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सहेजा मेरे दिल को, बनाया जो अपना मकाँ

Written By Brahmachari Prahladanand on सोमवार, 31 अक्तूबर 2011 | 4:36 pm

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सहेजा मेरे दिल को, बनाया जो अपना मकाँ,
रोशन मुझे कर दिया, देख आया मैं सारा जहाँ,

न वो नूर की रौशनी होती, न वो खुदा का नूर होता,
न जाने इस अँधेरी दुनिया में, कहाँ खो गया होता,

वो नूर देता गया, वो रौशनी देता गया,
कदम रखता गया, आगे को बढता गया,

अब सारा जहाँ रौशन लगता है, हर किसी पे नूर झलकता है,
कोई न दूर खुदा से लगता है, खुदा का नूर सबसे टपकता है,

                                                                                  ------- बेतखल्लुस
 

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