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ग़ज़ल - दिलबाग विर्क

Written By डॉ. दिलबागसिंह विर्क on रविवार, 4 दिसंबर 2011 | 8:00 pm


                        इस दिल ने नादानी में
                   आग लगा दी पानी में ।

                   वा'दे सारे खाक हुए
                   आया मोड़ कहानी में ।

                   तेरी याद चली आए
                   है ये दोष निशानी में ।

                   कब उल्फत को समझ सके
                   लोग फँसे नादानी में ।

                   या रब ऐसा क्यों होता 
                   दुख हर प्यार कहानी में ।

                   टूटा दिल, बहते आँसू
                   पाए विर्क जवानी में ।

                         * * * * *
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4 टिप्पणियाँ:

संजय भास्‍कर ने कहा…

...बहुत खूब!

vandana gupta ने कहा…

सुन्दर ख्याल

रविकर ने कहा…

आभार ||

सुन्दर प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारें ||

chitrayepanne.blogspot.com

Rajesh Kumari ने कहा…

bahut khoobsurat jajbaat.

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