यूपी में कांग्रेस वापसी के लिए बेताब है, होना भी चाहिए, क्योंकि देश के एक महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रेदश में राष्ट्रीय पार्टी की औकात क्षेत्रीय दल की भी नहीं है। फिर हैरानी तब और बढ जाती है, जब मैं देखता हूं कि कांग्रेस वापसी की कठिन राह पार करने के लिए दांव लंगडे घोडे़ पर लगा रही है। सबको पता है कि राहुल गांधी अभी राजनीति के लिए "अमूल बेबी" से ज्यादा कुछ नहीं है। बहरहाल मैने पहले कहा था कि इस गांधी की जुबान फिसलती है और अब मैं इसमें बदलाव करना चाहता हूं। इस गांधी की जुवान फिसलती नहीं है, इसकी जुबान में गंदगी है। यानि ये गांधी जानबूझ कर जहर उगलता है। यूपी की जनता के बीच में यह कहना कि कब तक महाराष्ट्र में जाकर भीख मांगोगे, कब तक पंजाब में जाकर मजदूरी करोगे ? इसका मतलब ये कि यूपी के लोग जो बाहर जाकर नौकरी या मजदूरी कर रहे हैं, वो राहुल गांधी की नजर में भिखमंगे हैं। सोमवार को राहुल गांधी ने जब सार्वजनिक मंच से इतनी बेहूदी टिप्पणी की तो मुझे लगा कि इस गांधी की जुबान पहले भी फिसलती रही है, इस बार भी फिसल गई होगी और शाम तक इन्हें अपनी गल्ती का अहसास होगा और पार्टी राहुल गांधी के दिए बयान पर अफसोस जाहिर कर मामले को रफा दफा करेगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, उल्टे कांग्रेस नेता राहुल की गांधी के भाषण का मतलब समझा रहे हैं, यानि वो ये बताने की कोशिश कर रहे हैं कि राहुल ने जो कहा वो उनके मुंह से गलती से नहीं निकला है, बल्कि यही उनका नजरिया है।दरअसल मित्रों बडे लोगों की बातें भी बडी़ होती हैं। आपको पता ही होगा कि नौकरी के दौरान एक बाबू की मौत हो जाए तो मृतक आश्रित के तौर पर उसके परिवार के किसी सदस्य को नौकरी पाने में नाकों चने चबाने पड़ जाते हैं, लेकिन राजनीति में ऐसा नहीं होता है। आयरन लेडी, पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्रीमती इंदिरा गांधी की प्रधानमंत्री का कार्य करने के दौरान हत्या हो गई, उसके तुरंत बाद उनके बड़े बेटे स्व. राजीव गांधी को मृतकआश्रित के तौर पर प्रधानमंत्री पद की शपथ दिला दी गई। राजीव गांधी की हत्या के बाद ये पद श्रीमति सोनिया गांधी को सौंपा जा रहा था, पर उन्होंने लेने से इनकार कर दिया। उस समय राहुल की उम्र कम थी, अब उम्र हो गई है, लोग भी चाहते हैं कि वो ये पद ले लें, लेकिन सच ये है कि राहुल को पता है कि अभी वो इस पद के काबिल नहीं हैं। बहरहाल मुझे लगता है कि सियासत में मृतक आश्रित के तौर पर उसी पद पर परिवार के किसी सदस्य की ताजपोशी पर रोक होनी चाहिए। चार दिन की नेतागिरी में बड़ी बड़ी बातें इसीलिए मुंह से निकलती हैं, क्योंकि वो बिना संघर्ष के मुकाम तक पहुंच जाते हैं। चलिए राहुल जी विषय पर आते हैं। यूपी वालों को जो आपने कहा, उन्होंने स्वीकार कर लिया कि वो दूसरे राज्य में नौकरी नहीं कर रहे बल्कि भीख मांग रहे हैं। लेकिन ये बात सियासत में भी लागू होनी चाहिए ना। आपकी ही पार्टी से शुरू करता हूं। आपकी माता जी सोनिया गांधी कहां पैदा हुईं, इटली में, वोटो की भीख कहां मांग रही हैं यूपी में। राहुल जी आप कहां पैदा हुए, दिल्ली में। पढाई कहां की, दून और कैंब्रिज में। वोटों की भीख कहां मांगते हैं अमेठी में। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह रहने वाले पंजाब के राज्यसभा के सदस्य बने असम से। आपकी नजर में पंजाब का आदमी दूसरे राज्य में भीख ही मांगता है। महाराष्ट्र में प्रदेश कांग्रेस की कमान आपने यूपी के कृपा शंकर सिंह को सौंपी है। जौनपर के रहने वाले कृपा शंकर सिंह मुंबई में भीख ही मांग रहे हैं ना। कानपुर के रहने वाले केंद्रीय मंत्री राजीव शुक्ला महाराष्ट्र से राज्यसभा सदस्य हैं। वो भी यूपी से महाराष्ट्र जाकर भीख मांग रहे हैं। राजनीति में ऐसे सैकड़ों उदाहरण है,जो दूसरे प्रदेशों में जाकर चुनाव लड़ते हैं, उनके लिए राहुल गांधी ये क्यों नहीं कहते हैं को सियासी लोग दूसरे प्रदेश में जाकर भीख ना मांगे। दरअसल में इसमें राहुल गांधी की गल्ती नहीं है। उनका पालन पोषण जिस वातावरण में हुआ है, उसमें गरीब आदमी की कोई जगह ही नहीं है। इसीलिए उन्हें आप हर गांव मुहल्ले और मंच से ये कहते सुनेंगे कि उन्हें भारतीय होने पर शर्म आती है। समस्याओं से घिरने पर गुस्सा आता है। आपको एक जानकारी दे दूं, राहुल गांधी में भारतीय होने को लेकर हीनभावना काफी पहले से रही है। 1995 में कैब्रिज यूनिवर्सिटी से एमफिल करने के बाद उन्होंने तीन साल तक माइकल पोर्टर की प्रबंधन परामर्श कंपनी 'मानीटर ग्रुप' के साथ काम किया। इस कंपनी में काम करने के दौरान उन्होंने अपना नाम राहुल गांधी नहीं बताया बल्कि वो 'रॉस विंसी' के नाम से काम करते रहे। आपको हैरानी होगी कि उनके सहकर्मियों को भी ये नहीं पता था कि ये भारतीय हैं, दरअसल यही बात राहुल छिपाना चाहते थे। आपको बता दूं राहुल के आलोचक उनके इस कदम को उनके भारतीय होने से उपजी उनकी हीनभावना मानते हैं, जबकि, काँग्रेसी कहते हैं कि ऐसा उन्होंने सुरक्षा कारणों से किया था। बहरहाल मेरी कांग्रेस से हमदर्दी है। कांग्रेस ने देश का बहुत समय तक नेतृत्व किया है और देश ने तरक्की भी की है। राहुल गांधी अब एक्सपोज हो चुके हैं, उन्हें सियासत की बिल्कुल समझ नहीं है। वो सियासी गुलदस्ते में लगे ऐसे फूल हैं जो देखने में अच्छा लगता है, पर उसमें खुशबू बिल्कुल नहीं है। सच तो ये है कि राहुल खुद भी जानते हैं, उनकी पूछ सिर्फ इसलिए है कि उनके नाम के आगे "गांधी" लिखा हुआ है। सब को पता है कि राहुल यूपी के पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान भी सक्रिय रहे हैं और नतीजा ये रहा कि 401 संख्या वाली विधानसभा में कांग्रेस को महज 22 सीटें मिलीं। बहरहाल उस चुनाव में मिली करारी हार के बाद जब लोगों ने राहुल गांधी पर निशाना साधा,तो उनके बचाव में उतरे नेताओं ने कहा कि अभी राहुल गांधी का मुल्यांकन करना जल्दबाजी है। उन्हें और समय दिया जाना चाहिए। राहुल को पता है कि इस बार यूपी में कांग्रेस की हार का ठीकरा उन्हीं पर फूटने वाला है। इसलिए वो ऐसे हथकंडे अपना रहे हैं, जिससे बदबू आ रही है। राहुल हर सभा में भट्टा पारसौल गांव की चर्चा करते हैं। यहां दौरा करने के बाद राहुल ने कहा था कि गांव के तमाम लोगों को जिंदा जला दिया गया, लेकिन जांच में गांव के सभी आदमी साबूत मिले। कहने का मतलब राहुल बिना सोचे समझे अब कुछ भी बोलते हैं।
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2 टिप्पणियाँ:
मैं अपने मित्रों की राय को हमेशा सम्मान देता हूं, शिखा ने मेरे लेख के कुछ हिस्सों पर असहमति जताई थी। इसके अलावा मेरे और भी मित्रों ने मुझे फोन पर बताया उस बात के लिए कहा। लिहाजा मैने सभी की राय का सम्मान करते हुए उस हिस्से को हटा दिया है।
आपका आलेख बहुत अच्छा है, जिन लोगों ने भी आपत्ति की है वे शायद कांग्रेसी सच को छिपाना चाहते हैं। आज राहुल की इस टिप्पणी के बाद वे लोग कुछ नहीं लिख रहे हैं जो रोज ही अन्ना टीम के बारे मे लिखे जा रहे थे। राहुल करे यदि देश की कमान सौंप दी गयी तो देश ऐसे बुरे दौर से गुजरेगा जिसकी इतिहास में भी कोई मिसाल नहीं होगी।
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