बेशक जिन लोगों ने कुफ्रइखि़्तयार किया और कुफ्रकी हालत में मर गये तो
अगरचे इतना सोना भी किसी की गुलू ख़लासी {छुटकारा पाने} में दिया जाए कि
ज़मीन भर जाए तो भी हरगिज़ न कु़बूल किया जाएगा यही लोग हैं जिनके लिए
दर्दनाक अज़ाब होगा और उनका कोई मददगार भी न होगा (91)
(लोगों) जब तक तुम अपनी पसन्दीदा चीज़ों में से कुछ राहे ख़ुदा में ख़र्च न करोगे हरगिज़ नेकी के दरजे पर फ़ायज़ नहीं हो सकते और तुम कोई (92)
सी चीज़ भी ख़र्च करो ख़ुदा तो उसको ज़रूर जानता है तौरैत के नाजि़ल होने के क़ब्ल याकू़ब ने जो जो चीज़े अपने ऊपर हराम कर ली थीं उनके सिवा बनी इसराइल के लिए सब खाने हलाल थे (ऐ रसूल उन यहूद से) कह दो कि अगर तुम (अपने दावे में सच्चे हो तो तौरेत ले आओ (93)
और उसको (हमारे सामने) पढ़ो फिर उसके बाद भी जो कोई ख़ुदा पर झूठ तूफ़ान जोड़े तो (समझ लो) कि यही लोग ज़ालिम (हठधर्म) हैं (94)
(ऐ रसूल) कह दो कि ख़ुदा ने सच फ़रमाया तो अब तुम मिल्लते इबराहीम (इस्लाम) की पैरवी करो जो बातिल से कतरा के चलते थे और मुशरेकीन से न थे (95)
लोगों (की इबादत) के वास्ते जो घर सबसे पहले बनाया गया वह तो यक़ीनन यही (काबा) है जो मक्के में है बड़ी (खै़र व बरकत) वाला और सारे जहान के लोगों का रहनुमा (96)
इसमें (हुरमत की) बहुत सी वाज़े और रौशन निशानिया हैं (उनमें से) मुक़ाम इबराहीम है (जहाँ आपके क़दमों का पत्थर पर निशान है) और जो इस घर में दाखि़ल हुआ अमन में आ गया और लोगों पर वाजिब है कि महज़ ख़ुदा के लिए ख़ानाए काबा का हज करें जिन्हे वहां तक पहुँचने की इस्तेताअत है और जिसने बावजूद कु़दरत हज से इन्कार किया तो (याद रखे) कि ख़ुदा सारे जहान से बेपरवाह है (97)
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ अहले किताब खुदा की आयतो से क्यो मुन्किर हुए जाते हो हालांकि जो काम काज तुम करते हो खु़दा को उसकी (पूरी) पूरी इत्तेला है (98)
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ अहले किताब दीदए दानिस्ता (जान बुझ कर) खुदा की (सीधी) राह में (नाहक़ की) कज़ी ढॅूढो (ढूढ) के ईमान लाने वालों को उससे क्यों रोकते हो ओर जो कुछ तुम करते हो खु़दा उससे बेख़बर नहीं है (99)
ऐ ईमान वालों अगर तुमने एहले किताब के किसी फि़रके़ का भी कहना माना तो (याद रखो कि) वह तुमको ईमान लाने के बाद (भी) फिर दुबारा काफि़र बना छोडेंगे (100)
(लोगों) जब तक तुम अपनी पसन्दीदा चीज़ों में से कुछ राहे ख़ुदा में ख़र्च न करोगे हरगिज़ नेकी के दरजे पर फ़ायज़ नहीं हो सकते और तुम कोई (92)
सी चीज़ भी ख़र्च करो ख़ुदा तो उसको ज़रूर जानता है तौरैत के नाजि़ल होने के क़ब्ल याकू़ब ने जो जो चीज़े अपने ऊपर हराम कर ली थीं उनके सिवा बनी इसराइल के लिए सब खाने हलाल थे (ऐ रसूल उन यहूद से) कह दो कि अगर तुम (अपने दावे में सच्चे हो तो तौरेत ले आओ (93)
और उसको (हमारे सामने) पढ़ो फिर उसके बाद भी जो कोई ख़ुदा पर झूठ तूफ़ान जोड़े तो (समझ लो) कि यही लोग ज़ालिम (हठधर्म) हैं (94)
(ऐ रसूल) कह दो कि ख़ुदा ने सच फ़रमाया तो अब तुम मिल्लते इबराहीम (इस्लाम) की पैरवी करो जो बातिल से कतरा के चलते थे और मुशरेकीन से न थे (95)
लोगों (की इबादत) के वास्ते जो घर सबसे पहले बनाया गया वह तो यक़ीनन यही (काबा) है जो मक्के में है बड़ी (खै़र व बरकत) वाला और सारे जहान के लोगों का रहनुमा (96)
इसमें (हुरमत की) बहुत सी वाज़े और रौशन निशानिया हैं (उनमें से) मुक़ाम इबराहीम है (जहाँ आपके क़दमों का पत्थर पर निशान है) और जो इस घर में दाखि़ल हुआ अमन में आ गया और लोगों पर वाजिब है कि महज़ ख़ुदा के लिए ख़ानाए काबा का हज करें जिन्हे वहां तक पहुँचने की इस्तेताअत है और जिसने बावजूद कु़दरत हज से इन्कार किया तो (याद रखे) कि ख़ुदा सारे जहान से बेपरवाह है (97)
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ अहले किताब खुदा की आयतो से क्यो मुन्किर हुए जाते हो हालांकि जो काम काज तुम करते हो खु़दा को उसकी (पूरी) पूरी इत्तेला है (98)
(ऐ रसूल) तुम कह दो कि ऐ अहले किताब दीदए दानिस्ता (जान बुझ कर) खुदा की (सीधी) राह में (नाहक़ की) कज़ी ढॅूढो (ढूढ) के ईमान लाने वालों को उससे क्यों रोकते हो ओर जो कुछ तुम करते हो खु़दा उससे बेख़बर नहीं है (99)
ऐ ईमान वालों अगर तुमने एहले किताब के किसी फि़रके़ का भी कहना माना तो (याद रखो कि) वह तुमको ईमान लाने के बाद (भी) फिर दुबारा काफि़र बना छोडेंगे (100)
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