जो लोग (यहूद) ये कहते हैं कि ख़ुदा तो कंगाल है और हम बड़े मालदार हैं
ख़ुदा ने उनकी ये बकवास सुनी उन लोगों ने जो कुछ किया उसको और उनका
पैग़म्बरों को नाहक़ क़त्ल करना हम अभी से लिख लेते हैं और (आज तो जो जी
में कहें मगर क़यामत के दिन) हम कहेंगे कि अच्छा तो लो (अपनी शरारत के एवज़
में) जलाने वाले अज़ाब का मज़ा चखो ((181)
ये उन्हीं कामों का बदला है जिनको तुम्हारे हाथों ने (ज़ादे आख़ेरत बना कर) पहले से भेजा है वरना ख़ुदा तो कभी अपने बन्दों पर ज़ुल्म करने वाला नहीं (182)
(यह वही लोग हैं) जो कहते हैं कि ख़ुदा ने तो हमसे वायदा किया है कि जब तक कोई रसूल हमें ये (मौजिज़ा) न दिखा दे कि वह कुरबानी करे और उसको (आसमानी) आग आकर चट कर जाए उस वक़्त तक हम ईमान न लाएंगें (ऐ रसूल) तुम कह दो कि (भला) ये तो बताओ बहुतेरे पैग़म्बर मुझसे क़ब्ल तुम्हारे पास वाजे़ व रौशन मौजिज़ात और जिस चीज़ की तुमने (उस वक़्त) फ़रमाइश की है (वह भी) लेकर आए फिर तुम अगर (अपने दावे में) सच्चे हो तो तुमने उन्हें क्यों क़त्ल किया (183)
(ऐ रसूल) अगर वह इस पर भी तुम्हें झुठलाएं तो (तुम आज़ुर्दा न हो क्योंकि) तुमसे पहले भी बहुत से पैग़म्बर रौशन मौजिज़े और सहीफे़ और नूरानी किताब लेकर आ चुके हैं (मगर) फिर भी लोगों ने आखि़र झुठला ही छोड़ा (184)
हर जान एक न एक (दिन) मौत का मज़ा चखेगी और तुम लोग क़यामत के दिन (अपने किए का) पूरा पूरा बदला भर पाओगे बस जो शख़्स जहन्नुम से हटा दिया गया और बहिश्त में पहुचा दिया गया बस वही कामयाब हुआ और दुनिया की (चन्द रोज़ा) जि़न्दगी धोखे की टट्टी के सिवा कुछ नहीं (185)
(मुसलमानों) तुम्हारे मालों और जानों का तुमसे ज़रूर इम्तेहान लिया जाएगा और जिन लोगो को तुम से पहले किताबे ख़ुदा दी जा चुकी है (यहूद व नसारा) उनसे और मुशरेकीन से बहुत ही दुख दर्द की बातें तुम्हें ज़रूर सुननी पड़ेंगी और अगर तुम (उन मुसीबतों को) झेल जाओगे और परहेज़गारी करते रहोगे तो बेशक ये बड़ी हिम्मत का काम है (186)
और (ऐ रसूल) इनको वह वक़्त तो याद दिलाओ जब ख़ुदा ने एहले किताब से एहद व पैमान लिया था कि तुम किताबे ख़ुदा को साफ़ साफ़ बयान कर देना और (ख़बरदार) उसकी कोई बात छुपाना नहीं मगर इन लोगों ने (ज़रा भी ख़्याल न किया) और उनको बसे पुश्त फेंक दिया और उसके बदले में (बस) थोड़ी सी क़ीमत हासिल कर ली बस ये क्या ही बुरा (सौदा) है जो ये लोग ख़रीद रहे हैं (187)
(ऐ रसूल) तुम उन्हें ख़्याल में भी न लाना जो अपनी कारस्तानी पर इतराए जाते हैं और किया कराया ख़ाक नहीं (मगर) तारीफ़ के ख़ास्तगार {चाहते} हैं बस तुम हरगिज़ ये ख़्याल न करना कि इनको अज़ाब से छुटकारा है बल्कि उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है (188)
और आसमान व ज़मीन सब ख़ुदा ही का मुल्क है और ख़ुदा ही हर चीज़ पर क़ादिर है (189)
इसमें तो शक ही नहीं कि आसमानों और ज़मीन की पैदाइश और रात दिन के फेर बदल में अक़्लमन्दों के लिए (क़ुदरत ख़ुदा की) बहुत सी निशानिया हैं (190)
ये उन्हीं कामों का बदला है जिनको तुम्हारे हाथों ने (ज़ादे आख़ेरत बना कर) पहले से भेजा है वरना ख़ुदा तो कभी अपने बन्दों पर ज़ुल्म करने वाला नहीं (182)
(यह वही लोग हैं) जो कहते हैं कि ख़ुदा ने तो हमसे वायदा किया है कि जब तक कोई रसूल हमें ये (मौजिज़ा) न दिखा दे कि वह कुरबानी करे और उसको (आसमानी) आग आकर चट कर जाए उस वक़्त तक हम ईमान न लाएंगें (ऐ रसूल) तुम कह दो कि (भला) ये तो बताओ बहुतेरे पैग़म्बर मुझसे क़ब्ल तुम्हारे पास वाजे़ व रौशन मौजिज़ात और जिस चीज़ की तुमने (उस वक़्त) फ़रमाइश की है (वह भी) लेकर आए फिर तुम अगर (अपने दावे में) सच्चे हो तो तुमने उन्हें क्यों क़त्ल किया (183)
(ऐ रसूल) अगर वह इस पर भी तुम्हें झुठलाएं तो (तुम आज़ुर्दा न हो क्योंकि) तुमसे पहले भी बहुत से पैग़म्बर रौशन मौजिज़े और सहीफे़ और नूरानी किताब लेकर आ चुके हैं (मगर) फिर भी लोगों ने आखि़र झुठला ही छोड़ा (184)
हर जान एक न एक (दिन) मौत का मज़ा चखेगी और तुम लोग क़यामत के दिन (अपने किए का) पूरा पूरा बदला भर पाओगे बस जो शख़्स जहन्नुम से हटा दिया गया और बहिश्त में पहुचा दिया गया बस वही कामयाब हुआ और दुनिया की (चन्द रोज़ा) जि़न्दगी धोखे की टट्टी के सिवा कुछ नहीं (185)
(मुसलमानों) तुम्हारे मालों और जानों का तुमसे ज़रूर इम्तेहान लिया जाएगा और जिन लोगो को तुम से पहले किताबे ख़ुदा दी जा चुकी है (यहूद व नसारा) उनसे और मुशरेकीन से बहुत ही दुख दर्द की बातें तुम्हें ज़रूर सुननी पड़ेंगी और अगर तुम (उन मुसीबतों को) झेल जाओगे और परहेज़गारी करते रहोगे तो बेशक ये बड़ी हिम्मत का काम है (186)
और (ऐ रसूल) इनको वह वक़्त तो याद दिलाओ जब ख़ुदा ने एहले किताब से एहद व पैमान लिया था कि तुम किताबे ख़ुदा को साफ़ साफ़ बयान कर देना और (ख़बरदार) उसकी कोई बात छुपाना नहीं मगर इन लोगों ने (ज़रा भी ख़्याल न किया) और उनको बसे पुश्त फेंक दिया और उसके बदले में (बस) थोड़ी सी क़ीमत हासिल कर ली बस ये क्या ही बुरा (सौदा) है जो ये लोग ख़रीद रहे हैं (187)
(ऐ रसूल) तुम उन्हें ख़्याल में भी न लाना जो अपनी कारस्तानी पर इतराए जाते हैं और किया कराया ख़ाक नहीं (मगर) तारीफ़ के ख़ास्तगार {चाहते} हैं बस तुम हरगिज़ ये ख़्याल न करना कि इनको अज़ाब से छुटकारा है बल्कि उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है (188)
और आसमान व ज़मीन सब ख़ुदा ही का मुल्क है और ख़ुदा ही हर चीज़ पर क़ादिर है (189)
इसमें तो शक ही नहीं कि आसमानों और ज़मीन की पैदाइश और रात दिन के फेर बदल में अक़्लमन्दों के लिए (क़ुदरत ख़ुदा की) बहुत सी निशानिया हैं (190)
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