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दिमाग उसका चलता है, किताबों से किसी को क्या मिलता है,
जो वो करवाते हैं, किताबों में तो वही किस्से लिखे जाते हैं,
राज-ए-राज को जान जाता है, दिमाग अपना चलाता है,
किसी का सहारा न लेता है, तभी तो नेता कहलाता है,
मोहरा सभी को बनाता है, काम अपना निकालता है,
शह पर उसकी, कोई भी कोई काम कर निकलता है,
किताबों की बातें, बस रह जाती हैं, रखी की रखी,
किताबें गर हटा दो तो, रह जाती है उनकी बुद्धि धरी की धरी,
पड़-लिखकर जी हुजूरी आ सकती है,
हुजुर गर बनना हो तो फिर न जाने कितनी मजबूरी आ जाती है,
वो हिम्मत, वो हौसला, वो ताकत, वो दिमाग,
पड़े-लिखे की कुव्वत नहीं होती है,
थोड़ी सी बात पर तो हर पड़े लिखे,
को हरारत होती है,
शहंशाह-ए-अकबर तो अंगूठा छाप थे,
फिर भी कितना राज कर गए,
उनके दिमाग के किस्से,
अकबर-बीरबल के नाम से मशहूर हो गए,
वक्त-ए-नजाकत क्या कहूँ, उसे राजनीति कहूँ की चालाकी कहूँ,
पड़े-लिखे चालाक हो सकते हैं,
किसी की भाल मन्साहत का फायदा उठा सकते हैं,
पर पड़े-लिखे राजनीति में राज न छुपा सकते हैं,
पड़े-लिखे के मंसूबे जब सब जान जाते हैं,
तो फिर अनपड़ भी बगावत कर जाते हैं,
पड़े-लिखे लोग दुनिया में फिर छिप जाते हैं,
वो भी अनपड़ होने का ढोंग दिखाते हैं,
राजनीति का देश यह बहुत पहले से है,
आज पड़ा-लिखा इंसान ही गुलाम है,
देखो कितने पड़े लिखे अपनी गुलामीनामे पर दस्तखत करते हैं,
हर कंपनी वाले पड़े-लिखे इंसान को गुलाम रखना पसदं करते हैं,
आज के दौर में, पड़ा लिखा कहाँ अपनी जिन्दगी जी पाता है,
ऋण लेता है, कार, घर, सब कुछ तो उसका उधार खाता है,
गुलामी कर कर कम्पनी की जिन्दगी निकाल जाता है,
फिर भी कहते हैं की वो अपने आप को आज़ाद पाता है,
आज़ादी देह की कम और दिमाग की ज्यादा होनी चाहिए,
एक फोन आया नहीं की दिमाग गुलाम हो जाता है,
फोन पर ही फिर वह यस-यस सर करता जाता है,
जी हुजुर-जी हुजुर कहने वाला ही तो गुलाम होना चाहिए,
देश की बात तो बहुत बड़ी है,
यह देश कभी एक था नहीं,
राजा राज करते थे,
अपने-अपने नाम के लिए,
न जाने कितनों का क़त्ल करते थे,
------- बेतखल्लुस
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दिमाग उसका चलता है, किताबों से किसी को क्या मिलता है,
जो वो करवाते हैं, किताबों में तो वही किस्से लिखे जाते हैं,
राज-ए-राज को जान जाता है, दिमाग अपना चलाता है,
किसी का सहारा न लेता है, तभी तो नेता कहलाता है,
मोहरा सभी को बनाता है, काम अपना निकालता है,
शह पर उसकी, कोई भी कोई काम कर निकलता है,
किताबों की बातें, बस रह जाती हैं, रखी की रखी,
किताबें गर हटा दो तो, रह जाती है उनकी बुद्धि धरी की धरी,
पड़-लिखकर जी हुजूरी आ सकती है,
हुजुर गर बनना हो तो फिर न जाने कितनी मजबूरी आ जाती है,
वो हिम्मत, वो हौसला, वो ताकत, वो दिमाग,
पड़े-लिखे की कुव्वत नहीं होती है,
थोड़ी सी बात पर तो हर पड़े लिखे,
को हरारत होती है,
शहंशाह-ए-अकबर तो अंगूठा छाप थे,
फिर भी कितना राज कर गए,
उनके दिमाग के किस्से,
अकबर-बीरबल के नाम से मशहूर हो गए,
वक्त-ए-नजाकत क्या कहूँ, उसे राजनीति कहूँ की चालाकी कहूँ,
पड़े-लिखे चालाक हो सकते हैं,
किसी की भाल मन्साहत का फायदा उठा सकते हैं,
पर पड़े-लिखे राजनीति में राज न छुपा सकते हैं,
पड़े-लिखे के मंसूबे जब सब जान जाते हैं,
तो फिर अनपड़ भी बगावत कर जाते हैं,
पड़े-लिखे लोग दुनिया में फिर छिप जाते हैं,
वो भी अनपड़ होने का ढोंग दिखाते हैं,
राजनीति का देश यह बहुत पहले से है,
आज पड़ा-लिखा इंसान ही गुलाम है,
देखो कितने पड़े लिखे अपनी गुलामीनामे पर दस्तखत करते हैं,
हर कंपनी वाले पड़े-लिखे इंसान को गुलाम रखना पसदं करते हैं,
आज के दौर में, पड़ा लिखा कहाँ अपनी जिन्दगी जी पाता है,
ऋण लेता है, कार, घर, सब कुछ तो उसका उधार खाता है,
गुलामी कर कर कम्पनी की जिन्दगी निकाल जाता है,
फिर भी कहते हैं की वो अपने आप को आज़ाद पाता है,
आज़ादी देह की कम और दिमाग की ज्यादा होनी चाहिए,
एक फोन आया नहीं की दिमाग गुलाम हो जाता है,
फोन पर ही फिर वह यस-यस सर करता जाता है,
जी हुजुर-जी हुजुर कहने वाला ही तो गुलाम होना चाहिए,
देश की बात तो बहुत बड़ी है,
यह देश कभी एक था नहीं,
राजा राज करते थे,
अपने-अपने नाम के लिए,
न जाने कितनों का क़त्ल करते थे,
------- बेतखल्लुस
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5 टिप्पणियाँ:
सटीक रचना है ....राजा आज भी राज कर रहे हैं .....प्रजातंत्र के नाम से राज ( परिवार )तंत्र चला रहे हैं
बेहतरीन प्रस्तुति ।
bahut hi acchi rachana hai....aj ke paripekshya me ekdam sateek....
सास्वत सत्य लिख दिया है बहुत बधाई
सास्वत सत्य लिख दिया है बहुत बधाई
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Thanks for your valuable comment.