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pyarki ek kahani suno भाग 2

Written By Pallavi saxena on सोमवार, 21 नवंबर 2011 | 11:19 pm


 इस कहानी का एक भाग आप लोग पढ़ चुके हैं यह दूसरा और अंतिम भाग आपकी नज़र कर रही हूँ। इस उम्मीद के साथ की आपको यह कहानी पसंद आएगी ......आगे की कहानी यहाँ से शुरू होती है। ऐसा कह कर दोनों जुट जाते है। पति बनाता है एक छोटी सी प्यारी सी लड़की और पत्नी बनती है, एक छोटा सा प्यारा सा लड़का दोनों काम पूरा करने के बाद एक साथ खड़े होकर एक गहरी सांस भरते हुए निहारते हैं अपने उस बर्फ से बनाए हुए बच्चों को और एकटक होकर देखने लगते है। तभी पति अपनी पत्नी से कहता है। सुनो प्रिय तुम अपनी आँखें बंद करके सौ 100 तक गिनती गिनो देखना यह सपना साकार हो जाएगा बचपने में दोनो ही ऐसा करते है, लेकिन जब गिनती पूरी हो जाने के बाद दोनों अपनी आँखें खोल कर देखते है। तो पाते हैं, यह क्या यह तो अब भी बर्फ कि मूरत ही थी। प्राण नहीं पड़े थे उस में अब तक, पत्नी फिर निराश हो जाती है और वही मायूसी उसके चहरे पर फिर एक बार आकर ठहर जाती है। तब अपने पति से कहती है स्वामी यह सिर्फ बर्फ से बनी बेजान मूर्तियाँ है। जो हमे बस कुछ ही पलों कि खुशियाँ दे सकती है, मगर ज़िंदगी भर का सुकून नहीं पत्नी कि निराशा भरी बातें सुनकर पति फिर पुनः कहता है, नहीं प्रिय तुम एक बार फिर ऐसा करो मुझे विश्वास है ऐसा होगा। इस बार में तुम्हारी आँखें खुद अपने हाथो से बंद करूंगा एक बार फिर पत्नी अपनी अंखे बंद कर के 100 तक गिनती गिनती है और यह क्या इस बार उसने देखा बर्फ से बनी लड़की के हाथ चले लड़के के पैर चले और देखते ही देखते वह दोनों बर्फ से बने बर्फीले बच्चे जीवत हो चुके थे।
पत्नी का चहरा यह सब देखकर जैसे खिली हुई कोई कली हो, या बर्फ पर पड़ती हुई सुनहरी चमकीली धूप कि भांति चमक उठा था।
पति कि आँखें पत्नी कि ख़ुशी को देखर नम हो आईं थी। दोनों ख़ुशी से झूम रहे थे, गा रहे थे और बेर्फ में खेल रहे थे। तभी पत्नी को चिंता हुई कि अरे अभी तो, ठीक है मगर गर्मियों के आते ही हम क्या करेंगे स्वामी हमारे यह कोमल बर्फीले बच्चों को यह तप्ति हुई बेरहम धूप पिघला डालेगी। पति न कहा चिंता न करो प्रिय मैंने उसका भी इतेजाम कर लिया है। हमारे इन बच्चों के लिए मैं बर्फ का ही एक घर बनाया हैं। जहां बर्फ से बना पलंग और बाकी जरूरत का सभी समान भी बना दिया है। हम हमारे इन बच्चों को उसी बर्फ के मकान में रखेंगे और उस के पश्चात उन्होने अपने उन दोनों बर्फ से बने अर्थात बर्फीले बच्चों को उस बर्फ के मकान में रख दिया और दोनों रोज़ वहाँ जाते उन बच्चों को कहानी सुनते उनके साथ खेलते मस्ती करते। गरमियाँ आने पर भी यही सिलसिला ज़री रहा। उन बर्फीले बच्चों को भी सर्दियों के मौसम कि याद सताने लगती है और वह कहते है, ना  कशा यह बरफीला सर्दियों का सर्द मज़ेदार मौसम जल्दी वापस आय और हम फिर से बाहर जाकर खेल सकें और उनकी यह दुआ भी कुबूल हुई वापस वो सर्दी का सर्द मौसम आया बर्फ गिरि प्रकर्ति ने एक बार फिर पूरे शहर को अपनी खूबसूरत सफ़ेद उजली हुई बर्फीली रुई नुमा दुदूधिया बर्फ कि चादर से ढक दिया और एक बार फिर बच्चों ने बर्फ में खेलना शुरू किया और बरिफेले बच्चों से मिलकर कहा कहाँ थे तुम लोग हम ने हर मौसम में तुमको बहुत मिस किया तुम्हारी बहुत याद आई।
तभी दोनों कि आँखें खुली और उनका हकीकत से सामना हुआ, मगर दोनों ने एक दूसरे से कहा ऐसा लगा मानो  इस एक रात के सपने में हम ने अपनी पूरी ज़िंदगी जी ली हो, सही है जब दो लोगों में इस कदर प्यार होता है। तो दोनों एक दूसरे की परछाईं बन जाते हैं और एक दूसरे के लिए कुछ भी कर गुजरने को तयार रहते हैं। जैस इस कहानी मेन पति ने अपनी पत्नी को खुश करने के लिए किया, वो बात अलग है की जो कुछ भी हुआ वो महज़ एक सपना था मगर यह सपना यदि हकीकत में बादल सकता तो, शायद वो अपनी पत्नी के चहरे पर वो मुसुकान देखने के लिए यह भी कर गुज़रता। यही तो है ना  सच्चा प्यार जो न सिर्फ प्यार है बल्कि जीवन के हर कदम पर एक दूसरे को खुशी देने का जज़बा भी,सिखाता है यह उसी प्यार के पहलू की एक कहानी थी।                  
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1 टिप्पणियाँ:

vandana gupta ने कहा…

बहुत रोचक कहानी थी।

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