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बहस : जेपी बनाम अन्ना

Written By महेन्द्र श्रीवास्तव on शनिवार, 12 नवंबर 2011 | 3:38 pm


मित्रों, देश में एक नई बहस शुरू  हो  चुकी हैजेपी आंदोलन बनाम अन्ना का आंदोलन । मैं हैरान इस बात से  हूं कि  लोग  आंदोलन की समीक्षा निष्पक्ष होकर नहीं कर रहे हैं और कुछ  लोग जेपी  को नीचा  दिखाने की कोशिश कर रहे हैं तो कुछ अन्ना को।
पहले मैं संक्षेप में दूसरों के विचारों से  आपको अवगत करा दूं। कहा जा रहा है कि जेपी ने आंदोलन की शुरूआत नहीं  की थी । देश में 1974 में बेरोजगारी, मंहगाई और भ्रष्ट्राचार को लेकर युवा वर्ग खुद ही आगे आया और देश भर में एक  अभियान की शुरुआत  हुई । बाद में इसी आंदोलन को जेपी  ने नेतृत्व दिया ।  जेपी आंदोलन की ये कहकर भी आलोचना की जा रही है कि  उनका  आंदोलन हिंसात्मक  हो चुका था ।  उस आंदोलन ने देश में अस्थिरता का माहौल  बना दिया था । आगजनी, रास्ता जाम, हिंसा आम बात हो चुकी थी । जेपी की आलोचना करने वाले  यहां तक कह रहे हैं कि आंदोलन के दौरान हिंसा में तमाम लोग मारे गए, लेकिन जेपी  ने इसके लिए कभी  खेद नहीं जताया ।
अन्ना की प्रशंसा में कहा जा रहा है कि देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना और उनकी टीम ने पूरा आंदोलन खड़ा किया है । ये  आंदोलन हिंसात्मक भी नहीं है । खुद अन्ना लगातार लोगों से अपील करते हैं कि  आंदोलनकारी किसी तरह की हिंसा से दूर रहें । इस आंदोलन को सिविल  सोसायटी के  लोगों ने आमजनता का आंदोलन बना दिया है । अब देश भर से भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठने लगी है । मैं भी  अन्ना तू भी अन्ना के नारे देश भर में लग रहे हैं ।
मित्रों दोनों की बातें आपके  सामने है । इसी आधार पर कुछ  लोग जेपी को छोटा और अन्ना को बड़ा बताने की कोशिश कर रहे हैं , लेकिन जेपी को छोटा बताने वालों से मेरा एक सवाल  है ।  दोस्तों क्या आप बता सकते  हैं कि जिस दौरान जेपी का आंदोलन चल रहा था क्या उस समय भी इलेक्ट्रानिक मीडिया इतनी ही मजूबत थी ? आज अन्ना को  कोई संदेश लोगों तक पहुंचाना हो तो  वो टीवी चैनलों के जरिए वो  देशवासियों से सीधा संवाद कर सकते हैं, पर उस दौरान ऐसा नहीं  था ।   जेपी आंदोलन से जुडे लोगों को अपनी बात ही लोगों तक पहुंचाने में पसीने छूट जाते थे ।

जेपी जिस सशक्त सरकार और मजबूत प्रधानमंत्री स्व. इंदिरागांधी से संघर्ष कर रहे थे, क्या अन्ना की लड़ाई उतनी मजबूत सरकार और तेजतर्रार प्रधानमंत्री से  है । अन्ना का आंदोलन मजबूत ही इसलिए है कि देश में कमजोर  प्रधानमंत्री है और  सरकार डायलिसिस पर है । इस सरकार को हर दिन डायलिसिस पर रखा  जाता है, तब जाकर इसकी सांसे चलती हैं।  इदिरा जी सरकार मे अरविंद केजरीवाल जैसे लोग हिम्मत जुटा पाते प्रधानमंत्री कार्यालय को   जुर्माने की राशि भेजने की ।  हवाई यात्रा के किराए में चोरी करने वाली किरन वेदी की हिम्मत होती कि वो रामलीला मैदान में सिर पर डुपट्टा डाल कर सांसदों की नकल करतीं ।  इस आंदोलन को मजबूत करने में सबसे बडा योगदान कमजोर प्रधानमंत्री का ही है।
मुझे ये कहने में कत्तई संकोच  नहीं है कि आजाद हिंदुस्तान की ये सबसे भ्रष्ट सरकार है । लोग प्रधानमंत्री को क्यों ईमानदार कहते हैं, ये तो वही जानें । मेरा मानना है कि  टूजी के मामले में ज्यादातर फैसले प्रधानमंत्री और ग्रुप आफ मिनिस्टर की जानकारी में थी, इसलिए इस चोरी के लिए सभी बराबर के जिम्मेदार हैं । वैसे मनमोहन  सिंह की स्थिति  भी सरकार में बेचारे की है। संविधान के  मुताबिक देश का प्रधानमंत्री वो होगा, जो  चुने हुए  सांसदों का नेता होगा । मनमोहन बेचारे  नेता तो हैं नहीं, वो तो प्रधानमंत्री की कुर्सी नहीं बल्कि  सोनिया गांधी की खडाऊं से संभाल रहे हैं।
इस सबके बाद कुछ लोग अन्ना  को जेपी से बड़ा और काबिल बता रहे हैं । कई साल तक जेल में रहकर  जेपी और उनके समर्थकों ने देश में कांग्रेस सरकार का सूपड़ा साफ कर दिया । मोरारजी  भाई  देसाई के अगुवाई में यहां पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने मे जेपी कामयाब रहे । और अन्ना की टीम ने हिसार में कांग्रेस उम्मीदवार के खिलाफ पूरी ताकत झोंक दी, इसके बाद भी कांग्रेस उम्मीदवार को डेढ लाख से  ज्यादा वोट मिले । अन्ना और केजरीवाल अपनी पीठ खुद थपथपाते रहे, लेकिन आप हिसार मे किसी से भी पता कर लें, कांग्रेस ने जिसे उम्मीदवार बनाया था, वो पहले दिन से ही तीसरे नंबर पर था और चुनाव नतीजे भी उसी के अनुरुप रहा । हां अगर कांग्रेस  उम्मीदवार यहां चौथे  स्थान पर चला जाता तो मैं ये मानने को तैयार हो  जाता कि अन्ना की टीम के विरोध का कुछ असर हुआ ।  
मित्रों मुझे लगता है कि जो लोग  जेपी आंदोलन को नीचा दिखा रहे हैं, उनकी मंशा लोकनायक जयप्रकाश के आँदोलन को नीचा दिखाना नहीं, बल्कि उस आंदोलन  से अन्ना की तुलना कर अन्ना को बडा बनाने की साजिश  है । सच तो ये है कि आजाद भारत में अगर सबसे  बडा कोई आंदोलन है तो वो जेपी  आंदोलन ही है, और अगर हम उससे किसी दूसरे आंदोलन की तुलना करें  तो जाहिर है कि दूसरे आंदोलन का कद बढता है । वैसे  मैं लेखकों से आग्रह करुंगा का ऐसा  कुछ ना  लिखें कि इतिहाल  कलंकित हो ।
  
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