नियम व निति निर्देशिका::: AIBA के सदस्यगण से यह आशा की जाती है कि वह निम्नलिखित नियमों का अक्षरशः पालन करेंगे और यह अनुपालित न करने पर उन्हें तत्काल प्रभाव से AIBA की सदस्यता से निलम्बित किया जा सकता है: *कोई भी सदस्य अपनी पोस्ट/लेख को केवल ड्राफ्ट में ही सेव करेगा/करेगी. *पोस्ट/लेख को किसी भी दशा में पब्लिश नहीं करेगा/करेगी. इन दो नियमों का पालन करना सभी सदस्यों के लिए अनिवार्य है. द्वारा:- ADMIN, AIBA

Home » » गृहस्थ वो भट्टी है

गृहस्थ वो भट्टी है

Written By Brahmachari Prahladanand on मंगलवार, 1 नवंबर 2011 | 9:26 am


....
गृहस्थ वो भट्टी है जो की अनुभवों से किसी को भी पूरी तरह पका डालती है, जो भी व्यक्ति गृहस्थी के अनुभव से भागने की कोशिश करता है, वह भाग नहीं पाता है, गृहस्थ की भट्टी में सभी पकते हैं,  चाहे वह कोई भी हो, न जान कितने जन्मों तक, गृहस्थ रहे, ब्रह्मचारी रहे, वानप्रस्थ रहे, संन्यासी रहे, पर जब तक पूरे नहीं होंगे, वापस आते रहेंगे |

गृहस्थी में अगर आदर्श जीवन की राह पर चलेंगे तो फिर गृहस्थी का आनंद खो देंगे, गृहस्थी का एक अपना अलग रस है, गृहस्थ में रहकर साधू जैसा रहना चाहेंगे तो वह नहीं हो पायेगा, और एक तरह का विषाद आएगा मन में, क्यूंकि गृहस्थ को पचासों काम होते हैं, उसे न जाने किस-किस से कैसे-कैसे डीलिंग करनी पड़ती है, कभी दुःख छिपाना पड़ता है, कभी ख़ुशी छिपानी पड़ती है, कभी झूठ बोलना पड़ता है, कभी सच छिपाना पड़ता है, अगर गृहस्थ में रहकर, साधू जैसा व्यवहार करेंगे तो फिर गृहस्थ जीवन के साथ न्याय नहीं है, गृहस्थी कोई रुकावट नहीं, वह तो जीवन को अनुभव से गुजारने सबसे बड़ा माध्यम है |

किन्तु आजकल की समस्या एक बड़ी ये हो गई है की साधु गृहस्थ के जैसे सोचने लगा है, और गृहस्थ साधु के जैसे सोचने लगा है, तो उससे दोनों ही अपना आनंद खो रहे हैं, एक साधु जिसको वक्त मिला है ध्यान, साधना भजन करने के लिए, वह वक्त वह न जाने क्या-क्या प्लान बनाकर निकाल रहा है, साधु के पास वक्त है तो वह अलग-अलग प्लान बनाकर बीजी है, गृहस्थ अपनी गृहस्थ में साधु बनना चाहता है, तो फिर वह योग, ध्यान आदि करता है, किन्तु अब वह गृहस्थ है तो बच्चे तो पैदा करने हैं ही, भोग तो उसे भोगना ही है, उससे तो भाग नहीं सकता है, बस यहीं पर वह विषाद से ग्रस्त हो जाता है, क्यूंकि उसके ख्वाब तो हैं, योग से, ध्यान से बहुत उचायीओं को छूने के, पर उन ख्वाबों को पूरा करने के लिए उसके पास ईंधन यानी उर्जा नहीं है, और जिस साधु के पास ईंधन है, वह साधु संसार में इतना उलझ गया है, की उसे भी पता नहीं की वह क्या करे, तो वह अपनी उर्जा से, न जाने क्या-क्या बनाता रहता है |

....
Share this article :

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

Thanks for your valuable comment.