नियम व निति निर्देशिका::: AIBA के सदस्यगण से यह आशा की जाती है कि वह निम्नलिखित नियमों का अक्षरशः पालन करेंगे और यह अनुपालित न करने पर उन्हें तत्काल प्रभाव से AIBA की सदस्यता से निलम्बित किया जा सकता है: *कोई भी सदस्य अपनी पोस्ट/लेख को केवल ड्राफ्ट में ही सेव करेगा/करेगी. *पोस्ट/लेख को किसी भी दशा में पब्लिश नहीं करेगा/करेगी. इन दो नियमों का पालन करना सभी सदस्यों के लिए अनिवार्य है. द्वारा:- ADMIN, AIBA

Home » » ग़ज़लगंगा.dg: अब नहीं सूरते-हालात बदलने वाली.

ग़ज़लगंगा.dg: अब नहीं सूरते-हालात बदलने वाली.

Written By devendra gautam on शुक्रवार, 11 नवंबर 2011 | 11:54 pm

अब नहीं सूरते-हालात बदलने वाली.

फिर घनी हो गयी जो रात थी ढलने वाली.


अपने अहसास को शोलों से बचाते क्यों हो

कागज़ी वक़्त की हर चीज है जलने वाली .


एक सांचे में सभी लोग हैं ढलने वाले

जिंदगी मोम की सूरत है पिघलने वाली.


फिर सिमट जाऊंगा ज़ुल्मत के घने कुहरे में

देख लूं, धूप किधर से है निकलने वाली.


एक जुगनू है शब-ए-गम के सियहखाने में

एक उम्मीद है आंखों में मचलने वाली.


----देवेंद्र गौतम

Share this article :

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें

Thanks for your valuable comment.