आज कोई साधक है मगन,
शायद बन रही है एक धुन।
खुद में मस्त है, अनजान है,
रचता काव्य का अभियान है,
मेरा झट से जा पहुँचा है मन,
उसके साथ है अविचल लगन॥
साथ ही दिखता बडा सानन्द है,
शायद सृष्टि का आनन्द है,
स्थान सुन्दर पर है निर्जन,
न जाने हो रहा है किसका वर्णन?
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1 टिप्पणियाँ:
खुद में मस्त है, अनजान है,
रचता काव्य का अभियान है,
bina anjaan aur mast hue kaavy rachna nahin hoti...!
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