बाबा रामदेव अभी विदेशी बैंकों में जमा काला धन की वापसी को अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाये हुए हैं तो अन्ना हजारे एक सशक्त लोकपाल बिल के लिए सर पर आसमान उठाये हुए हैं. सवाल यह है कि खुदा न ख्वाश्ते यह दोनों अपनी जंग को जीत लेते हैं तो क्या सरे नज़ारे बदल जायेंगे ?...भ्रष्टाचार पर रोक लग जाएगी और काले धन की सल्तनत पूरी तरह ख़त्म हो जाएगी ?....हम आप क्या खुद बाबा रामदेव और अन्ना हजारे भी दिल पर हाथ रखकर यह गारंटी नहीं दे सकते. सच यह है कि उनके आंदोलन से जनता में जागरूकता आ सकती है लेकिन समस्या का निदान नहीं हो सकता. भ्रष्टाचार तो दरअसल पूंजीवादी लोकतंत्र की व्यवस्था का सह उत्पाद है. और काला धन हमारी अर्थ व्यवस्था की नसों में दौड़ता लहू. दुनिया का ऐसा कौन सा पूंजीवादी लोकतंत्र की व्यवस्था से संचालित देश है जहां काले धन और भ्रष्टाचार का संक्रामक रोग मौजूद नहीं है. यह एक लाइलाज रोग है. जब तक यह व्यवस्था रहेगी रोग भी रहेगा. इसके संक्रमण का प्रतिशत घट बढ़ जरूर सकता है.
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अरे भई साधो......: भ्रष्टाचार: पूंजीवादी लोकतंत्र का सह उत्पाद
Written By devendra gautam on मंगलवार, 28 जून 2011 | 8:03 am
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2 टिप्पणियाँ:
bilkul main aapki baat se poori tarah
sahmat hoon.bahut achcha lekh badhaai aapko.
जब तक यह व्यवस्था रहेगी रोग भी रहेगा. इसके संक्रमण का प्रतिशत घट बढ़ जरूर सकता है.
और यह प्रतिशत घटाने का प्रयास होते रहे |
कोई हर्ज नहीं आम को |
खास को तो होगा ही |
"बिदेशी-बैंक"
घोंघे करके मर गए, जोंकों संग व्यापार |
खून चूस भेजा किये, सात समंदर पार ||
"राजनीति"
कंगारू सी कर रही बावन हफ्ते मौज |
बेटे को थैली धरे, लीड कराती फौज ||
बेटा माँ की गोद में, चलेगा कैसे वंश |
वंशवाद की देवकी, मार रहा है कंस ||
"बड़ी-कम्पनी"
केंचुआ दो टुकड़े हुआ, धरती धरे धकेल |
बढ़ी उर्वरा शक्ति से, खूब बटोरें तेल ||
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