है कि एक गिरोह ख़ुदा की राह में जेहाद करता था और दूसरा काफि़रों का जिनको मुसलमान अपनी आँख से दुगना देख रहे थे (मगर ख़ुदा ने क़लील ही को फ़तह दी) और ख़ुदा अपनी मदद से जिस की चाहता है ताईद करता है बेशक आँख वालों के वास्ते इस वाक़ये में बड़ी इबरत है (13)
दुनिया में लोगों को उनकी मरग़ूब चीज़े (मसलन) बीवियों और बेटों और सोने चाँदी के बड़े बड़े लगे हुए ढेरों और उम्दा उम्दा घोड़ों और मवेशियों ओर खेती के साथ उलफ़त भली करके दिखा दी गई है ये सब दुनयावी जि़न्दगी के (चन्द रोज़ा) फ़ायदे हैं और (हमेशा का) अच्छा ठिकाना तो ख़ुदा ही के यहां है (14)
(ऐ रसूल) उन लोगों से कह दो कि क्या मैं तुमको उन सब चीज़ों से बेहतर चीज़ बता दू (अच्छा सुनो) जिन लोगों ने परहेज़गारी इख़्तेयार की उनके लिए उनके परवरदिगार के यहां (बेहिश्त) के वह बाग़ात हैं जिनके नीचे नहरें जारी हैं (और वह) हमेशा उसमें रहेंगे और उसके अलावा उनके लिए साफ सुथरी बीवियां हैं और (सबसे बढ़कर) ख़ुदा की ख़ुशनूदी है और ख़ुदा (अपने) उन बन्दों को खूब देख रहा हे जो दुआऐं मांगा करते हैं (15)
कि हमारे पालने वाले हम तो (बेताम्मुल) इमान लाए हैं बस तू भी हमारे गुनाहों को बख़्श दे और हमको दोज़ख़ के अज़ाब से बचा (16)
(यही लोग हैं) सब्र करने वाले और सच बोलने वाले और (ख़ुदा के) फ़रमाबरदार और (ख़ुदा की राह में) ख़र्च करने वाले और पिछली रातों में (ख़ुदा से तौबा) इस्तग़फ़ार करने वाले (17)
ज़रूर ख़ुदा और फ़रिश्तों और इल्म वालों ने गवाही दी है कि उसके सिवा कोई माबूद क़ाबिले परसतिश नहीं है और वह ख़ुदा अद्ल व इन्साफ़ के साथ (कारख़ानाए आलम का) सॅभालने वाला है उसके सिवा कोई माबूद नहीं (वही हर चीज़ पर) ग़ालिब और दाना है (सच्चा) दीन तो ख़ुदा के नज़दीक यक़ीनन (बस यही) इस्लाम है (18)
और अहले किताब ने जो उस दीने हक़ से इख़्तेलाफ़ किया तो महज़ आपस की शरारत और असली (अम्र) मालूम हो जाने के बाद (ही क्या है) और जिस शख़्स ने ख़ुदा की निशानियों से इन्कार किया तो (वह समझ ले कि यक़ीनन ख़ुदा (उससे) बहुत जल्दी हिसाब लेने वाला है (19)
(ऐ रसूल) बस अगर ये लोग तुमसे (ख़्वाह मा ख़्वाह) हुज्जत करे तो कह दो मैंने ख़ुदा के आगे अपना सरे तस्लीम ख़म कर दिया है और जो मेरे ताबे है (उन्होंने) भी) और ऐ रसूल तुम एहले किताब और जाहिलों से पूॅछो कि क्या तुम भी इस्लाम लाए हो (या नही) बस अगर इस्लाम लाए हैं तो बेख़टके राहे रास्त पर आ गए और अगर मुँह फेरे तो (ऐ रसूल) तुम पर सिर्फ़ पैग़ाम (इस्लाम) पंहुचा देना फ़र्ज़ है (बस) और ख़ुदा (अपने बन्दों) को देख रहा है (20)
(ऐ रसूल) जिन लोगों ने कुफ्र इख़्तेयार किया उनसे कह दो कि बहुत जल्द तुम (मुसलमानो के मुक़ाबले में) मग़लूब {हारे हुए} होंगे और जहन्नुम में इकट्ठे किये जाओगे और वह (क्या) बुरा ठिकाना है (12)
बेशक तुम्हारे (समझाने के) वास्ते उन दो (मुख़ालिफ़ गिरोहों में जो (बद्र की लड़ाई में) एक दूसरे के साथ गुथ गए (रसूल की सच्चाई की) बड़ी भारी निशानी है कि एक गिरोह ख़ुदा की राह में जेहाद करता था और दूसरा काफि़रों का जिनको मुसलमान अपनी आँख से दुगना देख रहे थे (मगर ख़ुदा ने क़लील ही को फ़तह दी) और ख़ुदा अपनी मदद से जिस की चाहता है ताईद करता है बेशक आँख वालों के वास्ते इस वाक़ये में बड़ी इबरत है (13)
दुनिया में लोगों को उनकी मरग़ूब चीज़े (मसलन) बीवियों और बेटों और सोने चाँदी के बड़े बड़े लगे हुए ढेरों और उम्दा उम्दा घोड़ों और मवेशियों ओर खेती के साथ उलफ़त भली करके दिखा दी गई है ये सब दुनयावी जि़न्दगी के (चन्द रोज़ा) फ़ायदे हैं और (हमेशा का) अच्छा ठिकाना तो ख़ुदा ही के यहां है (14)
(ऐ रसूल) उन लोगों से कह दो कि क्या मैं तुमको उन सब चीज़ों से बेहतर चीज़ बता दू (अच्छा सुनो) जिन लोगों ने परहेज़गारी इख़्तेयार की उनके लिए उनके परवरदिगार के यहां (बेहिश्त) के वह बाग़ात हैं जिनके नीचे नहरें जारी हैं (और वह) हमेशा उसमें रहेंगे और उसके अलावा उनके लिए साफ सुथरी बीवियां हैं और (सबसे बढ़कर) ख़ुदा की ख़ुशनूदी है और ख़ुदा (अपने) उन बन्दों को खूब देख रहा हे जो दुआऐं मांगा करते हैं (15)
कि हमारे पालने वाले हम तो (बेताम्मुल) इमान लाए हैं बस तू भी हमारे गुनाहों को बख़्श दे और हमको दोज़ख़ के अज़ाब से बचा (16)
(यही लोग हैं) सब्र करने वाले और सच बोलने वाले और (ख़ुदा के) फ़रमाबरदार और (ख़ुदा की राह में) ख़र्च करने वाले और पिछली रातों में (ख़ुदा से तौबा) इस्तग़फ़ार करने वाले (17)
ज़रूर ख़ुदा और फ़रिश्तों और इल्म वालों ने गवाही दी है कि उसके सिवा कोई माबूद क़ाबिले परसतिश नहीं है और वह ख़ुदा अद्ल व इन्साफ़ के साथ (कारख़ानाए आलम का) सॅभालने वाला है उसके सिवा कोई माबूद नहीं (वही हर चीज़ पर) ग़ालिब और दाना है (सच्चा) दीन तो ख़ुदा के नज़दीक यक़ीनन (बस यही) इस्लाम है (18)
और अहले किताब ने जो उस दीने हक़ से इख़्तेलाफ़ किया तो महज़ आपस की शरारत और असली (अम्र) मालूम हो जाने के बाद (ही क्या है) और जिस शख़्स ने ख़ुदा की निशानियों से इन्कार किया तो (वह समझ ले कि यक़ीनन ख़ुदा (उससे) बहुत जल्दी हिसाब लेने वाला है (19)
(ऐ रसूल) बस अगर ये लोग तुमसे (ख़्वाह मा ख़्वाह) हुज्जत करे तो कह दो मैंने ख़ुदा के आगे अपना सरे तस्लीम ख़म कर दिया है और जो मेरे ताबे है (उन्होंने) भी) और ऐ रसूल तुम एहले किताब और जाहिलों से पूॅछो कि क्या तुम भी इस्लाम लाए हो (या नही) बस अगर इस्लाम लाए हैं तो बेख़टके राहे रास्त पर आ गए और अगर मुँह फेरे तो (ऐ रसूल) तुम पर सिर्फ़ पैग़ाम (इस्लाम) पंहुचा देना फ़र्ज़ है (बस) और ख़ुदा (अपने बन्दों) को देख रहा है (20)
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