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अगज़ल ----- दिलबाग विर्क

Written By डॉ. दिलबागसिंह विर्क on मंगलवार, 1 नवंबर 2011 | 12:15 pm


     माना  कि  जुदाई  से  गए  थे  बिखर  से  हम 
     नामुमकिन तो था मगर, संभल गए फिर से हम. 
                           साहित्य सुरभि 
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