पुलिस का काम शांति व्यवस्था बनाए रखना है और इसके लिए उसे क़ानून तोड़ने वालों को पकड़ना भी पड़ता है और उन्हें पकड़ने के लिए बल प्रयोग भी करना पड़ता है । कई बार हालात पुलिस के ख़िलाफ़ हो जाते हैं । ऐसा तब होता है जबकि कम अनुभवी या जल्दबाज़ लोग ऐसी मुहिम में शामिल हों । कुछ जोशीले युवक कुछ कर दिखाने के चक्कर में ऐसा कुछ कर जाते हैं जिसके अंजाम का ख़ुद उन्हें भी कोई अंदाज़ा नहीं होता । भारतीय पुलिस सभी धर्म स्थलों का आदर करती है और उनकी सुरक्षा भी करती है । जब कभी इनमें विशेष आयोजन के चलते ज़्यादा भीड़ भाड़ होती है तो पुलिस ही वहाँ शाँति व्यवस्था बनाती है । रमज़ान , ईद , बक़रीद , मुहर्रम और बारावफ़ात से लेकर मज़ारों पर आए दिन लगने वाले मेलों में पुलिस के जवान अपना आराम सुकून खोकर अपनी ड्यूटी अंजाम देते हैं । ये बात भी ज़माना जानता है ।
इसके बावजूद भी आए दिन पुलिस पब्लिक संघर्ष की ख़बरें आती रहती हैं । कभी इस वर्ग के साथ तो कभी उस वर्ग के साथ , कभी इस शहर से तो कभी उस शहर से। फिलहाल मुरादाबाद से ख़बर आई है और इस बार मुसलमान पुलिस से भिड़ गए । मुसलमानों को ग़ुस्सा आ गया जब एक दबिश के दौरान पुलिस ने मुल्ज़िमान के घर का सामान बाहर फ़ेंका तो उसमें उन्होंने क़ुरआन भी फेंक दिया । ऐसा अनजाने में हुआ होगा , पुलिस के बारे में अपने अनुभव की बुनियाद पर मैं दावे से कह सकता हूँ । भूलवश हुई ग़लतियों पर तो ख़ुदा भी नहीं पकड़ता तब बंदों को एक्शन लेने की क्या ज़रूरत आ गई थी । अगर उन्हें नाराज़गी भी थी तो वे अपने चुने हुए एमएलए और एमपी से कहते , अपने डीएम और एसएसपी से कहते । इस्लाम और क़ुरआन तो यह कहता है । क़ुरआन फ़साद से रोकता है और मुरादाबाद में मुसलमानों ने क़ुरआन के नाम पर ही फ़साद खड़ा कर दिया । उन्होंने दरोग़ा को घायल कर दिया और फिर दोनों आपस में भिड़ गए । अब आग लगी देखकर आज़म ख़ाँ जैसे भी दौड़ लिए मुरादाबाद की तरफ़ । ये हरगिज़ नहीं बताएंगे कि ऐ मुसलमानो , तुमने यहाँ ग़लती की । ये तो भड़कती आग को और भी ज़्यादा भड़काएंगे ।
ऐसा केवल इसलिए हुआ क्योंकि मुसलमान भावना में बह कर वह कर रहा है जो उसके मन में आ रहा है , जबकि उसे वह करना चाहिए जो कुरआन बता रहा है । कुरआन के हुक्म को न मानना भी कुरआन का अपमान है और यह अपमान मुसलमानों की हर बस्ती में खुलेआम हो रहा है और रोजाना हो रहा है । अगर मुसलमानों की बस्ती में कुरआन की बात मानी जा रही होती तो वहाँ कोई ऐसा आदमी न होता जिसे पकड़ने के लिए पुलिस आती और अगर कोई इक्का दुक्का ऐसा आदमी होता भी तो मुसलमान उसे पकड़कर खुद पुलिस को दे देते।
पुलिस के साथ मामला करते हुए मुसलमानों को जज़्बात में बहने के बजाय क़ुरआन की हिदायत पर चलना चाहिए ताकि शाँति व्यवस्था बनी रहे।
बेहुरमती सहीफ़ों की इक ज़ुल्म है 'असद'
इस ज़ुल्म के ख़िलाफ़ ज़रूरी है अहतजाज
लेकिन ये अहतजाज तशददुद से पाक हो
ताकि न मुन्तशिर हो मुहब्बत भरा समाज
बे-हुरमती-अपमान , सहीफ़ा- धर्मग्रंथ जिसमें ईशवाणी हो , अहतजाज-विरोध , तशददुद-हिंसा , मुन्तशिर-विखंडन का शिकार
5 टिप्पणियाँ:
शुक्रिया दिनेश जी।
सही सीख|
अक्सर कुछ अपराधी तत्व पुलिस कार्यवाही से बचने के लिए अपने खिलाफ हो रही पुलिस कार्यवाही को धर्म या जाति के खिलाफ प्रचारित कर संघर्ष की स्थिति पैदा कर उसका फायदा उठा जाते है |
राजनेता और अपराधी तत्व इस कार्य में माहिर होते है|
galti kahan nahi hoti anvar ji kya hindu nahi karte kya vo apne ramayan ke anusaar chalte hain aag to kanhi bhi lag jaati hai.insaan me dheeraj aur sabr vaali baat hi khatm ho gai hai har jagah insaan hi insaan ka dushman ho gaya hai.aapne bahut achche vichar likt hain.aapko badhaai.
@ आदरणीय रतन सिंह शेख़ावत जी ! आपको अपनी पोस्ट पर देखकर बहुत ख़ुशी हुई । आप वाक़ई एक अच्छे इंसान हैं।
बात यही है कि मुजरिम ज़ेहन के लोग बड़ी शातिराना चाल चलते हैं।
आपका शुक्रिया !
@ आदरणीया राजेश कुमारी जी ! हादसे कहीं भी हो जाते हैं और उनका नुक्सान सीधे या परोक्ष और कम या ज़्यादा उठाना हर इंसान को पड़ता है। सब्र और मुहब्बत की डोर लगातार कमज़ोर हो रही है। हमें जितना हो सके इसे मज़बूत बनाना चाहिए। हरेक धर्म-मत में इन गुणों पर ज़ोर दिया गया है और फिर भी हमारे अंदर ये गुण पूरी तरह विकसित न हो पाए। यह दुखद है।
शुक्रिया !
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Thanks for your valuable comment.