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भिखारियों का अंबानी

Written By महेन्द्र श्रीवास्तव on मंगलवार, 15 नवंबर 2011 | 1:45 pm


अटपटा लग रहा है ना आपको। ये क्या बात है, कोई भिखारियों का अंबानी भी है ? चौंकिए बिल्कुल मत, मैं आपको बताता हूं, भिखारियों का अंबानी है, और आज मैं आपकी इससे मुलाकात भी कराऊंगा। मैं बताता हूं कि इस अंबानी की सिर्फ एक ही जगह नहीं है, बल्कि देश के कई शहरों में इसका ठिकाना है और ये ठिकाने हासिल करने में इसे 35 साल लग गए।
दरअसल पिछले दिनों मैं दिल्ली में कनाट प्लेस से कुछ जरूरी काम निपटाने के बाद लौट रहा था। एक चौराहे के करीब से गुजरने के दौरान कार का एक पहिया पंचर हो गया। कार को साइड में लगाकर मैं नीचे उतरा। वैसे तो मैं चाहता तो खुद ही चक्का बदल सकता था, लेकिन मैने देखा कि गाडी़ में कोई टूल्स ही नहीं हैं, फिर तो एक ही चारा बचता है कि किसी मिस्त्री को यहीं बुलाया जाए। बहरहाल मैंने फोन कर मिस्त्री को बुलाया, जब तक वो यहां पहुंचता, मैं चौराहे के पास ही एक पेड़ की छाया में खड़ा हो गया।
यहां मैने देखा कि एक भिखारी किसी से मोबाइल फोन पर बात कर रहा है और एक कापी में कुछ लिखता जा रहा है। मैं हैरान होकर उसे देखता रहा। बात करने के दौरान उसमें किसी तरह की जल्दबाजी भी नहीं दिखी, यानि उसे ये फिक्र भी नहीं थी कि फोन को फिर रिचार्ज कराना पडेगा, इसलिए बात छोटी और जल्दी करे। लगभग पांच मिनट तक उसने फोन पर बात की और कापी पर लिखने के बाद, उसने अपनी पोटली से नीले रंग की पाकेट डायरी निकाली और उसके पन्ने पलटने लगा। बाद में इसी पाकेट डायरी मे दर्ज कोई नंबर मिलाने की कोशिश करने लगा।
बहरहाल इतना तो मैं समझ चुका था कि ये भिखारी भले हो, लेकिन साधारण भिखारी नहीं है। मुझसे रहा नहीं गया। मै दो कदम आगे बढा और उससे पूछ लिया अरे बाबा इतनी लंबी बात करोगे तो बहुत पैसा कट जाएगा। उसने मेरी बात का जबाब देने के बजाए बोला...आप दिल्ली के रहने वाले नहीं हैं। मैने कहा हां ये तो सही है, लेकिन ये तुम्हे कैसे पता। जबाव देने के बजाए लगा सिस्टम को गाली देने। बोला देखो बाबू जी, आप दिल्ली के नहीं है, फिर भी आपकी कार पर दिल्ली का नंबर है, आपने कुछ जुगाड़ कर लिया होगा। लेकिन बाबू जी हमें तो मोबाइल का सिमकार्ड लेने भर में रुला दिया लोगों ने। आप पैसा कटने की बात करते हैं, मुझे तो हफ्ते भर के लिए ये सिमकार्ड मिला है, इसका भी किराया देता हूं। तो ये सिम तुम्हारे नाम नहीं  है। बाबू जी आप भी कमाल करते हैं, मै कौन सा पहचान पत्र दिखाऊंगा कि मुझे सिम मिल जाएगा। ये सिम किसी और का है, जो मुझसे सिम का हफ्ता वसूलता है।
मैने पूछ लिया सिम किसका है। अब वो थोडा ऐंठ सा गया, बोला मैने तो आप से इसलिए बात कर ली कि आप दिल्ली के रहने वाले नहीं हैं, हमारी तरह आप भी परेदेसी हैं। वरना तो मैं दिल्ली वालों से बात भी नहीं करता हूं, भीख दें या ना दें। मेरा खर्चा दिल्ली वालों से नहीं चलता है बाबू जी। 35 साल से हूं इस लाइन में, मैने भी अब इतना बना लिया है कि भूखों नहीं मर सकता। अपने सभी ठिकानों को बेच भर दूं तो डेढ से दो लाख रुपये कहीं नहीं गए हैं। मैं हैरत में पड़ गया कि किस ठिकाने की बात कर रहा है। हालांकि जिस ऐंठ में ये भिखारी बात कर रहा था, वो अच्छा तो नहीं लग रहा था, फिर ये जानकर की ये भिखारी साधारण नहीं है, इस पर तो चैनल के लिए स्टोरी हो सकती है, मैने थोडी और पूछताछ शुरू की।
बाबा ये तुम बार बार अपने ठिकानों की बात कर रहे हो, तुम्हारा ठिकाना कहां कहां है। वो बोला बाबू जी आपकी कार पंचर है, मिस्त्री आने को होगा, तब तक आप हमारे साथ टैम पास (टाइम पास) कर रहे हो। हमारे बारे में जानने तो आप यहां आए नहीं हो। आपने मुझे "बाबा" कह कर बात की तो हमने भी दो बातें कर लीं। वरना तो ये दिल्ली वाले .. ये जितनी बडी गाडी में होते हैं, अंदर से उतने ही छोटे। बाबू जी पांच साल से ज्यादा हो गए हैं, महीने दो महीने के लिए यहां आता हूं, बाहर से ही इतना लेकर आता हूं कि इन दिल्ली वालों के आगे हाथ फैलाने की जरूरत ना पडे़। एक भिखारी की दिल्ली से इतनी नाराजगी देख मैं सन्न रह गया।
कई बार तो इस भिखारी पर मुझे शक भी हुआ। क्योंकि दिल्ली में तमाम गुप्तचर संस्था से जुडे लोग कई तरह की वेषभूषा में घूमते रहते हैं। मुझे लगा कि कहीं ये आईबी या फिर रा का आदमी तो नहीं है। लेकिन वो जिस तरह से गंदे बर्तनों को इस्तेमाल कर रहा था, उससे लगा कि ये भिखारी ही है।
थोडी देऱ खामोश रहने के बाद उसने फिर बोलना शुरू किया। अब की उसने अपने कुछ ठिकानों की गिनती कराई। बोला बाबू जी हरिद्वार और ऋषिकेश में ही कुल 14 मंदिरों के बाहर मेरी जगह है। तुम्हारी जगह.. क्या वहां जमीन या प्लाट है। बाबू जी आप तो जमीन ही समझ लो। मैने ये जगह दस साल पहले 21 हजार रुपये में खरीदी है। वहां मेरा एक बेटा है, जो ये सब देखता है। उसने सभी जगहों को आधे पर दे रखा है। उसका मतलब था जो भिखारी वहां बैठते हैं, दिन भर में जितना कमाते हैं, उसका आधा पैसा मेरे बेटे को दे देते हैं।
उसने देखा कि मैं उसकी बातों को गौर से सुन रहा हूं, तो उसने अपनी और जगहों के बारे में बताना शुरू किया। कोलकता में काली मंदिर की चर्चा करते हुए उसने बताया कि वहां तो बहुत ही बेहतर यानि प्राइम लोकेशन  पर मेरी जगह है। रोजाना सौ रुपये से ज्यादा की ये जगह है। लेने देने के बाद 80 रुपये रोज बचते हैं। मैं तो ज्यादा समय यहीं बिताता हूं। इलाहाबाद और वाराणसी में भी मेरी अच्छी जगह थी, लेकिन मैने अपनी बेटी की शादी में वो अपने दामाद को दे दिया। उसने बताया कि  उज्जैन, गया, शिरडी साईंबाबा, शनि महाराज, मथुरा बृंदावन, पुरी, द्वारिका, कामाख्या देवी, केदारनाथ, बद्रीनाथ के साथ ही कई और शहरों में पुश्तैनी जगह है। नेपाल में बाबा पशुपतिनाथ की जगह को मैने पिछले साल ही वहीं के एक भिखारी को बेच दिया।
पंद्रह बीस मिनट की बात चीत में ये भिखारी काफी खुल चुका था। उसने बताया कि ऐसे मंदिर के बाहर बैठने की  कीमत ज्यादा होती है, जहां कई देवी देवताओं की मूर्तियां हैं। अगर सिर्फ हनुमान मंदिर हैं, तो वहां मंगलवार को ही लोग आते हैं। इसी तरह साईं बाबा मंदिर में गुरुवार को, शनिदेव मंदिर में शनिवार को लोग आते हैं। बाकी दिन उस मंदिर में कोई आता नहीं, लेकिन भिखारियों को तो रोज भोजन चाहिए। इसलिए हमारी कोशिश होती है कि उसी मंदिर के बाहर की जगह खरीदी जाए, जहां रोजाना दर्शनार्थियों का आना जाना हो।
बाबू जी अब तो मंदिरो से ही कमाई हो पाती है। पहले तो हम लोगों के घर घर जाकर भीख मांगते थे, लेकिन अब हमलोगों ने घर घर जाकर भीख मांगना बंद कर दिया है। किसी मोहल्ले में चोरी हो जाती है, तो लोग सबसे पहले भीख मांगने वालों को ही मारना पीटना शुरू कर देते हैं। ऐसी घटनाओं की जानकारी जब कई जगह से मिलने लगी तो हमलोगों ने घर जाना बंद ही कर दिया। भिखारियों को होने वाली तमाम दिक्कतों की भी इसने चर्चा की। इसे पुलिस वालों से कोई शिकायत नहीं है। कहता है कि उनकी फीस तय है, हम उन्हें दे देते हैं, फिर वो हमें परेशान नहीं करते। लेकिन कई जगहों के नगर पालिका वाले हमलोगों को ज्यादा तंग करतें हैं, जबकि पुलिस वालों से ज्यादा इन्हें फीस देते हैं। आखिर में उसने बताया कि देश में जितने उसके ठिकाने और आमदनी है, उस हिसाब से वो टाप फाइव भिखारियों में एक है। यानि ये भिखारियों का अंबानी है।  
दोनों पैर से विकलांग ये भिखारी रजिस्टर्ड है। रजिस्टर्ड भिखारियों की आपस में इतनी पैठ होती है कि अगर ये दूसरी जगह जाते हैं तो हर जगह उन्हें अपनी ट्राई साईकिल नहीं ले जानी होती है, वहां उन्हें निशुल्क ट्राई साईकिल इस्तेमाल के लिए मिल जाती है। इनके लिए ये बहुत बडी सुविधा है। इसके तीन बच्चे हैं, तीनों बच्चों की शादी हो चुकी है। बेटे के शादी में इन्हें भी कई स्थानों पर भीख मांगने की प्राइम लोकेशन दहेज में मिली है। खाने में एक टाइम नानवेज जरूरी है। मित्रों वैसे तो इस भिखारी का नाम और ये कहां का रहने वाला है, ये सबको बताना चाहता था, मैं तो इस भिखारी अंबानी की तस्वीर भी लोगों के सामने रखना चाहता था, पर मुझे लगता है कि ऐसा करने से कहीं उसका धंधा ना प्रभावित हो।
बहरहाल आप सफर में हों और कार पंचर हो जाए तो, आपको खराब लगता है, मुझे भी लगा। लेकिन इससे बात चीत के बाद जब मैं कार में सवार हुआ तो मन में एक नई जानकारी के लिए संतोष तो था, लेकिन दिल्ली वालों पर गुस्सा भी। क्या भाई आपका सड़क पर व्यवहार ऐसा है कि स्वाभिमानी भिखारी भी आपसे बात नहीं करना चाहता। 


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2 टिप्पणियाँ:

Manoj Kumar ने कहा…

सुन्दर रचना !!
मेरे ब्लॉग पर आने के लिए
manojbijnori12 .blogspot .कॉम

अगर पोस्ट सही लगे तो फोलोवर बनकर हमको मार्गदर्शित करे और हमारा उत्साह बढाए .

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

जो दिल्‍ली वाले यह कहते है कि हम तो दिल्‍ली को साफ सुथरा रखते हैं लेकिन ये बाहर वाले इसे गन्‍दा करते हैं, उनके मुंह पर तमाचा मारा है आपने। बहुत ही सशक्‍त व्‍यंग्‍य।

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